जब हम गोस्वामी तुलसीदास का नाम सुनते हैं, तो आंखों के सामने भक्ति, त्याग और साहित्य की एक ऐसी छवि उभरती है, जिसने भारतीय संस्कृति को एक नया आयाम दिया। मगर क्या आप जानते हैं कि इस महान संत का जीवन एक समय तक सांसारिक मोह में डूबा हुआ था? उनकी वैराग्य की राह की शुरुआत एक ऐसी घटना से हुई थी, जिसने उनके पूरे जीवन की दिशा ही बदल दी। यही वह घटना थी, जिसने ‘रामबोला’ को गोस्वामी तुलसीदास बना दिया।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
तुलसीदास का जन्म 4 अगस्त को उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के राजापुर गांव में हुआ था। उनके जन्म को लेकर एक रोचक किंवदंती प्रचलित है कि जब वह पैदा हुए, तब उनके मुंह से पहला शब्द 'राम' निकला था। इसी वजह से उनका नाम ‘रामबोला’ रख दिया गया। उनका बचपन बहुत दुखों भरा रहा। जब वह बहुत छोटे थे, तभी उनके माता-पिता का निधन हो गया। अनाथ होकर उन्हें कई कठिनाइयों और अभावों में जीवन बिताना पड़ा। लेकिन इन दुखों के बावजूद उनके मन में भगवान राम के प्रति गहरी भक्ति बनी रही।
उन्होंने कम उम्र में ही यह समझ लिया था कि उनका जीवन उद्देश्य राम भक्ति ही है। बाल्यावस्था में जो प्रेम उनके हृदय में भगवान राम के लिए जगा, वही आगे चलकर उनके पूरे जीवन की दिशा बन गया। कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने भगवान राम का नाम नहीं छोड़ा और यही भावना आगे चलकर उन्हें एक महान संत और कवि के रूप में स्थापित करने में मददगार बनी।
सांसारिक प्रेम में डूबा एक भक्त
तुलसीदास जब युवा थे, तब उनका विवाह रत्नावली नाम की एक बहुत ही सुंदर, समझदार और धर्म में आस्था रखने वाली महिला से हुआ। रत्नावली का स्वभाव जितना शांत था, उतनी ही वह संस्कारी भी थीं। तुलसीदास अपनी पत्नी से बेहद प्रेम करते थे। वह उनके बिना एक पल भी नहीं रह पाते थे और हर समय उनके ही बारे में सोचते रहते थे। उनके जीवन में भगवान से ज्यादा महत्व पत्नी को मिलने लगा था। वह उनके रूप, वाणी और साथ में इस कदर डूब चुके थे कि उन्हें दुनिया की बाकी चीज़ें महत्वहीन लगने लगी थीं। मगर यही प्रेम जो शुरुआत में सुखद लगा, धीरे-धीरे उनके जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा बन गया।
रत्नावली जानती थीं कि तुलसीदास में कुछ बड़ा करने की क्षमता है, लेकिन यह अंधा प्रेम उन्हें उनके रास्ते से भटका रहा है। उन्हें इस बात की चिंता रहती थी कि कहीं तुलसीदास अपने जीवन का उद्देश्य भूल न जाएं, और इसी चिंता ने एक दिन इतिहास बदल दिया।
वह रात जिसने सब कुछ बदल दिया
एक बार की बात है, जब तुलसीदास की पत्नी रत्नावली कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली गईं। तुलसीदास उनसे इतना प्रेम करते थे कि वह उनके बिना एक पल भी नहीं रह पा रहे थे। कुछ ही दिनों में उनका मन बहुत बेचैन हो गया। उस समय सावन का महीना था, आसमान में घनघोर बारिश हो रही थी और नदी में बाढ़ आ चुकी थी। ऐसे मौसम में कोई भी समझदार व्यक्ति घर से बाहर कदम नहीं रखता, लेकिन प्रेम में डूबे तुलसीदास ने किसी भी खतरे की परवाह नहीं की। वह हर हाल में रत्नावली से मिलने को आतुर हो उठे।
जब वह नदी किनारे पहुंचे, तो किसी नाविक ने उन्हें पार कराने से इनकार कर दिया। तब उन्होंने जो देखा, वह चौंकाने वाला था। एक शव नदी में बह रहा था, और तुलसीदास उसे लकड़ी समझकर उसी के सहारे नदी पार कर गए। जैसे-तैसे वह अपने ससुराल पहुंचे और वहां भी उन्होंने एक सांप को रस्सी समझकर पकड़ लिया ताकि दीवार पर चढ़कर अंदर जा सकें। यही नहीं, दीवार पर चढ़ने के लिए उन्होंने जो बांस समझा था, वह असल में किसी जानवर की सूखी हड्डी थी।
जब वे रात के अंधेरे में अपनी पत्नी के कमरे में पहुंचे और रत्नावली ने उन्हें इस हालत में देखा, तो वह हैरान रह गईं। जब तुलसीदास ने उन्हें यह सब बताया, तो पत्नी के रूप में नहीं बल्कि एक बुद्धिमती स्त्री के रूप में रत्नावली ने उन्हें समझाया। उन्होंने कहा, “अगर तुमने मेरे हड्डी-मांस के शरीर से इतना प्रेम किया है, तो जरा सोचो, अगर इतना ही प्रेम भगवान राम से किया होता, तो तुम्हारा जीवन धन्य हो जाता।” रत्नावली की ये बात तुलसीदास के हृदय में ऐसा असर कर गई कि उसी क्षण से उनका मन वैराग्य की ओर मुड़ गया। यही वह रात थी, जिसने 'रामबोला' को गोस्वामी तुलसीदास बना दिया।
पत्नी की फटकार बनी जीवन की दिशा
