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बिहार SIR पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: Draft Voter List से हटाए 65 लाख मतदाताओं के नाम

बिहार SIR पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: Draft Voter List से हटाए 65 लाख मतदाताओं के नाम

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से बाहर किए गए लगभग 65 लाख मतदाताओं के मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि इस संबंध में विस्तृत जानकारी अदालत के सामने 9 अगस्त तक प्रस्तुत की जाए।

पटना: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम आदेश जारी करते हुए बिहार में ड्राफ्ट वोटर लिस्ट (Draft Voter List) से हटाए गए लगभग 65 लाख मतदाताओं की जानकारी 9 अगस्त 2025 तक प्रस्तुत करने का निर्देश निर्वाचन आयोग को दिया है। यह आदेश ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR)’ नामक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) की याचिका पर जारी किया गया है, जिसने बिहार में चल रही विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया (Special Intensive Revision – SIR) की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने मांगा हटाए गए वोटर्स का विवरण

जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइंया और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की तीन सदस्यीय पीठ ने निर्वाचन आयोग के अधिवक्ता से स्पष्ट निर्देश में कहा कि वह ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटाए गए मतदाताओं की विस्तृत जानकारी कोर्ट में प्रस्तुत करें, और इसकी एक प्रति ADR को भी सौंपी जाए। कोर्ट ने कहा कि यह डेटा पहले ही राजनीतिक दलों के साथ साझा किया जा चुका है, इसलिए इसे सार्वजनिक हित में एनजीओ के साथ भी साझा किया जाना चाहिए, ताकि प्रक्रिया की पारदर्शिता बनी रहे।

ADR की याचिका में क्या मांग थी?

एनजीओ ADR ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर यह मांग की थी कि बिहार में चुनाव आयोग द्वारा 24 जून को शुरू की गई SIR प्रक्रिया के तहत हटाए गए 65 लाख मतदाताओं की सूची सार्वजनिक की जाए। उन्होंने यह भी अनुरोध किया कि यह भी स्पष्ट किया जाए कि किस कारण से इन मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं — क्या वे मृत, स्थायी रूप से पलायन कर गए हैं, या किसी अन्य कारणवश अयोग्य हो गए हैं।

कोर्ट में निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वकील ने कहा कि यह ड्राफ्ट लिस्ट है, और हटाए गए मतदाताओं से प्रत्येक स्तर पर संपर्क किया जाएगा। आयोग ने यह भी आश्वासन दिया कि हर प्रभावित मतदाता को सूचित किया जाएगा और अंतिम सूची में उनकी आपत्तियों का समुचित समाधान किया जाएगा।

राजनीतिक दलों को मिली जानकारी, लेकिन स्पष्टता नहीं: प्रशांत भूषण

एनजीओ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कोर्ट को बताया कि कुछ राजनीतिक दलों को हटाए गए वोटर्स की सूची दी गई है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया कि किन कारणों से उनके नाम हटाए गए हैं। भूषण ने कहा कि इस प्रक्रिया की पारदर्शिता में गंभीर खामियां हैं और कई मतदाताओं को बिना पर्याप्त दस्तावेजों के हटा दिया गया है।

प्रशांत भूषण ने कोर्ट को बताया कि जिन लोगों के नाम सूची में जोड़े या हटाए गए हैं, उनमें से लगभग 75% मतदाताओं ने जरूरी 11 दस्तावेजों में से कोई भी प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया। ऐसे में यह आशंका जताई जा रही है कि बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) की सिफारिशों के आधार पर ही निर्णय लिए गए हैं, जो निष्पक्षता पर सवाल खड़े करते हैं।

सुनवाई की अगली तारीख

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि मतदाता सूची से “बड़े पैमाने पर नाम हटाए गए” पाए जाते हैं, तो वह तत्काल हस्तक्षेप करेगा। पीठ ने यह भी घोषित किया कि 12 और 13 अगस्त 2025 को इस मामले की विस्तृत सुनवाई की जाएगी, जहां ADR और निर्वाचन आयोग दोनों पक्षों को अपना पक्ष रखने का मौका मिलेगा।

कोर्ट ने कहा कि निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक निकाय है और उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह निष्पक्षता और पारदर्शिता के साथ कार्य करे। पीठ ने जोर दिया कि मतदाता सूची में किसी भी तरह की अनुचित छेड़छाड़ या लापरवाही न केवल लोकतंत्र के लिए हानिकारक है, बल्कि जनता के विश्वास को भी ठेस पहुंचाती है।

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