काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी में स्थित, भगवान शिव को समर्पित प्रमुख ज्योतिर्लिंग स्थल है। इसका इतिहास प्राचीन काल से लेकर आधुनिक पुनर्निर्माण तक संघर्षों और भक्तिभाव से भरा रहा है। यह मंदिर अपने सुनहरे गुंबद और गंगा से जुड़े कॉरिडोर के लिए प्रसिद्ध है।
Kashi Vishwanath: भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर में काशी विश्वनाथ मंदिर का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह मंदिर केवल एक पूजा स्थल नहीं है, बल्कि यह भारतीय सभ्यता, इतिहास और आध्यात्मिकता का प्रतीक भी है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर का अर्थ है “विश्व का अधिपति”। भगवान शिव को यहाँ “विश्वनाथ” और “विश्वेश्वर” के नाम से पूजा जाता है। यह मंदिर वाराणसी की गलियों और गंगा नदी के किनारे स्थित है, और हिंदू धर्मावलंबियों के लिए मोक्ष प्राप्ति का प्रमुख केंद्र माना जाता है।
प्राचीन इतिहास और स्थापना
पुराणों में वर्णित है कि काशी विश्वनाथ मंदिर की उत्पत्ति अत्यंत प्राचीन काल में हुई। स्कंद पुराण में “काशी खंड” और ब्रह्मवैवर्त पुराण में “काशी रहस्य” के अंतर्गत इस मंदिर और शहर के महत्व का उल्लेख है। काशी खंड के अनुसार, वाराणसी में कुल 1099 मंदिर थे, जिनमें से 513 मंदिर शिव को समर्पित थे। इस मंदिर का मूल नाम मोक्ष लक्ष्मी विलास था।
मंदिर में पाँच मण्डप थे — ज्ञान मण्डप, रंग मण्डप, ऐश्वर्य मण्डप, मुक्ति मण्डप और मुख्य गर्भगृह जिसमें शिवलिंग स्थापित था। यहाँ स्थापित शिवलिंग भगवान शिव की अनंत और निराकार शक्ति का प्रतीक है।
धार्मिक मान्यता और ज्योतिर्लिंग
काशी विश्वनाथ मंदिर का धार्मिक महत्व इसके ज्योतिर्लिंग से जुड़ा हुआ है। ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का वह स्वरूप है जिसमें वे अनंत प्रकाश स्तंभ के रूप में प्रकट हुए। किंवदंतियों के अनुसार, ब्रह्मा और विष्णु के बीच सर्वोच्चता का विवाद होने पर भगवान शिव ने अनंत स्तंभ का रूप धारण किया। विष्णु ने वराह के रूप में स्तंभ की उत्पत्ति खोजने का प्रयास किया, जबकि ब्रह्मा हंस बनकर उसकी चोटी की खोज में लगे।
हालांकि, ब्रह्मा ने छल किया और कहा कि उन्होंने स्तंभ की चोटी देख ली, जबकि विष्णु ने अपनी असफलता स्वीकार की। इस deception के कारण शिव ने ब्रह्मा को उसका पाँचवाँ सिर काटकर शाप दिया कि उन्हें कभी पूजा नहीं मिलेगा, जबकि विष्णु और शिव को हमेशा पूजा मिलेगी। यही कारण है कि काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव और विष्णु की पूजा समान रूप से होती है।
मध्यकालीन इतिहास और विध्वंस
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास संघर्षों और पुनर्निर्माणों से भरा हुआ है। मूल मंदिर जिसे आदि विश्वेश्वर मंदिर कहा जाता था, 1194 ईस्वी में मोहम्मद गोरी के आक्रमण के दौरान नष्ट कर दिया गया। इसके बाद, यह मंदिर कई बार पुनः निर्मित हुआ। अकबर के शासनकाल में राजा मान सिंह और टोडर मल ने मंदिर का पुनर्निर्माण किया।
लेकिन 1669 में मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने मंदिर को फिर से ध्वस्त कर दिया और इसके स्थान पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया। इसके बावजूद हिंदू श्रद्धालु मंदिर के अवशेषों पर पूजा करते रहे।
मराठा काल और वर्तमान मंदिर
