ईशा फाउंडेशन पर महिलाओं को गुमराह करके रखने के आरोपों के संदर्भ में, मद्रास हाईकोर्ट ने 30 सितंबर को पुलिस को निर्देश दिया था कि वह फाउंडेशन से जुड़े सभी आपराधिक मामलों की जानकारी अदालत के सामने प्रस्तुत करे। इसके बाद, 1 अक्टूबर को पुलिस की एक बड़ी टीम, जिसमें लगभग 150 पुलिसकर्मी शामिल थे, ईशा फाउंडेशन के आश्रम में जांच करने के लिए पहुंची थी।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन और उसके प्रमुख सद्गुरु जग्गी वासुदेव को बड़ी राहत दी है। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए ईशा फाउंडेशन के खिलाफ चल रही पुलिस जांच पर फिलहाल रोक लगा दी। यह मामला तब शुरू हुआ था जब रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि उनकी बेटियों, लता और गीता को ईशा फाउंडेशन के आश्रम में बंधक बनाकर रखा गया है। इस याचिका के आधार पर मद्रास हाईकोर्ट ने आश्रम के खिलाफ पुलिस जांच के आदेश दिए थे।
अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से ईशा फाउंडेशन को राहत मिली है, क्योंकि पुलिस की जांच को रोक दिया गया है। मामले की आगे की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जारी रहेगी। मद्रास हाईकोर्ट ने 30 सितंबर को आदेश दिया था कि पुलिस ईशा फाउंडेशन से जुड़े सभी क्रिमिनल केसों की डिटेल पेश करे, जिसके बाद 1 अक्टूबर को लगभग 150 पुलिसकर्मी आश्रम में जांच के लिए पहुंचे थे। सद्गुरु ने हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
CJI ने कामराज की दोनों बेटियों से किया वार्तालाप
सुप्रीम कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट के जांच के आदेश पर रोक लगाते हुए टिप्पणी की कि पुलिसकर्मियों की बड़ी संख्या को किसी संस्थान में भेजना उचित नहीं है। चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने मामले पर सुनवाई के दौरान कहा कि वह इस आदेश पर रोक लगाएंगे। CJI ने रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज की दोनों बेटियों, लता और गीता, से चैंबर में ऑनलाइन बातचीत की, जिनके बारे में आरोप लगाया गया था कि उन्हें ईशा फाउंडेशन के आश्रम में बंधक बनाकर रखा गया है। बातचीत के दौरान दोनों बेटियों ने स्पष्ट रूप से बताया कि वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं और जब चाहें, बाहर आ जा सकती हैं।
कामराज ने लगाया ईशा फाउंडेशन पर आरोप
ईशा फाउंडेशन ने आरोपों का खंडन करते हुए एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि फाउंडेशन आश्रम में मौजूद लोगों को विवाह करने या संन्यासी बनने के लिए प्रेरित नहीं करता है। प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि ईशा फाउंडेशन की स्थापना सद्गुरु द्वारा योग और आध्यात्मिकता सिखाने के उद्देश्य से की गई थी, और फाउंडेशन का मानना है कि प्रत्येक वयस्क को अपने जीवन का मार्ग चुनने की स्वतंत्रता और बुद्धि है। फाउंडेशन ने जोर दिया कि वे लोगों को उनके व्यक्तिगत निर्णयों, जैसे विवाह या संन्यास, के लिए प्रभावित नहीं करते, क्योंकि ये पूरी तरह से व्यक्तिगत विकल्प होते हैं।
संस्था ने कहा - अपनी इच्छा से रहते है हजारों लोग
ईशा फाउंडेशन ने अपने बयान में कहा कि ईशा योग केंद्र में हजारों लोग रहते हैं, जिनमें से कई संन्यासी नहीं हैं, जबकि कुछ ने ब्रह्मचर्य या संन्यास का मार्ग चुना है। फाउंडेशन ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता चाहते थे कि संन्यासियों को अदालत के समक्ष पेश किया जाए, और ऐसा किया गया। संन्यासियों ने अदालत के सामने खुद को पेश करते हुए स्पष्ट किया कि वे अपनी इच्छा से ईशा योग केंद्र में रह रहे हैं। फाउंडेशन ने कहा कि अब जबकि यह मामला न्यायालय के संज्ञान में आ गया है, उन्हें विश्वास है कि सत्य की जीत होगी और सभी अनावश्यक विवाद समाप्त हो जाएंगे।