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उत्तर बिहार में कांग्रेस पर गहराया संकट, 71 में सिर्फ एक सीट पर काबिज, देखें पूरा समीकरण

उत्तर बिहार में कांग्रेस पर गहराया संकट, 71 में सिर्फ एक सीट पर काबिज, देखें पूरा समीकरण

उत्तर बिहार में कांग्रेस की स्थिति बेहद कमजोर है। 71 सीटों में उसके पास केवल एक विधायक है। दशकों से घटते जनाधार, संगठन की कमी और हार की श्रृंखला ने पार्टी की चुनावी संभावनाओं को सीमित कर दिया है।

Bihar Politics: उत्तर बिहार में कांग्रेस के लिए विधानसभा चुनाव किसी बड़ी परीक्षा से कम नहीं है। प्रदेश के इस हिस्से की 71 सीटों में पार्टी के पास सिर्फ एक विधायक है। मुजफ्फरपुर विधानसभा क्षेत्र से विजेंद्र चौधरी कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि हैं। कांग्रेस ने इस बार भी उन्हें दोबारा मैदान में उतारा है, लेकिन उनकी जीत आसान नहीं मानी जा रही। पिछले ढाई दशक से पार्टी जिले में लगातार हाशिए पर रही है। वर्ष 2010 में कांग्रेस के सभी उम्मीदवार हार गए थे, जबकि पिछले चुनाव में सिर्फ विजेंद्र चौधरी ने जीत दर्ज कर पार्टी को जीवित रखने का काम किया था।

मुजफ्फरपुर में कांग्रेस का एकमात्र चेहरा

मुजफ्फरपुर जिले की राजनीति में कभी कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था, लेकिन अब पार्टी की स्थिति बेहद कमजोर हो चुकी है। इस बार विजेंद्र चौधरी के अलावा कांग्रेस ने सकरा से उमेश कुमार राम को उम्मीदवार बनाया है। हालांकि दोनों सीटों पर जीत आसान नहीं दिख रही। स्थानीय समीकरण, जातीय गणित और गठबंधन की राजनीति ने इन सीटों को बेहद चुनौतीपूर्ण बना दिया है।

18 उम्मीदवार मैदान में, जीत की राह कठिन

उत्तर बिहार की 71 सीटों में कांग्रेस के कुल 18 प्रत्याशी मैदान में हैं। इनमें बेनीपट्टी से नलिनी रंजन झा रूपम, फुलपरास से सुबोध मंडल, रीगा से अमित कुमार टुन्ना, बथनाहा (सुरक्षित) से इंजीनियर नवीन कुमार, सुरसंड से सैयद अबू दोजाना, रक्सौल से श्याम बिहारी प्रसाद, गोविंदगंज से शशिभूषण राय, नौतन से अमित कुमार, चनपटिया से अभिषेक रंजन, बेतिया से वसी अहमद, नरकटियागंज से शाश्वत केदार, वाल्मीकिनगर से सुरेंद्र प्रसाद, बगहा से जयेश मंगल सिंह, बेनीपुर से मिथिलेश चौधरी, जाले से ऋषि मिश्रा और रोसड़ा (सु) से बीके रवि शामिल हैं। इन सभी के लिए भी जीत की राह मुश्किल दिख रही है।

जिले में कांग्रेस का खोया वर्चस्व

मुजफ्फरपुर जिले के 11 विधानसभा क्षेत्रों में कभी कांग्रेस का अभेद्य किला हुआ करता था। 1977 से पहले तक कांग्रेस यहाँ की प्रमुख ताकत थी, लेकिन उसके बाद पार्टी का जनाधार लगातार कमजोर होता गया। 1995 में रघुनाथ पांडेय की हार के बाद कांग्रेस का जिले से सफाया हो गया था। 25 साल बाद 2020 के चुनाव में विजेंद्र चौधरी की जीत ने पार्टी को फिर से जिलास्तर पर पहचान दिलाई।

90 के दशक से लगातार गिरावट

1990 के बाद से कांग्रेस मुजफ्फरपुर में लगातार हार का सामना करती रही है। कभी जिले की राजनीति में कांग्रेस की पकड़ इतनी मजबूत थी कि विरोधी दल मुकाबले में आने से कतराते थे, लेकिन समय के साथ पार्टी कमजोर होती चली गई। अब हालत यह है कि कांग्रेस के उम्मीदवारों को दूसरे या तीसरे स्थान पर आने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है।

2010 में बुरी तरह हार, 2015 में नहीं लड़ा चुनाव

2010 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जिले के सभी 11 क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारे, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई। यहां तक कि कोई उम्मीदवार दूसरे स्थान पर भी नहीं आ सका। इस करारी हार के बाद 2015 में पार्टी ने जिले में अपने बूते चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटाई। उस चुनाव में कांग्रेस ने एक भी प्रत्याशी नहीं उतारा, जिससे साफ हो गया कि पार्टी स्थानीय स्तर पर संगठन के अभाव से जूझ रही है।

2020 में विजेंद्र चौधरी ने दिलाई उम्मीद

पिछले चुनाव में कांग्रेस ने जिले की तीन विधानसभा सीटों — मुजफ्फरपुर, पारू और सकरा — से प्रत्याशी उतारे थे। इनमें से सिर्फ विजेंद्र चौधरी ने भाजपा के सुरेश कुमार को हराकर जीत दर्ज की। इस जीत ने कांग्रेस को लंबे अंतराल के बाद जिले में राजनीतिक अस्तित्व दिलाया। पारू से अनुनय प्रसाद सिन्हा और सकरा से उमेश कुमार राम मैदान में थे, लेकिन दोनों को हार का सामना करना पड़ा।

जिले में कांग्रेस की आखिरी जीत का इतिहास

मुजफ्फरपुर जिले में कांग्रेस की आखिरी बड़ी जीतें बीते दशकों में दर्ज हुई थीं। 1972 में पारू से वीरेंद्र कुमार सिंह, कांटी से शंभु शरण ठाकुर और औराई से राम बाबू सिंह विजेता रहे थे। 1980 में बरुराज से जमुना सिंह और सकरा से फकीरचंद राम ने जीत दर्ज की। 1985 में साहेबगंज से नवल किशोर सिन्हा और कुढ़नी से शिवनंदन राय जीते। वहीं 2020 में मुजफ्फरपुर से विजेंद्र चौधरी ने कांग्रेस को फिर से मानचित्र पर लौटाया। इन आंकड़ों से साफ है कि कांग्रेस का सुनहरा दौर 1980 के दशक में खत्म हो चुका था।

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