दिवाली 2025 की अमावस्या पर अघोरी शमशान में महाकाली की पूजा और तांत्रिक साधना करते हैं। यह रात तंत्र साधना के लिए विशेष मानी जाती है क्योंकि चंद्रमा का प्रकाश अनुपस्थित रहता है और नकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रिय होती है। आम श्रद्धालुओं के लिए यह सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जानकारी है।
Diwali 2025 Amavasya Special: दिवाली 2025 की अमावस्या 20 अक्टूबर को पड़ रही है और इस दिन अघोरी शमशान में महाकाली की पूजा करते हैं। काशी और उज्जैन जैसे प्रमुख शमशान घाटों में तांत्रिक मंत्रोच्चारण और विशेष साधनाओं के माध्यम से अघोरी देवी की शक्ति प्राप्त करते हैं। यह रात तंत्र साधना के लिए विशेष मानी जाती है क्योंकि चंद्रमा की अनुपस्थिति और नकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रिय रहती है। आम गृहस्थों को इन अनुष्ठानों से दूर रहना चाहिए और पारंपरिक पूजा विधियों का पालन करना चाहिए।
दिवाली अमावस्या का विशेष महत्व
दिवाली का महापर्व हर साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है और यह पांच दिवसीय पर्व होता है, जिसकी शुरुआत धनतेरस से होती है और भाई दूज पर समाप्त होती है। इस बार दिवाली 20 अक्टूबर 2025 को है। सामान्य रूप से दिवाली पर माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है, लेकिन अमावस्या की रात तंत्र साधना के लिए विशेष मानी जाती है। चंद्रमा की अनुपस्थिति और नकारात्मक ऊर्जा के सक्रिय होने के कारण अघोरी इस रात शमशान में विशेष अनुष्ठान करते हैं।
अघोरी और महाकाली पूजा
अघोरी दिवाली की रात शमशान घाट में महाकाली की पूजा करते हैं। मंत्रोच्चारण और तांत्रिक क्रियाओं के माध्यम से यह साधना की जाती है। इस अनुष्ठान का उद्देश्य तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त करना और देवी की शक्ति से ऊर्जा लेना होता है। काशी के मणिकर्णिका घाट पर दिवाली की रात विशेष नजारे देखने को मिलते हैं, जहां बड़े-बड़े अघोरी और तांत्रिक शव साधना करते हैं। उज्जैन में भी इसी प्रकार की साधना होती है, जिसमें महाकाल की उपस्थिति को औघड़ दानी के रूप में देखा जाता है।
शमशान में तांत्रिक क्रियाएं और आरती
काशी के महा शमशान में बाबा औघड़ दानी की आरती होती है, जिसमें नरमुंडो में खप्पर भरकर 40 मिनट तक तांत्रिक क्रियाएं की जाती हैं। जलती चिताओं के बीच पैर पर खड़े होकर शव साधना करना अघोरी साधना का प्रमुख हिस्सा है। इन अनुष्ठानों के दौरान अघोरी देवी महाकाली की शक्ति प्राप्त करते हैं और अपनी तांत्रिक साधनाओं में सिद्धियां हासिल करने का प्रयास करते हैं।
धार्मिक दृष्टिकोण
वेद, पुराण और शास्त्रों में इस तरह की तंत्र साधना को सही नहीं माना गया है। रामचरित मानस में भी इसे धर्मविरोधी बताया गया है। गृहस्थ जीवन में रहने वाले व्यक्ति को ऐसी साधनाओं से दूर रहना चाहिए। साधना का उद्देश्य आध्यात्मिक विकास होना चाहिए, लेकिन अघोरी साधना विशेष परिस्थितियों और कड़े नियमों के अंतर्गत होती है।
दिवाली 2025 की अमावस्या अघोरी साधना और महाकाली पूजा के लिए विशेष है। शमशान घाट में किए जाने वाले अनुष्ठान, मंत्रोच्चारण और आरती अघोरी साधकों के लिए आध्यात्मिक और तांत्रिक महत्व रखते हैं। सामान्य श्रद्धालुओं के लिए यह जानकारी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। घर और समाज में धर्म और पारंपरिक पूजा विधियों का पालन करना सुरक्षित और उचित माना जाता है।