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ज्ञानवापी विवाद: वादमित्र को हटाने की याचिका खारिज, 1991 के मुकदमे में सुनवाई जारी

ज्ञानवापी विवाद: वादमित्र को हटाने की याचिका खारिज, 1991 के मुकदमे में सुनवाई जारी

ज्ञानवापी मामले में वर्ष 1991 में दाखिल उस महत्वपूर्ण मुकदमे से जुड़ा एक बड़ा फैसला सामने आया है, जिसमें नया मंदिर निर्माण और हिंदुओं को पूजा-पाठ का अधिकार देने की मांग की गई थी। 

Gyanvapi Case Update: ज्ञानवापी परिसर से जुड़े विवादित 1991 के मुकदमे में अहम मोड़ आया है। अदालत ने वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी को हटाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक) भावना भारतीय की अदालत ने यह फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि किसी प्रार्थना पत्र की निरंतरता में दूसरा प्रार्थना पत्र दाखिल करने का प्रावधान नहीं है।

यह फैसला उस याचिका पर आया है, जो हरिहर पांडेय की तीन पुत्रियों द्वारा 31 मई 2025 को दाखिल की गई थी। उन्होंने वादमित्र को हटाने का आग्रह इस आधार पर किया था कि विजय शंकर रस्तोगी एक निजी ट्रस्ट के पदाधिकारी हैं और इस कारण से वह आम हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं।

क्या है ज्ञानवापी केस की पृष्ठभूमि?

ज्ञानवापी परिसर वाराणसी में स्थित है और यह स्थान लंबे समय से हिंदू-मुस्लिम धार्मिक विवाद का केंद्र रहा है। वर्ष 1991 में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें ज्ञानवापी परिसर में नया मंदिर निर्माण और हिंदू समुदाय को पूजा का अधिकार देने की मांग की गई थी। इस मुकदमे में हरिहर पांडेय वादी के रूप में शामिल थे, जिनके निधन के बाद अब उनकी तीन बेटियां इस केस को आगे बढ़ा रही हैं।

वादमित्र को हटाने की मांग क्यों हुई?

31 मई 2025 को वकील आशीष कुमार श्रीवास्तव की ओर से अदालत में एक प्रार्थना पत्र दाखिल किया गया। इसमें तर्क दिया गया कि विजय शंकर रस्तोगी एक निजी ट्रस्ट से जुड़े हैं और इस कारण वे जनहित से जुड़े मुकदमे में वादमित्र की भूमिका नहीं निभा सकते। उन्होंने यह भी कहा कि प्राइवेट ट्रस्ट केवल अपनी संपत्ति से जुड़े मामलों में पक्षकार हो सकता है, जबकि यह मुकदमा समूचे हिंदू समुदाय के धार्मिक अधिकारों से जुड़ा है। इसलिए, हरिहर पांडेय की बेटियों को प्राकृतिक और उपयुक्त पक्षकार माना जाना चाहिए।

अदालत ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि: किसी भी प्रार्थना पत्र की निरंतरता में दूसरा प्रार्थना पत्र देने की कोई वैधानिक व्यवस्था नहीं है। यह दोनों प्रार्थना पत्र उसी श्रृंखला में दिए गए हैं, जिससे वे पोषणीय नहीं माने जा सकते। इस आधार पर वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी को हटाने की याचिका खारिज कर दी गई और उन्हें केस में पूर्ववत वादमित्र बनाए रखा गया है।

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