चीन, पाकिस्तान और तालिबान सरकार ने CPEC प्रोजेक्ट को अफगानिस्तान तक बढ़ाने पर सहमति जताई है। भारत ने इसका विरोध करते हुए इसे संप्रभुता का उल्लंघन बताया है।
CPEC Project: चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के शीर्ष अधिकारियों के बीच हाल ही में बीजिंग में एक अनौपचारिक त्रिपक्षीय बैठक हुई। इस बैठक में तीनों देशों के विदेश मंत्रियों – चीन के वांग यी, पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार, और अफगानिस्तान (तालिबान सरकार) के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी – ने हिस्सा लिया।
इस बातचीत में मुख्य एजेंडा था चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के दायरे को अफगानिस्तान तक विस्तारित करने की योजना। तीनों देशों ने मिलकर इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने और क्षेत्रीय स्थिरता, शांति तथा आर्थिक विकास में सहयोग बढ़ाने की सहमति दी।
CPEC क्या है और क्यों है ये खास?
CPEC, यानी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, चीन की "Belt and Road Initiative" (BRI) परियोजना का एक बड़ा हिस्सा है। इसकी अनुमानित लागत करीब 60 अरब डॉलर है। यह गलियारा चीन के शिनजियांग प्रांत को पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ता है। इसमें हाईवे, रेलवे, ऊर्जा संयंत्र, विशेष आर्थिक ज़ोन और टेलीकम्यूनिकेशन ढांचे जैसी परियोजनाएं शामिल हैं।
CPEC से पाकिस्तान को बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में भारी लाभ हुआ है, जबकि चीन को अपनी व्यापारिक पहुंच और सामरिक प्रभाव को बढ़ाने में मदद मिली है।
अब अफगानिस्तान क्यों?
तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद अफगानिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ गया है। वहां की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है और बाहरी निवेश लगभग न के बराबर है। ऐसे में CPEC के ज़रिए अफगानिस्तान को जोड़ना तीनों देशों के लिए फायदेमंद माना जा रहा है।
चीन को अफगानिस्तान में खनिज संसाधनों में रुचि है, वहीं पाकिस्तान अफगानिस्तान के ज़रिए मध्य एशिया तक व्यापार मार्ग खोलना चाहता है। तालिबान सरकार, जिसे अभी तक दुनिया के ज़्यादातर देशों ने मान्यता नहीं दी है, इस गलियारे को आर्थिक पुनर्निर्माण के एक अवसर के रूप में देख रही है।
पाकिस्तान ने क्या कहा?
पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने सोशल मीडिया पर चीन और अफगानिस्तान के नेताओं के साथ बैठक की तस्वीर साझा की और लिखा, "पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और विकास के लिए एक साथ खड़े हैं।"
उन्होंने यह भी बताया कि तीनों देशों ने आपसी कूटनीतिक संवाद, व्यापारिक ढांचे और इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट पर काम करने पर सहमति दी है। इस त्रिपक्षीय समझौते का केंद्र बिंदु रहेगा – CPEC का विस्तार।
भारत क्यों है चिंतित?
CPEC का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है, जिसे भारत अपना अभिन्न हिस्सा मानता है। भारत कई बार CPEC का विरोध कर चुका है और इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है।
अब जब चीन और पाकिस्तान इसे अफगानिस्तान तक ले जाने की तैयारी में हैं, भारत की सुरक्षा और रणनीतिक चिंताएं और गहरी हो गई हैं। अफगानिस्तान में चीन की बढ़ती भागीदारी भारत के लिए भू-राजनीतिक चुनौती बन सकती है।
क्या होंगे CPEC विस्तार के संभावित फायदे?
- अफगानिस्तान के लिए आर्थिक संजीवनी – लंबे समय से युद्धग्रस्त अफगानिस्तान को आधारभूत संरचना, बिजली, सड़क और रोजगार के अवसर मिल सकते हैं।
- चीन के लिए रणनीतिक लाभ – अफगानिस्तान के ज़रिए चीन को मध्य एशिया और पश्चिम एशिया तक व्यापारिक मार्ग उपलब्ध होंगे।
- पाकिस्तान की कूटनीतिक जीत – पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाकर अपनी अहमियत बढ़ा सकता है।
क्या है भारत की नीति?
भारत ने हमेशा से CPEC का विरोध किया है। उसका कहना है कि यह परियोजना उसके क्षेत्रीय अधिकारों का उल्लंघन करती है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर CPEC के खिलाफ अपनी बात मजबूती से रखी है।
अब भारत को अपनी "Connect Central Asia Policy" को और अधिक मजबूती से लागू करना होगा। इसके अलावा, भारत अफगानिस्तान में शिक्षा, स्वास्थ्य और मानवतावादी सहायता जैसे क्षेत्रों में अपनी भागीदारी को बनाए रखने पर जोर दे सकता है।
तालिबान सरकार की रणनीति
अफगानिस्तान की तालिबान सरकार CPEC को एक बड़ा अवसर मान रही है। चीन और पाकिस्तान के सहयोग से उन्हें न केवल आर्थिक सहायता मिल सकती है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मान्यता की दिशा में भी यह एक कूटनीतिक कदम माना जा सकता है।
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि यदि स्थानीय समुदायों को इसमें शामिल नहीं किया गया या तालिबान अपने पुराने तौर-तरीकों से बाहर नहीं निकला, तो यह प्रोजेक्ट विवादों में घिर सकता है।