वृक्ष माता तुलसी गौड़ा हमारे बीच नहीं रहीं। 86 वर्षीय तुलसी गौड़ा का निधन उत्तर कन्नड़ जिले के अंकोल तालुक स्थित उनके गृह गांव हंनाली में हुआ। तुलसी गौड़ा को "वृक्ष माता" के नाम से जाना जाता था, क्योंकि उन्होंने अपने जीवनभर में लाखों पेड़-पौधे लगाए थे।
नई दिल्ली: वृक्ष माता तुलसी गौड़ा, जिनका पर्यावरण संरक्षण के प्रति अद्भुत समर्पण था, अब हमारे बीच नहीं रहीं। 86 वर्षीय तुलसी गौड़ा, जो हलक्की समुदाय की सदस्य थीं, का निधन सोमवार को उत्तर कन्नड़ जिले के अंकोल तालुक स्थित उनके गृह गांव हंनाली में वृद्धावस्था संबंधी बीमारियों के कारण हो गया। तुलसी गौड़ा को उनके जीवनभर के पर्यावरण संरक्षण प्रयासों और पेड़-पौधों के प्रति प्रेम के लिए "वृक्ष माता" के नाम से जाना जाता था।
उन्होंने अनगिनत पेड़-पौधे लगाए और जड़ी-बूटियों व पौधों की देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी असाधारण मेहनत और समर्पण को पहचानते हुए उन्हें 2021 में पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया था। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के सामने, पारंपरिक आदिवासी वेशभूषा में और नंगे पैर खड़ी होकर तुलसी गौड़ा ने यह सम्मान प्राप्त किया।
कौन हैं तुलसी गौड़ा?
तुलसी गौड़ा का जन्म कर्नाटक के हलक्की जनजाति के एक परिवार में हुआ था। उनके जीवन की शुरुआत बहुत कठिनाईयों से भरी रही। बचपन में उनके पिता का देहांत हो गया था, जिसके बाद उन्होंने अपनी मां और बहनों के साथ घर की जिम्मेदारियों को निभाना शुरू किया, जिससे वह स्कूल नहीं जा पाईं और पढ़ाई-लिखाई भी नहीं कर पाईं। 11 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई, लेकिन उनका पति भी ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सके।
अपने जीवन के दुख और अकेलेपन से उबरने के लिए तुलसी गौड़ा ने पेड़-पौधों की देखभाल करना शुरू किया। उनका वनस्पति संरक्षण में गहरा रुचि बढ़ी और वे राज्य की वनीकरण योजना में कार्यकर्ता के रूप में शामिल हो गईं। 2006 में उन्हें वन विभाग में वृक्षारोपक की नौकरी मिली और 14 साल तक कार्य करते हुए 2020 में वे सेवानिवृत्त हुईं। इस दौरान उन्होंने अनगिनत पेड़ लगाए और जैविक विविधता संरक्षण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
तुलसी गौड़ा की पेड़-पौधों के बारे में अद्भुत जानकारी थी, जिसके कारण उन्हें जंगल का इनसाइक्लोपीडिया भी कहा जाता था। उन्हें हर प्रकार के पौधों के फायदे और विशेषताएं पता थीं। किस पौधे को कितना पानी देना है, किस तरह की मिट्टी में कौन से पेड़-पौधे उगते हैं, यह सब उनके लिए जैसे एक किताब की तरह था। उनकी यह गहरी समझ और समर्पण आज भी उन्हें एक प्रेरणा स्रोत बनाती हैं।