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Bihar Politics: क्या निशांत कुमार बनेंगे नीतीश के सियासी वारिस? JDU और सहयोगी दलों में उठी एंट्री की मांग

Bihar Politics: क्या निशांत कुमार बनेंगे नीतीश के सियासी वारिस? JDU और सहयोगी दलों में उठी एंट्री की मांग

नीतीश कुमार के बेटे निशांत की राजनीति में एंट्री की अटकलें तेज हैं। पोस्टर और सहयोगी दलों की मांग से हलचल है, लेकिन नीतीश परिवारवाद और चुनावी जोखिम से बचने के लिए अभी चुप हैं।

Bihar Politics: नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार के जन्मदिन पर जेडीयू दफ्तर के बाहर लगे पोस्टरों ने बिहार की सियासत में हलचल मचा दी है। पोस्टरों में लिखा गया, "कार्यकर्ताओं की मांग, चुनाव लड़े निशांत" और "बिहार की मांग, सुन लिए निशांत"। इसके बाद यह सवाल उठने लगे कि क्या अब नीतीश अपने बेटे को राजनीतिक मैदान में उतारने वाले हैं? हालांकि, नीतीश कुमार की चुप्पी इस पूरी चर्चा को और पेचीदा बना रही है।

अब तक क्यों नहीं दिखी निशांत की सियासी भूमिका?

नीतीश कुमार ने अब तक कभी अपने बेटे को राजनीति में आगे नहीं बढ़ाया है। इसके पीछे एक बड़ी वजह यह है कि वे हमेशा परिवारवाद के खिलाफ रहे हैं। लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान के विपरीत, नीतीश ने कभी भी पारिवारिक उत्तराधिकारी की बात नहीं की। लेकिन अब जब उम्र का तकाजा और स्वास्थ्य कारणों से नेतृत्व परिवर्तन की बातें उठ रही हैं, तब जेडीयू और एनडीए के कई सहयोगी दल निशांत को राजनीति में लाने की मांग कर रहे हैं। फिर भी नीतीश सावधानी से कदम बढ़ा रहे हैं।

उम्र और स्वास्थ्य की पृष्ठभूमि में वारिस की चर्चा

नीतीश कुमार 74 साल के हो चुके हैं। स्वास्थ्य को लेकर विपक्ष की तरफ से लगातार सवाल उठाए जाते रहे हैं। हालांकि, निशांत कुमार ने कई बार मीडिया के जरिए इन बातों का खंडन किया और अपने पिता की योजनाओं और आंकड़ों का जिक्र करते हुए जवाब भी दिया। इसके बावजूद, नीतीश कुमार सार्वजनिक तौर पर कभी इस मुद्दे पर बात नहीं करते।

परिवारवाद के आरोप से बचने की रणनीति

नीतीश कुमार की छवि एक ऐसे नेता की रही है जो परिवारवाद के खिलाफ रहे हैं। वे कई बार लालू यादव पर इसी मुद्दे को लेकर हमला करते रहे हैं। अगर वह अब अपने बेटे को राजनीति में लाते हैं, तो उन पर भी परिवारवाद का आरोप लगेगा, जिससे उनकी वर्षों की छवि धूमिल हो सकती है। खासकर जब एनडीए लालू यादव को परिवारवादी नेता कहकर जनता के बीच जाता है, ऐसे में नीतीश खुद वैसा कोई कदम नहीं उठाना चाहते जिससे विपक्ष को हमले का मौका मिले।

जेडीयू में ही नहीं है सर्वसम्मति

जेडीयू के अंदर भी निशांत की सियासी एंट्री को लेकर एक राय नहीं है। कुछ नेता जैसे कौशलेंद्र कुमार, अशोक चौधरी और श्रवण कुमार उनके पक्ष में हैं। लेकिन पार्टी में एक वर्ग ऐसा भी है जो निशांत को अभी राजनीति में नहीं देखना चाहता। यह वर्ग मानता है कि जेडीयू कोई कैडर आधारित पार्टी नहीं है, बल्कि परिस्थितियों से निकली हुई पार्टी है, जिसमें नेतृत्व को लेकर टकराव की संभावना हमेशा बनी रहती है।

सहयोगी दल भी चाहते हैं एंट्री

एनडीए के सहयोगी दलों के नेता भी निशांत की राजनीति में एंट्री का समर्थन कर चुके हैं। उपेंद्र कुशवाहा ने यहां तक कह दिया कि नीतीश कुमार को अब पार्टी की कमान निशांत को सौंप देनी चाहिए। बिहार बीजेपी के कुछ नेता भी इस विचार को समर्थन दे चुके हैं। लेकिन नीतीश कुमार फिलहाल चुप हैं और कोई बयान नहीं दे रहे।

तेजस्वी-चिराग से तुलना का जोखिम

अगर निशांत कुमार राजनीति में आते हैं तो उनकी तुलना स्वाभाविक रूप से तेजस्वी यादव और चिराग पासवान से की जाएगी। तेजस्वी और चिराग दोनों पिछले एक दशक से राजनीति में सक्रिय हैं और अपनी छवि बनाने में सफल रहे हैं। जबकि निशांत कुमार राजनीति में नए होंगे। ऐसे में अनुभव की कमी उनके लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है। नीतीश नहीं चाहते कि उनके बेटे की शुरुआत हार के साथ हो, जिससे पार्टी और उनकी साख दोनों को नुकसान पहुंचे।

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