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बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 'प्रक्रिया मतदाता हितैषी है'

बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 'प्रक्रिया मतदाता हितैषी है'

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर चल रही याचिकाओं पर अहम टिप्पणी की है। 

पटना: बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर उठी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फिर से सुनवाई की। कोर्ट ने इस दौरान स्पष्ट किया कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के लिए मतदाताओं से 11 दस्तावेजों का विकल्प मांगा गया है, जबकि पहले किए गए संक्षिप्त पुनरीक्षण में केवल 7 दस्तावेजों पर विचार किया जाता था। सुप्रीम कोर्ट ने इस अंतर को उजागर करते हुए कहा कि यह बदलाव मतदाताओं के हित में और उन्हें अधिक विकल्प देने वाला है। 

कोर्ट की टिप्पणी ने यह भी संकेत दिया कि नई प्रक्रिया मतदाता के लिए सुविधाजनक और अनुकूल है, जिससे उनकी पहचान और पात्रता की पुष्टि में आसानी होगी। इस फैसले से बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण की प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्यायसंगत व्यवस्था बनाए रखने का प्रयास स्पष्ट होता है।

कोर्ट की टिप्पणी: प्रक्रिया मतदाता हितैषी है

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई के दौरान कहा कि बिहार में एसआईआर के तहत मतदाता सूची में शामिल होने के लिए मतदाताओं के पास 11 दस्तावेजों का विकल्प है। जबकि पहले किए गए संक्षिप्त पुनरीक्षण (Summary Revision) में केवल 7 दस्तावेजों की आवश्यकता थी। कोर्ट ने कहा कि इससे स्पष्ट है कि यह प्रक्रिया मतदाताओं के लिए अनुकूल और समावेशी है।

पीठ ने कहा, याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि आधार कार्ड को स्वीकार न करना अनुचित है। हालांकि, अन्य वैकल्पिक दस्तावेज उपलब्ध हैं। इससे प्रतीत होता है कि प्रक्रिया सभी मतदाताओं को साथ लेकर चलने वाली है।सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मतदाता सूची में शामिल होने के लिए मतदाताओं को 11 दस्तावेजों में से किसी एक को प्रस्तुत करना अनिवार्य है।

सिंघवी की दलील: दस्तावेज़ कवरेज पर्याप्त नहीं

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कोर्ट में कहा कि दस्तावेजों की संख्या ज्यादा होने के बावजूद उनका कवरेज सीमित है। उन्होंने उदाहरण के तौर पर पासपोर्ट का जिक्र किया, जो बिहार में केवल 1-2 प्रतिशत लोगों के पास उपलब्ध है। सिंघवी ने कहा, "राज्य में स्थायी निवासी प्रमाण पत्र देने का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। इसलिए, दस्तावेज़ों की उपलब्धता बहुत कम है और यह पूरे मतदाता समूह को कवर नहीं करता।"

इस पर पीठ ने कहा कि राज्य में लगभग 36 लाख पासपोर्ट धारकों का कवरेज पर्याप्त माना जा सकता है। न्यायमूर्ति बागची ने जोड़ा कि दस्तावेजों की सूची तैयार करते समय विभिन्न सरकारी विभागों से फीडबैक लिया जाता है, ताकि अधिकतम कवरेज सुनिश्चित किया जा सके।

पिछली सुनवाई का सार

सुप्रीम कोर्ट ने 12 अगस्त को भी स्पष्ट किया था कि मतदाता सूची में किसी को शामिल करना या बाहर करना चुनाव आयोग का अधिकार क्षेत्र है। कोर्ट ने बिहार में एसआईआर में आधार और मतदाता कार्ड को नागरिकता प्रमाण के रूप में स्वीकार न करने के चुनाव आयोग के रुख को दोहराया। एसआईआर पर जारी विवाद पर कोर्ट ने कहा कि यह काफी हद तक विश्वास की कमी का मुद्दा है। 

चुनाव आयोग के अनुसार, बिहार की कुल 7.9 करोड़ मतदाता आबादी में से लगभग 6.5 करोड़ लोग या उनके माता-पिता 2003 की मतदाता सूची में शामिल होने के लिए दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए बाध्य नहीं थे। इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि अधिकांश मतदाता पहले से ही सूची में शामिल हैं और विशेष गहन पुनरीक्षण केवल नई या अद्यतन जानकारी वाले मतदाताओं के लिए लागू है।

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