बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जिन सीटों पर अपनी जीत पक्की मान रही है, उनमें लखीसराय का नाम सबसे ऊपर होगा। इस सीट पर विजय कुमार सिन्हा का दबदबा है, जिन्होंने 2010 से अब तक तीन बार चुनाव जीतकर यह सीट अपने नाम की है।
लखीसराय: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नजदीक आते ही लखीसराय विधानसभा सीट पर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। यह सीट लंबे समय से भाजपा के डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा का गढ़ मानी जाती है। 1977 में स्थापित इस विधानसभा क्षेत्र में अब तक 11 चुनाव हो चुके हैं और बीजेपी को यहां सबसे ज्यादा पांच बार जीत मिली है। इस बार भी विजय कुमार सिन्हा की मौजूदगी और डिप्टी सीएम के रूप में उनका कद उन्हें जीत की मजबूत दावेदार बनाता है।
लखीसराय का चुनावी इतिहास
लखीसराय विधानसभा सीट 1977 में बनी और यह मुंगेर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। मुंगेर लोकसभा क्षेत्र में कुल छह विधानसभा खंड हैं, जिनमें लखीसराय प्रमुख खंड माना जाता है। इस क्षेत्र की अधिकांश आबादी ग्रामीण है और यहाँ अनुसूचित जाति के मतदाता सबसे ज्यादा हैं। अब तक हुए 11 चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो:
- बीजेपी: 5 बार जीत
- जनता पार्टी और जनता दल: 2-2 बार जीत
- कांग्रेस: 1 बार (1980)
- आरजेडी: 1 बार (2005)
विशेष रूप से यह देखा गया है कि विजय कुमार सिन्हा ने 2005 में पहली बार लखीसराय सीट जीतने के बाद 2010, 2015 और 2020 में लगातार तीन बार विधायक के रूप में अपनी पकड़ बनाई।
विजय कुमार सिन्हा का राजनीतिक दबदबा
लखीसराय विधानसभा सीट पर बीजेपी का दबदबा पिछले दो दशकों से बना हुआ है। विजय कुमार सिन्हा न केवल इस क्षेत्र में लोकप्रिय हैं, बल्कि डिप्टी सीएम बनने के बाद उनका कद और भी मजबूत हो गया है। उनकी यह स्थिति उन्हें चुनाव में भारी फायदा देती है। बीजेपी के लिए लखीसराय जीतना अपेक्षाकृत आसान माना जा रहा है क्योंकि स्थानीय मतदाताओं में उनके प्रति विश्वास और समर्थन बहुत मजबूत है। वहीं, कांग्रेस और आरजेडी ने इस सीट पर पिछले दो दशकों में अपनी पकड़ खो दी है।
आरजेडी के लिए यह सीट जीतना आसान नहीं होगा। हालांकि 2005 में आरजेडी ने लखीसराय में जीत दर्ज की थी, लेकिन उस समय विजय कुमार सिन्हा ने हार का सामना किया था। अब 20 साल बाद यह सीट बीजेपी का गढ़ बन चुकी है। आरजेडी और इंडिया गठबंधन को इस चुनाव में एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा। उन्हें अनुसूचित जाति मतदाताओं और ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करनी होगी। चुनावी रणनीति में स्थानीय मुद्दों के साथ विकास और सामाजिक न्याय को प्राथमिकता देने की संभावना है।