राज्य के नागौर जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है जहां सरकारी सेवा में कार्यरत 11 डॉक्टरों पर खुद के निजी अस्पताल और क्लिनिक चलाने का आरोप लगा है। शिकायत मिलते ही प्रशासन और चिकित्सा विभाग हरकत में आ गया है और जांच शुरू कर दी गई है। ये मामला न सिर्फ सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाने वाला है, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं की निष्पक्षता और ईमानदारी पर भी सवाल खड़े करता है।
क्या है पूरा मामला?
सूत्रों के अनुसार, नागौर के जिला अस्पताल और उससे जुड़े प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHC) में कार्यरत 11 डॉक्टरों के खिलाफ शिकायत मिली कि वे सरकारी ड्यूटी के साथ-साथ निजी प्रैक्टिस कर रहे हैं। खास बात यह है कि इनमें से कई डॉक्टरों ने अपने नाम से या परिवारजनों के नाम से निजी अस्पताल और नर्सिंग होम भी खोल रखे हैं।
इन डॉक्टरों पर यह भी आरोप है कि वे सरकारी अस्पताल में मरीजों को सही इलाज देने के बजाय उन्हें अपने निजी अस्पतालों की ओर रेफर करते थे, जिससे आर्थिक लाभ उठा सकें। इससे सरकारी अस्पतालों की विश्वसनीयता और सेवाओं पर गंभीर असर पड़ा है।
कैसे हुआ खुलासा?
स्वास्थ्य विभाग को कुछ समय पहले आरटीआई और गुप्त शिकायतों के माध्यम से जानकारी मिली थी कि कुछ डॉक्टर अपनी ड्यूटी के दौरान गायब रहते हैं, और निजी क्लिनिक में देखे जाते हैं। इसके बाद जिला प्रशासन ने एक जांच समिति गठित की, जिसने कुछ डॉक्टरों की निजी गतिविधियों पर निगरानी रखी।प्रारंभिक जांच में यह बात सामने आई कि कई डॉक्टरों के नाम पर राजस्थान के हेल्थकेयर रजिस्ट्रेशन पोर्टल पर निजी नर्सिंग होम रजिस्टर्ड हैं। कुछ मामलों में उनके परिजन के नाम पर संस्थान चल रहे हैं, लेकिन संचालन की जिम्मेदारी संबंधित डॉक्टर की ही है।
विभागीय कार्रवाई शुरू
राज्य के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा है कि दोषी पाए जाने पर संबंधित डॉक्टरों पर सस्पेंशन से लेकर सेवा समाप्ति तक की कार्रवाई की जा सकती है। विभागीय सूत्रों के अनुसार, कई डॉक्टरों की रोजाना हाजिरी और सीसीटीवी फुटेज भी खंगाली जा रही है। नागौर के सीएमएचओ (मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी) डॉ. हरीश गोधा ने कहा:शिकायत की पुष्टि होते ही उचित कार्रवाई की जाएगी। सरकारी डॉक्टरों का निजी प्रैक्टिस करना नियमों के खिलाफ है। जांच में जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ सख्त विभागीय कदम उठाए जाएंगे।
नियम क्या कहते हैं?
सरकारी सेवा में कार्यरत डॉक्टरों के लिए स्पष्ट नियम है कि वे ड्यूटी के दौरान किसी भी प्रकार की निजी प्रैक्टिस या व्यावसायिक गतिविधि में भाग नहीं ले सकते। यहां तक कि कार्य के बाद भी बिना सक्षम प्राधिकारी की अनुमति के निजी प्रैक्टिस करना गैरकानूनी है। राज्य सरकार की सेवा शर्तों के अनुसार, सरकारी डॉक्टरों द्वारा निजी हॉस्पिटल चलाना "हितों का टकराव" (Conflict of Interest) की श्रेणी में आता है।
इस खुलासे के बाद स्थानीय नागरिकों में भी रोष है। एक मरीज के परिजन राजकुमार राव ने बताया: हम जब सरकारी अस्पताल गए तो डॉक्टर ने कहा कि जांच यहां ठीक से नहीं हो पाएगी, आप फलां नर्सिंग होम चले जाइए। बाद में पता चला कि वो हॉस्पिटल उसी डॉक्टर का है। ये तो सीधा धोखा है।