Haryana: विधानसभा की इन सीटों पर निर्दलियों की मजबूत पकड़, कुछ ने तो लगातार छह और कुछ ने पांच बार जीती चुनावी दौड़, जानें दिलचस्प मुकाबले

Haryana: विधानसभा की इन सीटों पर निर्दलियों की मजबूत पकड़, कुछ ने तो लगातार छह और कुछ ने पांच बार जीती चुनावी दौड़, जानें दिलचस्प मुकाबले
Last Updated: 08 सितंबर 2024

हरियाणा में 2019 के विधानसभा चुनाव में 90 सीटों में से सात निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। राज्य में कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां निर्दलीय उम्मीदवारों का प्रभाव लगातार रहा है, और वे चार या उससे अधिक बार जीतकर विधानसभा में पहुंचे हैं।

Haryana Assembly Election: हरियाणा का चुनावी दंगल शुरू हो चुका है, और 90 विधानसभा सीटों के लिए मतदान 5 अक्टूबर को होगा। 6 सितंबर से चुनावी प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हो गई है, जिसमें उम्मीदवार अपने नामांकन दाखिल कर रहे हैं। निर्दलीय उम्मीदवारों की भी बड़ी संख्या इन चुनावों में भाग ले रही है, जो राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। मतदाता अपने अगले पांच साल के भविष्य का निर्णय करने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।

हरियाणा के पिछले विधानसभा चुनाव में सात निर्दलीय विधायक चुने गए थे, जिन्होंने सरकार को महत्वपूर्ण समय पर समर्थन दिया। इनमें से कुछ विधायकों को इस बार भाजपा और कांग्रेस से टिकट भी मिले हैं। राज्य की कुछ सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों का लंबे समय से दबदबा रहा है, और इन क्षेत्रों में मुकाबले काफी रोचक होते हैं। ऐसे निर्दलीय अक्सर स्थानीय मुद्दों और व्यक्तिगत प्रभाव के दम पर चुनाव जीतते हैं, जिससे प्रमुख दलों के लिए चुनौती बढ़ जाती है।

पुंडरी विधानसभा क्षेत्र

हरियाणा की यह विधानसभा सीट कैथल जिले में स्थित है। पुंडरी से मौजूदा विधायक रणधीर सिंह गोलेन हैं, जिन्होंने 2019 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी। इस सीट पर लगातार छह बार निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है और कुल मिलाकर सात बार निर्दलीय को सफलता मिली है। 1968 के विधानसभा चुनाव में पहली बार पुंडरी सीट पर आजाद प्रत्याशी की जीत हुई थी, जिसमें कांग्रेस के तारा सिंह के खिलाफ निर्दलीय ईश्वर सिंह ने सफलता पाई थी।

इसके बाद 1996 में एक बार फिर निर्दलीय उम्मीदवार की जीत हुई, जब नरेंदर शर्मा ने कांग्रेस के ईश्वर सिंह को हराया। ये वही ईश्वर सिंह हैं जिन्होंने 1968 में निर्दलीय चुनाव में जीत हासिल की थी, लेकिन बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

2000 के चुनाव में मुख्य मुकाबला दो निर्दलीय प्रत्याशियों के बीच था, जिसमें तेजवीर ने नरिंदर को हराया। 2004 में निर्दलीय दिनेश कौशिक ने इनेलो के उम्मीदवार नरेंदर शर्मा को शिकस्त दी। अगले चुनाव में दिनेश कौशिक कांग्रेस के प्रत्याशी बनकर उतरे, लेकिन वे निर्दलीय उम्मीदवार सुल्तान के हाथों हार गए। 2014 में दिनेश कौशिक ने जीत हासिल की और इस बार उन्होंने भाजपा के रणधीर सिंह गोलेन को परास्त किया।

कौशिक ने इससे पहले 2004 में भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी। पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो उसमें भी एक निर्दलीय को सफलता मिली। रणधीर सिंह गोलेन ने कांग्रेस के सतबीर भाणा को 12,824 मतों से हराया।

नीलोखेड़ी विधानसभा क्षेत्र

नीलोखेड़ी विधानसभा क्षेत्र करनाल जिले में स्थित है और यह अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। इस क्षेत्र की एक दिलचस्प बात यह है कि यहां अब तक पांच बार निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। मौजूदा विधायक धर्मपाल गोंदर पिछली बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सदन में पहुंचे थे। यह क्षेत्र राजनीति में अपनी अनोखी पहचान और निर्दलीय उम्मीदवारों की मजबूत उपस्थिति के लिए जाना जाता है।

1968 में नीलोखेड़ी विधानसभा क्षेत्र में निर्दलीय उम्मीदवार चंदा सिंह ने पहली बार सफलता प्राप्त की थी। उन्होंने कांग्रेस के राम स्वरूप गिरी को हराया था। इसके बाद, 1982 में भी चंदा सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की और कांग्रेस के शिवराम को हराया।

1987 और 1991 के विधानसभा चुनावों में भी निर्दलीय उम्मीदवार जय सिंह राणा ने जीत हासिल की। जय सिंह ने 1987 में लोक दल के देवी सिंह और 1991 में जनता पार्टी के ईश्वर सिंह को परास्त किया।

इसके बाद, 2019 में भी निर्दलीय उम्मीदवार धर्मपाल गोंदर ने सफलता प्राप्त की। उन्होंने भाजपा के भगवान दास को 2222 वोटों से हराया। हालांकि, 2019 के बाद धर्मपाल गोंदर ने कांग्रेस पार्टी का साथ लिया है और आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें भाजपा के भगवान दास कबीरपंथी के सामने उम्मीदवार बनाया है।

हथीन विधानसभा क्षेत्र

हथीन विधानसभा सीट पलवल जिले का हिस्सा है और यहाँ निर्दलीय उम्मीदवारों की सफलता की एक दिलचस्प कहानी है।

1968 में पहली बार निर्दलीय उम्मीदवार हेम राज ने कांग्रेस के देबी सिंह तेवतिया को हराकर जीत हासिल की। इसके बाद, 1972 में रामजी लाल ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की और उन्होंने कांग्रेस के हेम राज को हराया।

फिर, 2005 में हर्ष कुमार ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस के जालेब खान को हराया। हालांकि, 2009 के चुनाव में जालेब खान ने हर्ष कुमार को हराकर अपनी पिछली हार का बदला लिया। यह मुकाबला विशेष था क्योंकि 2005 में निर्दलीय जीतने वाले हर्ष कुमार ने कांग्रेस का दामन थाम लिया और 2009 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। दूसरी ओर, जालेब खान, जो 2005 में हार गए थे, ने 2009 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सफलता प्राप्त की।

इन सात निर्दलीयों ने 2019 के चनाव जीते

2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में 90 सदस्यीय विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सबसे अधिक 40 सीटें हासिल की थीं। कांग्रेस ने 31 सीटों के साथ मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा प्राप्त किया। जबकि जजपा ने 10 सीटें जीतने में सफलता पाई। इसके अलावा, सात निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी चुनाव में जीत दर्ज की, जबकि इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और हरियाणा लोकहित पार्टी को एक-एक सीट मिली थी। चुनाव जीतने वाले निर्दलीय उम्मीदवारों में पुंडरी से रणधीर गोलेन, महम से बलराम कुंडू, रानियां से रणजीत सिंह, बादशाहपुर से राकेश दौलताबाद, दादरी से सोमवीर सांगवान, नीलोखेड़ी से धर्मपाल गोंदर और पृथला से नयन पाल रावत शामिल थे।

 

 

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