बढ़ता स्क्रीन टाइम और तनाव युवाओं में माइग्रेन, नींद की कमी और मानसिक थकान की बड़ी वजह बन रहा है। लंबे समय तक मोबाइल या लैपटॉप पर रहने से आंखों पर दबाव और दिमाग पर तनाव बढ़ता है। विशेषज्ञों के अनुसार, डिजिटल डिटॉक्स, योग और पर्याप्त नींद से इन समस्याओं से राहत पाई जा सकती है।
Screen Time: आज के डिजिटल युग में युवाओं के बढ़ते स्क्रीन टाइम और मानसिक तनाव का सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। जीबी पंत अस्पताल के पूर्व एचओडी डॉ. दलजीत सिंह के अनुसार, लंबे समय तक स्क्रीन पर काम करने और करियर प्रेशर के चलते युवाओं में माइग्रेन, नींद की कमी, चिड़चिड़ापन और आंखों की थकान जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि हर 30 मिनट में ब्रेक लेना, सोने से पहले स्क्रीन से दूरी बनाना, ध्यान और योग को दिनचर्या में शामिल करना इन लक्षणों से बचाव का प्रभावी तरीका है।
दिनभर स्क्रीन पर नजरें और दिमाग पर बोझ
डिजिटल युग में पढ़ाई से लेकर काम और मनोरंजन तक हर चीज स्क्रीन के जरिये पूरी की जा रही है। मोबाइल और लैपटॉप युवाओं की दिनचर्या का अहम हिस्सा बन चुके हैं। कई युवा दिनभर ऑनलाइन क्लास, ऑफिस मीटिंग और सोशल मीडिया में व्यस्त रहते हैं। इससे न केवल आंखों पर बल्कि दिमाग पर भी लगातार दबाव बना रहता है। करियर को लेकर तनाव, सोशल मीडिया पर तुलना और भविष्य की अनिश्चितता इन समस्याओं को और बढ़ा रही है।
जब आंखें लंबे समय तक स्क्रीन पर टिकी रहती हैं, तो दिमाग को पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता। लगातार एक्टिव रहने के कारण मानसिक थकान बढ़ जाती है। यही वजह है कि कई युवा आजकल सिरदर्द, नींद न आना और चिड़चिड़ेपन जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं।
मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर
स्क्रीन टाइम और तनाव का सीधा असर दिमाग, आंखों और नींद पर पड़ता है। लंबे समय तक मोबाइल या लैपटॉप देखने से आंखों में जलन, सूखापन और धुंधलापन महसूस होता है। लगातार मानसिक दबाव से माइग्रेन, गर्दन-दर्द, चिड़चिड़ापन और ध्यान की कमी जैसी दिक्कतें आम हो जाती हैं।
नींद पूरी न होने से शरीर को आराम नहीं मिल पाता। इसके कारण हॉर्मोनल असंतुलन और इम्यूनिटी कमजोर हो सकती है। कई मामलों में नींद की कमी के चलते व्यक्ति का व्यवहार बदल जाता है। उसका आत्मविश्वास घटता है और काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है। लंबे समय तक यह स्थिति बनी रहे तो डिप्रेशन, एंग्जायटी और हाई ब्लड प्रेशर जैसी गंभीर समस्याएं सामने आ सकती हैं।
डिजिटल जीवन में बढ़ता तनाव

सोशल मीडिया पर घंटों समय बिताना, लगातार नोटिफिकेशन चेक करना और ऑनलाइन प्रतिस्पर्धा का दबाव युवाओं में चिंता को और बढ़ा रहा है। हर समय दूसरों की जिंदगी से तुलना करना मानसिक शांति को खत्म कर देता है। कई युवा सोशल मीडिया पर दिखने वाली चमकदार जिंदगी से खुद को कमतर महसूस करने लगते हैं। इस स्थिति में तनाव धीरे-धीरे माइग्रेन और नींद की गड़बड़ी का कारण बन जाता है।
डॉक्टरों की राय में क्या है वजह
जीबी पंत अस्पताल के न्यूरोसर्जरी विभाग के पूर्व एचओडी डॉ. दलजीत सिंह का कहना है कि लगातार स्क्रीन के संपर्क में रहने से मस्तिष्क की एक्टिविटी बढ़ जाती है। जब तक आंखें स्क्रीन पर होती हैं, दिमाग आराम नहीं कर पाता। अगर यह स्थिति रोजाना बनी रहे, तो यह नींद की कमी और सिरदर्द का प्रमुख कारण बन जाती है।
डॉ. सिंह के अनुसार, हर तीस मिनट में कुछ देर का ब्रेक लेना जरूरी है ताकि आंखों को और दिमाग को थोड़ा आराम मिल सके। सोने से पहले एक घंटा स्क्रीन से दूरी बनाए रखना चाहिए ताकि दिमाग शांत हो सके। उन्होंने बताया कि युवा अकसर देर रात तक मोबाइल चलाते हैं जिससे नींद का पैटर्न बिगड़ जाता है। यह दिमाग की कार्यक्षमता को प्रभावित करता है और धीरे-धीरे माइग्रेन का कारण बनता है।
बदलती जीवनशैली और डिजिटल डिटॉक्स की जरूरत
युवाओं की बदलती जीवनशैली में डिजिटल उपकरणों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। सुबह उठते ही मोबाइल देखना और रात को सोने से पहले भी स्क्रीन पर नजर रखना आम बात हो गई है। इस आदत के कारण शरीर और दिमाग दोनों को आराम नहीं मिल पाता। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि ‘डिजिटल डिटॉक्स’ यानी कुछ समय के लिए मोबाइल और इंटरनेट से दूरी बनाना जरूरी है।