रत्नावली ने जब देखा कि तुलसीदास उनके प्रेम में इतने अंधे हो गए हैं कि दिन-रात बस उन्हें ही याद करते रहते हैं, तो एक दिन उन्होंने गुस्से में लेकिन बहुत गहरे शब्दों में तुलसीदास को झकझोर दिया। उन्होंने कहा, अगर तुमने मेरे इस नश्वर शरीर से इतना प्रेम किया है, तो सोचो, अगर यही प्रेम भगवान राम से करते, तो अब तक तुम संसार के बंधनों से मुक्त हो चुके होते। उनकी यह बात सीधे तुलसीदास के दिल में उतर गई। ऐसा लगा जैसे किसी ने नींद में डूबे व्यक्ति को अचानक जगा दिया हो। उसी पल तुलसीदास को अपने जीवन की सच्चाई समझ आ गई।
उन्होंने तय कर लिया कि अब वे पत्नी, परिवार और संसार के अन्य बंधनों को छोड़कर पूरी तरह भगवान राम की भक्ति में लग जाएंगे। रत्नावली की एक फटकार ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी और एक सामान्य गृहस्थ व्यक्ति से वे महान संत बन गए, जिन्होंने आगे चलकर ‘रामचरितमानस’ जैसी अमर कृति की रचना की।
वैराग्य की ओर पहला कदम
रत्नावली की उस एक सच्ची और तीखी बात ने तुलसीदास के दिल को गहराई से छू लिया और उन्हें अंदर से झकझोर दिया। अगले ही दिन, उन्होंने अपने घर को छोड़ दिया और पूरी तरह से वैराग्य की राह पकड़ ली। अब उनका मन सांसारिक मोह-माया से दूर होकर भगवान राम की भक्ति में मग्न हो गया। वे गांव-गांव और नगर-नगर भटकने लगे, हर जगह राम का नाम जपते और भगवान की एक झलक पाने की प्रार्थना करते। उनके हृदय में जो भक्ति की अग्नि जली थी, वह दिन-ब-दिन और प्रज्वलित होती गई। इसी भक्ति ने उन्हें वह महान संत बना दिया, जिन्होंने बाद में ‘रामचरितमानस’ जैसी अमर रचना की। तुलसीदास की यह यात्रा वैराग्य और भक्ति की पहली सीढ़ी थी, जिसने उन्हें आध्यात्म के ऊँचे शिखर तक पहुँचाया।
रामचरितमानस की रचना
तुलसीदास ने जब वैराग्य की राह पकड़ ली, तो वे कई तीर्थस्थलों की यात्रा करने लगे। उन्होंने काशी, अयोध्या, और चित्रकूट जैसे पवित्र स्थानों पर गहरी साधना की। उनकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया। इसके बाद उन्हें हनुमान जी के दर्शन हुए, जिन्होंने उन्हें अयोध्या में भगवान राम के दर्शन करवाए। यही वह महत्वपूर्ण मोड़ था जिससे तुलसीदास के जीवन में नई ऊर्जा आई और उन्होंने भगवान राम के चरित्र का गहन अध्ययन किया। इस अध्यात्मिक अनुभव के बाद उन्होंने ‘रामचरितमानस’ की रचना शुरू की, जो उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति बन गई।
रामचरितमानस तुलसीदास ने अवधी भाषा में लिखा ताकि यह आम जनता के बीच भी आसानी से पहुँच सके और लोग भगवान राम की महिमा को समझ सकें। यह काव्य केवल एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और समाज की आत्मा भी है। इसके अलावा तुलसीदास ने हनुमान चालीसा, विनय पत्रिका, दोहावली, और कवितावली जैसी कई अन्य महत्वपूर्ण और लोकप्रिय काव्य रचनाएं भी कीं। उनकी यह रचनाएं आज भी लोगों के बीच अत्यंत प्रिय हैं और उनकी भक्ति भावना को जगाती हैं। तुलसीदास का यह साहित्यिक योगदान सदियों से भारतीय समाज के लिए मार्गदर्शन और प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
तुलसीदास के जीवन की प्रेरणा
गोस्वामी तुलसीदास का जीवन हमें यह सिखाता है कि यदि कोई व्यक्ति सही समय पर अपने भीतर की सच्चाई को समझ जाए और आत्मबोध कर ले, तो वह अपनी ज़िंदगी को बेहद सफल और ऊँचा बना सकता है। तुलसीदास की प्रेरणा का स्रोत उनकी पत्नी रत्नावली की वह सच्ची और कठोर सीख थी, जिसने उन्हें सांसारिक प्रेम से ऊपर उठाकर भगवान राम की भक्ति में लगा दिया। तुलसीदास केवल एक भक्त या कवि ही नहीं थे, बल्कि वे एक बड़े समाज सुधारक भी थे।
अपने लेखन और काव्यों के माध्यम से उन्होंने लोगों के दिलों में प्रेम, भक्ति, त्याग और नैतिकता की भावना जगाई। उनकी रचनाएं आज भी समाज को सही मार्ग दिखाने का काम करती हैं और हमें जीवन में सच्चाई, ईमानदारी और समर्पण का महत्व समझाती हैं। इस प्रकार उनका जीवन और काव्य दोनों ही हमें प्रेरित करते हैं कि हम भी अपने जीवन में उच्च आदर्श अपनाएं और अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाएं।
रामबोला’ से ‘गोस्वामी तुलसीदास’ बनने की यह यात्रा केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं है, बल्कि यह बताती है कि जीवन में परिवर्तन कभी भी संभव है — चाहे परिस्थिति कैसी भी हो। यदि भीतर जागृति हो जाए, तो सांसारिक मोह भी एक सीढ़ी बन सकता है ईश्वर तक पहुंचने की।