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भगवान श्रीकृष्ण की पहली मूर्ति कहाँ बनी? जानें कौन था इसका रचयिता

भगवान श्रीकृष्ण की पहली मूर्ति कहाँ बनी? जानें कौन था इसका रचयिता

मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप का पहला लिखित वर्णन अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा ने किया था। इसी विवरण के आधार पर श्रीकृष्ण के परपोते वज्रनाभ ने उनकी मूर्तियां बनवाईं। नाथद्वारा के श्रीनाथजी, करौली के मदनमोहनजी और वृंदावन के गोविंददेवजी को श्रीकृष्ण की सबसे प्रामाणिक प्रतिमाएं माना जाता है।

महाभारत काल से जुड़ी परंपराओं के अनुसार, अर्जुन-पुत्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा ने सबसे पहले भगवान कृष्ण के स्वरूप का विस्तृत वर्णन लिखा था। उनके इस विवरण को आधार बनाकर श्रीकृष्ण के परपोते वज्रनाभ ने पहली बार कृष्ण की मूर्तियां बनवाईं। कहा जाता है कि इन प्रतिमाओं को गढ़ने में कई कलाकारों की सहायता ली गई थी। वज्रनाभ द्वारा निर्मित श्रीनाथजी (नाथद्वारा), मदनमोहनजी (करौली) और गोविंददेवजी (वृंदावन) की मूर्तियां आज भी श्रीकृष्ण के सबसे प्रामाणिक रूपों के रूप में पूजित हैं।

उत्तरा ने किया था स्वरूप का पहला वर्णन

महाभारत युद्ध के बाद की घटनाओं में एक प्रसंग आता है, जब अभिमन्यु की पत्नी और अर्जुन की पुत्रवधू उत्तरा ने भगवान श्रीकृष्ण के रूप का वर्णन किया। उत्तरा स्वयं कृष्ण की परम भक्त थीं। जब अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र चलाकर उनके गर्भ में पल रहे बच्चे को नष्ट करने का प्रयास किया, तब भगवान कृष्ण ने हस्तक्षेप किया और उनकी संतान की रक्षा की। इसी घटना के बाद उत्तरा ने अपने आराध्य श्रीकृष्ण के स्वरूप को लिखित रूप में उतारा।

उनके लिखे वर्णन में कृष्ण के नेत्रों की छवि, नाक की बनावट, मुखमंडल की आभा और उनकी मोहक मुस्कान का विस्तार से उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि यही पहला अवसर था जब किसी ने कृष्ण के स्वरूप का इतनी गहराई से विवरण किया।

वज्रनाभ ने बनाया पहला चित्रण

कहा जाता है कि उत्तरा के लिखित वर्णन को आधार बनाकर ही भगवान कृष्ण के परपोते वज्रनाभ ने उनका पहला चित्रण कराया। वज्रनाभ स्वयं भी कला और संस्कृति के संरक्षक माने जाते थे। उत्तरा द्वारा लिखे गए शब्दों के सहारे उन्होंने श्रीकृष्ण के स्वरूप को जीवंत करने का प्रयास किया।

माना जाता है कि कृष्ण की सुंदरता को पत्थर और मूर्तियों में ढालना आसान काम नहीं था। इसलिए वज्रनाभ ने कई कुशल कलाकारों की मदद ली। इसी सामूहिक प्रयास से कृष्ण की पहली प्रतिमाओं का निर्माण हुआ।

तीन प्रमुख मूर्तियां बनीं आधार

इतिहास और मान्यता के अनुसार वज्रनाभ ने भगवान कृष्ण की तीन प्रमुख मूर्तियां बनवाईं। इन्हें ही कृष्ण की सबसे प्रामाणिक और प्राचीन प्रतिमाएं माना जाता है।

  • श्रीनाथजी, नाथद्वारा राजस्थान: यह मूर्ति भगवान कृष्ण के बाल रूप की मानी जाती है। नाथद्वारा का श्रीनाथजी मंदिर आज भी लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है।
  • मदनमोहनजी, करौली राजस्थान: इस प्रतिमा में कृष्ण को युवावस्था के रूप में दिखाया गया है। यह स्वरूप उनकी अलौकिक छवि को और अधिक उजागर करता है।
  • गोविंददेवजी, वृंदावन उत्तर प्रदेश: यह मूर्ति किशोर रूप में भगवान कृष्ण का दर्शन कराती है। वृंदावन के इस मंदिर में भक्तों को आज भी उनके सजीव दर्शन का अनुभव होता है।

क्यों खास है यह कथा

भगवान कृष्ण के स्वरूप को लेकर अलग-अलग स्थानों पर विविध व्याख्याएं मिलती हैं। लेकिन उत्तरा और वज्रनाभ से जुड़ी यह कहानी खास इसलिए है क्योंकि यह सीधा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। उत्तरा ने जहां भक्तिभाव से कृष्ण की छवि का विवरण दिया, वहीं वज्रनाभ ने उसे मूर्त रूप देकर दुनिया के सामने प्रस्तुत किया।

कला और भक्ति का संगम

यह प्रसंग इस बात का भी प्रमाण है कि कला और भक्ति का संगम प्राचीन समय से ही हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है। उत्तरा की भक्ति ने उन्हें कृष्ण के स्वरूप को शब्दों में उतारने की शक्ति दी और वज्रनाभ की कला ने उस स्वरूप को मूर्त रूप दिया। यही कारण है कि आज हम जिन मूर्तियों और चित्रों के माध्यम से श्रीकृष्ण के दर्शन करते हैं, उनका आधार इन्हीं दोनों से जुड़ा माना जाता है।

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