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मंदिर में खाली शंख रखना क्यों है अशुभ: जाने कंगाली दूर करने के आसान उपाय

मंदिर में खाली शंख रखना क्यों है अशुभ: जाने कंगाली दूर करने के आसान उपाय

हिंदू धर्म और वास्तु शास्त्र में शंख को अत्यंत पवित्र और मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। मंदिर या पूजा स्थल में खाली शंख रखना अशुभ माना गया है क्योंकि यह नकारात्मक ऊर्जा बढ़ा सकता है और घर में धन-संपदा की हानि का कारण बन सकता है। शंख को हमेशा भरा, साफ और उचित दिशा में रखना आवश्यक है।

शंख का धार्मिक महत्व: हिंदू धर्म में शंख को देवी-देवताओं का प्रिय और शुभ प्रतीक माना जाता है, इसलिए मंदिर या पूजा स्थल में इसे खाली रखना अशुभ माना जाता है। भारत में कई परिवार और धार्मिक स्थल शंख में गंगाजल, फूल या चावल भरकर इसे भरा रखते हैं। यह उपाय न केवल घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, बल्कि आर्थिक और मानसिक स्थिरता भी सुनिश्चित करता है। शंख की सही दिशा, रखरखाव और पूजा से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं।

शंख का धार्मिक और वास्तु महत्व

हिंदू धर्म में शंख को देवी-देवताओं का प्रिय और शुभ प्रतीक माना गया है। शंखनाद से वातावरण शुद्ध होता है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। वास्तु शास्त्र और ज्योतिष के अनुसार, शंख को पूजा स्थल पर खाली रखना अशुभ माना जाता है। शंख में दैवीय ऊर्जा समाहित होती है, और इसे खाली छोड़ने से वह अपनी शक्ति खो देता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश बढ़ सकता है और घर में आर्थिक हानि या दरिद्रता आने का खतरा रहता है।

शंख को मां लक्ष्मी का छोटा रूप भी माना जाता है। समुद्र मंथन के समय उत्पन्न शंख का संबंध लक्ष्मी से जोड़ा गया है। मंदिर में खाली शंख रखना, मानो घर में लक्ष्मी के स्थान को खाली छोड़ना हो, जिससे देवी अप्रसन्न हो सकती हैं। इसलिए शंख को हमेशा भरा हुआ रखना चाहिए ताकि उसकी शुभ ऊर्जा और सकारात्मकता बनी रहे।

मंदिर में खाली शंख रखने से होने वाले प्रभाव

शास्त्रों के अनुसार, मंदिर या पूजा स्थल पर खाली शंख रखने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। इससे घर का वातावरण अस्थिर और अशांति पूर्ण हो सकता है। आर्थिक दृष्टि से भी यह अशुभ माना गया है, क्योंकि शंख में भरी ऊर्जा धन, वैभव और समृद्धि का प्रतीक होती है।

वास्तु शास्त्र में भी इसे महत्वपूर्ण माना गया है। पूजा स्थल में खाली शंख रखने से न केवल धन हानि का सामना करना पड़ सकता है, बल्कि घर में सुख-शांति और वैभव की कमी भी दिखाई दे सकती है। इसलिए शंख को हमेशा भरा रखने और उसकी शुद्धता बनाए रखने पर जोर दिया गया है।

कंगाल होने से बचने के लिए रोज़ाना करने योग्य उपाय

शंख को भरा रखना और उसकी ऊर्जा को बनाए रखना बेहद महत्वपूर्ण है। सुबह पूजा करने से पहले या दौरान शंख को साफ करें और उसमें शुद्ध जल या गंगाजल भरें। यह जल शंख की दैवीय शक्ति को सक्रिय करता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा फैलाता है।

इस जल का छिड़काव पूरे घर में करना शुभ माना जाता है। इसे व्यर्थ न फेंके। घर के मंदिर, आंगन या पूजा स्थल पर इस पवित्र जल को छिड़कने से वास्तु दोष दूर होता है और बुरी शक्तियों का प्रवेश रोका जा सकता है। शंख में भरा जल भगवान के अभिषेक या स्नान के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जो अत्यंत फलदायी माना जाता है।

फूल, चावल या अन्य पवित्र वस्तुएं शंख में रखने से भी लाभ होता है। विशेष रूप से चावल को लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। शंख में चावल भरकर रखने से घर में धन-संपदा और वैभव की वृद्धि होती है।

शंख रखने के अन्य महत्वपूर्ण नियम

शंख रखने के कुछ खास नियम हैं, जिन्हें पालन करना आवश्यक है। सबसे पहले दिशा का ध्यान रखें। शंख को मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति के दाईं तरफ रखना सबसे शुभ माना गया है। इसके अलावा उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) दिशा में भी इसे रखना लाभकारी है।

शंख को सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए। इसे किसी साफ कपड़े (लाल या पीला) पर रखें या तांबे/पीतल की प्लेट पर आसन देकर स्थापित करें। इससे शंख की पवित्रता बनी रहती है और ऊर्जा का प्रवाह सही रहता है।

मंदिर में एक से अधिक शंख नहीं रखने चाहिए। ऐसा माना जाता है कि अधिक शंख रखने से लक्ष्मी की कृपा कम हो सकती है। हालांकि, पूजा के लिए एक और शंख रखना उचित माना गया है। टूटा हुआ, फटा हुआ या खंडित शंख कभी भी मंदिर में नहीं रखना चाहिए, क्योंकि यह अशुभ माना जाता है।

शंख की नियमित देखभाल और पूजा के लाभ

शंख की नियमित देखभाल करना आवश्यक है। इसे रोजाना साफ करें और आवश्यकतानुसार जल, फूल या चावल डालें। सुबह-शाम शंख का व्रत और पूजा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और धन-संपदा बनी रहती है।

शंख की पूजा से मानसिक शांति, आध्यात्मिक ऊर्जा और घर में सुख-समृद्धि आती है। शंख का नियमपूर्वक रखरखाव और पूजा करने से व्यक्ति नकारात्मक प्रभावों और नकारात्मक ऊर्जा से बचा रहता है। यह धार्मिक और सामाजिक दोनों दृष्टियों से लाभकारी है।

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