फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने 73 वर्षीय फ्रांस्वा बायरू को देश का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया है। यह नियुक्ति उस वक्त की गई है जब फ्रांस की राजनीतिक स्थिति में अस्थिरता बढ़ चुकी है और देश के कई हिस्सों में राजनीतिक संकट का सामना किया जा रहा है। बायरू को यह जिम्मेदारी ऐसे समय में दी गई है जब नेशनल असेंबली में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल सका है, और उनकी सियासी समझदारी को देश में स्थिरता लाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा हैं।
चुनौतियों से भरी राह
फ्रांस्वा बायरू के लिए यह जिम्मेदारी आसान नहीं होगी। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी संसद में बहुमत हासिल करना। उनके पास मैक्रों के मध्यमार्गी गठबंधन में महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में कार्य करने का अनुभव तो है, लेकिन अब बायरू को वामपंथी और दक्षिणपंथी दोनों ही पक्षों के उदारवादी सांसदों के सहयोग की जरूरत होगी। इसके अलावा, बायरू को नए मंत्रियों के चयन के लिए विभिन्न दलों के नेताओं के साथ बातचीत करनी होगी, जो एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा, क्योंकि यह कार्य विपक्षी दलों के सहयोग के बिना संभव नहीं होगा।
बायरू का सियासी सफर
फ्रांस्वा बायरू का सियासी सफर काफी लंबा और चुनौतीपूर्ण रहा है। उन्होंने 1993 से 1997 तक फ्रांस में शिक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया, और इस दौरान वे जनता में काफी लोकप्रिय हुए थे। इसके बाद, वे तीन बार 2002, 2007 और 2012 में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार भी रहे थे, हालांकि वे सफलता हासिल नहीं कर पाए। इसके अलावा, बायरू 2007 में मोडेम (मध्यमार्गी डेमोक्रेटिक मूवमेंट) पार्टी की स्थापना भी कर चुके हैं, जो उनके नेतृत्व में फ्रांस की सियासत में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
धन गबन के आरोप में बरी
हाल ही में बायरू को यूरोपीय संसद के धन के गबन के आरोप में बरी किया गया था, जिससे उनकी छवि पर कोई विशेष असर नहीं पड़ा। वे 2017 में फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में इमैनुएल मैक्रों के समर्थन में सामने आए थे, और इसके बाद मैक्रों के गठबंधन में महत्वपूर्ण साझेदार बन गए। बायरू की सियासी छवि एक शांतिपूर्ण और स्थिर नेता की रही है, जो हमेशा अपने फैसलों में सधी हुई सोच रखते हैं।
नए सरकार के गठन की प्रक्रिया
फ्रांस्वा बायरू के प्रधानमंत्री बनने के बाद, उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी नई सरकार का गठन। इस बार, उनका काम और भी मुश्किल होगा क्योंकि फ्रांस में कोई भी पार्टी स्पष्ट बहुमत में नहीं है, और उन्हें दोनों प्रमुख पक्षों—वामपंथी और दक्षिणपंथी—के नेताओं के साथ तालमेल बैठाकर अपनी सरकार बनानी होगी। यही कारण है कि आने वाले दिनों में बायरू के लिए यह प्रक्रिया बेहद चुनौतीपूर्ण होने वाली हैं।
फ्रांस के सामने राजनीतिक संकट
फ्रांस में हाल ही में हुए अविश्वास प्रस्ताव ने सरकार को हिलाकर रख दिया था। राष्ट्रपति मैक्रों के खिलाफ इस प्रस्ताव को फ्रांस के दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों ही दलों ने मिलकर समर्थन किया था, जिसके कारण प्रधानमंत्री माइकल बार्नियर और उनके मंत्रिमंडल के सदस्य इस्तीफा देने के लिए मजबूर हो गए थे। यह संकट फ्रांस के राजनीतिक माहौल को और भी तनावपूर्ण बना चुका है, और बायरू की नियुक्ति से सभी की उम्मीदें अब उनकी दिशा और नेतृत्व पर टिकी हैं।
आने वाले दिनों में क्या होगा?
आने वाले दिनों में फ्रांस में राजनीतिक माहौल और भी गर्म हो सकता है, क्योंकि बायरू को अपनी सरकार का गठन करने के लिए विभिन्न दलों के नेताओं से समर्थन प्राप्त करना होगा। यदि वे इस चुनौती को सफलतापूर्वक पार करते हैं, तो बायरू को एक मजबूत नेता के रूप में देखा जाएगा जो फ्रांस में राजनीतिक स्थिरता लाने में सक्षम हैं।