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Assam CM: मियांलैंड की मांग से मचा बवाल, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा का सख्त रुख

Assam CM: मियांलैंड की मांग से मचा बवाल, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा का सख्त रुख

गोलाघाट में अतिक्रमण हटाते समय मियांलैंड की मांग उठी। मुख्यमंत्री सरमा ने इसे सिरे से खारिज करते हुए कहा, असम में अलगाववाद को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

Assam CM: असम के गोलाघाट जिले में चल रही अतिक्रमण हटाओ मुहिम के दौरान एक विवादास्पद बयान ने राज्य की राजनीति को गर्मा दिया है। नगालैंड सीमा से सटे संवेदनशील उरियामघाट इलाके में जब अधिकारियों ने अवैध कब्जों को हटाया, तब एक अतिक्रमणकारी ने यह कहते हुए सनसनी फैला दी कि अगर बोडो समुदाय बोडोलैंड की मांग कर सकता है, तो "मियां लोग" मियांलैंड की मांग क्यों नहीं कर सकते।

मुख्यमंत्री सरमा की दो टूक

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने इस मांग को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि मियांलैंड जैसा कोई सपना भारत में कभी पूरा नहीं हो सकता। उन्होंने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि जो लोग ऐसी मांग कर रहे हैं, वे चाहें तो बांग्लादेश या अफगानिस्तान जाकर प्रयास करें, असम सरकार उन्हें वहां पहुंचाने में मदद करने को तैयार है।

मूल निवासी बनाम अवैध घुसपैठ

यह मुद्दा केवल अतिक्रमण हटाने तक सीमित नहीं है। असम में लंबे समय से अवैध घुसपैठ और जनसंख्यकीय बदलाव पर बहस होती रही है। 1971 के बाद असम में बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ ने कई जिलों की आबादी को पूरी तरह बदल दिया है। यही वह समस्या थी जिसने 1979 से 1985 तक चले असम आंदोलन को जन्म दिया और असम समझौते की नींव रखी। लेकिन मूल निवासी आज भी मानते हैं कि उन वादों को पूरा नहीं किया गया।

गोलाघाट में 11,000 बीघा भूमि पर कब्जा

रेंगमा रिजर्व फॉरेस्ट में करीब 11,000 बीघा भूमि पर अवैध कब्जा था, जहां सुपारी की खेती और अन्य अवैध गतिविधियां पनप रही थीं। पहले चरण में प्रशासन ने 4.2 हेक्टेयर भूमि को कब्जा मुक्त कराया और 120 से ज्यादा अवैध दुकानों व ढांचों को हटाया।

पहले भी हो चुकी है मियां पहचान की विवादास्पद प्रस्तुति

यह पहला मौका नहीं है जब "मियां" पहचान को विवाद के रूप में पेश किया गया हो। 2020 में कांग्रेस विधायक शर्मन अली अहमद ने श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में "मियां म्यूजियम" स्थापित करने का प्रस्ताव रखा था, जिसे लेकर व्यापक विरोध हुआ था।

बोडोलैंड आंदोलन से तुलना अनुचित

बोडोलैंड आंदोलन जातीय पहचान और दशकों लंबे राजनीतिक संघर्ष पर आधारित था। इसके विपरीत मियांलैंड की मांग अवैध कब्जे और नागरिकता पर संदेह से जुड़े लोगों द्वारा की जा रही है। यह राज्य की अखंडता और सामाजिक संतुलन के लिए खतरा बन सकता है।

राजनीतिक प्रतिक्रिया और विरोध

असम की प्रमुख छात्र और नागरिक संगठनों ने मियांलैंड की मांग का विरोध किया है। "असम की धरती पर नहीं बनेगा मियांलैंड" जैसे नारे सार्वजनिक मंचों पर गूंजे हैं। कांग्रेस की चुप्पी को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। गौरव गोगोई जैसे वरिष्ठ नेताओं की प्रतिक्रिया न आने पर आलोचकों ने इसे कांग्रेस की तुष्टिकरण नीति बताया है।

भाजपा का कांग्रेस पर निशाना

भाजपा प्रवक्ता किशोर कुमार उपाध्याय ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसके शासनकाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों को संरक्षण मिला, जिससे धुबरी, बारपेटा, दर्रांग, मोरीगांव और दक्षिण सालमारा जैसे जिलों में मुस्लिम आबादी असंतुलित रूप से बढ़ी है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर यही प्रवृत्ति जारी रही, तो असम में मूल निवासी अल्पसंख्यक बन जाएंगे।

गुवाहाटी में भी अतिक्रमण पर कार्रवाई

मुख्यमंत्री सरमा ने गुवाहाटी की पहाड़ियों में बसे अवैध कब्जेदारों की पहचान के लिए विशेष सर्वे की घोषणा की। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई केवल अवैध रूप से बसे लोगों के खिलाफ है, न कि असम के मूल निवासियों पर। अब तक राज्य सरकार 182 वर्ग किलोमीटर भूमि को अतिक्रमण मुक्त करा चुकी है।

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