अहिल्याबाई होलकर ने 1780 में वर्तमान मंदिर का निर्माण ज्ञानवापी मस्जिद के पास कराया। यह मंदिर मराठा स्थापत्य शैली में बनाया गया और इसे समय-समय पर कई सुधारों और संवर्धनों से गुज़ारा गया।
सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह ने 1835 में मंदिर की गुंबद पर सोने की परत चढ़ाने के लिए एक टन सोना दान किया। यही कारण है कि इसे आमतौर पर गोल्डन टेम्पल ऑफ वाराणसी कहा जाता है।
मंदिर परिसर और संरचना
काशी विश्वनाथ मंदिर केवल एक मुख्य मंदिर नहीं है, बल्कि इसके आसपास कई छोटे मंदिर और पूजास्थल हैं। यहाँ भगवान शिव के अलावा काल भैरव, कार्तिकेय, अविमुक्तेश्वर, विष्णु, गणेश, शनि और पार्वती के छोटे मंदिर हैं।
मुख्य मंदिर में 60 सेंटीमीटर ऊँचा और 90 सेंटीमीटर व्यास वाला शिवलिंग स्थापित है, जो चांदी की पट्टियों पर रखा गया है। मंदिर की संरचना तीन भागों में विभाजित है — 15.5 मीटर ऊँचा शिखर, सोने की गुंबद और गर्भगृह के भीतर का स्वर्ण शिखर जिसमें ध्वज और त्रिशूल लगाया गया है।
मंदिर में ज्ञान वापी नामक एक कुआँ भी है, जिसमें मूर्तियों और शिवलिंग को आक्रमणकारियों से बचाने के लिए छिपाया गया था।
धार्मिक महत्व
वाराणसी और काशी विश्वनाथ मंदिर का धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। गंगा नदी में स्नान और मंदिर की पूजा से मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है। श्रद्धालु यहाँ अपनी एक इच्छा त्यागने और पुण्य प्राप्ति के लिए आते हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर का संबंध केवल वाराणसी तक सीमित नहीं है। यह पूरे भारत के हिंदू धर्मावलंबियों के लिए महत्वपूर्ण तीर्थस्थान है। यहाँ की परंपरा और रीति-रिवाज हजारों वर्षों से जारी हैं।
प्रमुख उत्सव और पूजा
मंदिर में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान और उत्सव मनाए जाते हैं। इनमें प्रमुख हैं — रंगभरी एकादशी, वसंत पंचमी, महाशिवरात्रि और बाबा विश्वनाथ की शादी।
रंगभरी एकादशी पर बाबा विश्वनाथ को माता पार्वती के साथ जोड़कर विशेष अनुष्ठान किया जाता है। महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा और जागरण रात भर चलता है। मंदिर में दिनचर्या के अनुसार, मंगला आरती सुबह 3:30 बजे, भोग आरती 12 बजे, सप्तर्षि आरती 7:30 बजे और श्रृंगार आरती 11 बजे की जाती है।
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर
2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन किया गया। इस परियोजना से मंदिर और गंगा घाट के बीच की दूरी कम हुई और श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएँ बढ़ीं। कॉरिडोर निर्माण के दौरान लगभग 1400 परिवारों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को पुनः बसाया गया और 40 से अधिक प्राचीन मंदिरों का पुनर्निर्माण हुआ।
कॉरिडोर निर्माण के बाद मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या बहुत बढ़ गई। 2023 में दैनिक औसत 45,000 तीर्थयात्री यहाँ दर्शन करने आए।
काशी विश्वनाथ मंदिर न केवल भगवान शिव की भक्ति का केंद्र है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, इतिहास और आध्यात्मिकता का प्रतीक भी है। यहाँ के ज्योतिर्लिंग, मंदिर की ऐतिहासिक धरोहर, उत्सव और पौराणिक कथाएँ इसे विश्वभर में प्रसिद्ध बनाती हैं। वाराणसी आने वाले हर श्रद्धालु के लिए यह यात्रा केवल दर्शन का अवसर नहीं, बल्कि जीवन को मोक्ष की ओर ले जाने वाला एक आध्यात्मिक अनुभव भी है।