सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि एक बालिग व्यक्ति को उसके माता-पिता की अनुमति के बिना शादी करने का अधिकार है। यह फैसला एक जोड़े के पक्ष में सुनाया गया, जिनकी शादी को लड़की के माता-पिता ने चुनौती दी थी। माता-पिता का कहना था कि लड़की नाबालिग है, और इसलिए उसकी शादी कानूनी नहीं हो सकती।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें लड़की के माता-पिता ने अपनी बेटी के पति के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की मांग की थी। माता-पिता ने दावा किया था कि उनकी बेटी शादी के समय नाबालिग थी और इसलिए उस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए, जिसने उनकी बेटी से शादी की थी।
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने इस याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि "बच्चे संपत्ति नहीं होते" और लड़की विवाह के समय नाबालिग नहीं थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि माता-पिता के असहमत होने के कारण उस व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करना उचित नहीं है। इस फैसले ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और बालिग व्यक्तियों के विवाह के अधिकार की पुष्टि की, और यह संदेश दिया कि किसी बालिग व्यक्ति को अपनी पसंद के साथी के साथ शादी करने का अधिकार हैं।
"बच्चे कोई संपत्ति नहीं... उन्हें आजाद रहने दें"- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि माता-पिता के पास अपने व्यस्क बच्चे को "कैद" करने का अधिकार नहीं है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने स्पष्ट किया कि बच्चों को संपत्ति के रूप में नहीं समझा जा सकता, और माता-पिता को अपनी बालिग बेटी की शादी को स्वीकार करना चाहिए। कोर्ट ने लड़की के माता-पिता की ओर से पेश किए गए जन्म प्रमाण पत्र में विसंगतियों का हवाला देते हुए कहा कि यह मामले में आगे कोई सुनवाई नहीं की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वह हाई कोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप नहीं करेगा, और इस तरह के मामलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और बालिग व्यक्तियों के विवाह के अधिकार की रक्षा की।
क्या था पूरा मामला?
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 16 अगस्त को एक महत्वपूर्ण आदेश में नाबालिग के साथ कथित अपहरण और यौन शोषण से संबंधित केस को खारिज कर दिया। मामले में लड़की के पिता ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी बेटी का अपहरण कर लिया गया है। पुलिस ने इस मामले में अपहरण और अन्य धाराओं के तहत केस दर्ज किया था। हालांकि, हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद यह फैसला लिया कि लड़की बालिग है और उसने अपनी मर्जी से शादी की है, इसलिए आरोपों को खारिज किया गया।
16 अगस्त को इंदौर बेंच ने महिदपुर के निवासी के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया था। जब इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, तो कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए इसे खारिज करने से मना कर दिया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि लड़की का विवाह उसकी स्वेच्छा से था और इस प्रकार माता-पिता का आरोप गलत था।