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उत्तराखंड पंचायत चुनाव 2025: कांग्रेस के सामूहिक नेतृत्व की असली परीक्षा, क्या होगी मिशन 2027 की दिशा?

उत्तराखंड पंचायत चुनाव 2025: कांग्रेस के सामूहिक नेतृत्व की असली परीक्षा, क्या होगी मिशन 2027 की दिशा?

उत्तराखंड में आगामी पंचायत चुनाव को लेकर कांग्रेस के भीतर सरगर्मियां तेज़ हैं। सवाल यह है कि क्या पार्टी सामूहिक नेतृत्व की ताकत के सहारे भाजपा की रणनीति को मात दे पाएगी, या फिर गुटीय खींचतान।

देहरादून: उत्तराखंड कांग्रेस इन दिनों न केवल अपनी राजनीतिक जमीन को फिर से तलाश रही है, बल्कि संगठनात्मक एकता और नेतृत्व क्षमता की कठिन परीक्षा से भी गुजर रही है। राज्य में होने जा रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव पार्टी के लिए केवल चुनावी जंग नहीं, बल्कि मिशन 2027 की रणनीतिक नींव साबित हो सकते हैं। सवाल यही है कि क्या कांग्रेस का सामूहिक नेतृत्व प्रदेश में पार्टी की नैया पार लगाएगा या पुरानी गुटबाज़ी की दीमक फिर से संगठन को खोखला कर देगी?

हाईकमान ने खींची लक्ष्मण रेखा

लोकसभा चुनाव 2024 में करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने संगठन को भीतर से सुदृढ़ करने की दिशा में कदम उठाए। इसी क्रम में दिल्ली में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की बैठक हुई, जिसमें प्रदेश के सभी बड़े नेताओं को सामूहिकता और समन्वय की सीख दी गई। प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य और प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव सभी को पार्टी की रणनीति के तहत एक मंच पर लाया गया। सवाल यह है कि क्या यह एकता पंचायत चुनाव की धरातली राजनीति में उतर पाएगी?

पंचायत चुनाव की रणनीति: दो स्तरों पर सियासी गणित

कांग्रेस ने जिला पंचायत स्तर पर पार्टी समर्थित प्रत्याशियों को मैदान में उतारने का फैसला लिया है। वहीं, क्षेत्र पंचायत और ग्राम पंचायत स्तर पर चुनाव को खुला रखा गया है। यह रणनीति दो धारी तलवार जैसी है। एक ओर पार्टी के लिए व्यापक पहुंच बनाने का मौका है, तो दूसरी ओर इससे गुटीय खींचतान और आपसी टकराव की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं। पूर्व की निकाय चुनावों में भी टिकट वितरण को लेकर खींचतान सामने आई थी, जिसने पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया था।

आंकड़ों में ताकत, लेकिन संगठन में बिखराव?

राज्य के पंचायत चुनावों में कुल 47.72 लाख ग्रामीण मतदाता हिस्सा लेंगे। कांग्रेस के लिए यह एक बड़ा जनाधार है, जिसे साधा जा सकता है, बशर्ते पार्टी संगठित रूप से कार्य करे। जिला पंचायत चुनावों में पार्टी अपने नाम के साथ उतर रही है, जिससे मतदाताओं तक स्पष्ट संदेश जाएगा। लेकिन ग्राम और क्षेत्र पंचायतों में खुले चुनावों के चलते कई क्षेत्रों में एक ही पार्टी के नेता अलग-अलग प्रत्याशियों को समर्थन देते नजर आएंगे। यही वह बिंदु है, जहां से संगठन के भीतर असंतोष की चिंगारी सुलग सकती है।

मिशन 2027: पंचायत की परख से निकलेगी नीति

वर्ष 2027 में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव होने हैं। कांग्रेस के लिए पंचायत चुनाव केवल सीटें जीतने का लक्ष्य नहीं है, बल्कि यह एक सेमीफाइनल की तरह है, जो आने वाले चुनावों के लिए जनता की नब्ज को परखेगा। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि पंचायत चुनावों के प्रदर्शन के आधार पर मिशन 2027 की रणनीति तैयार होगी। जो नेता इन चुनावों में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराएंगे, वे संगठन में प्रभावशाली भूमिका निभाएंगे।

भाजपा राज्य में पंचायत से लेकर विधानसभा तक संगठित चुनावी ढांचे के साथ उतरती है। पिछली बार भाजपा ने गांव-गांव तक अपने कैडर को सक्रिय कर चुनावी जीत हासिल की थी। कांग्रेस के लिए यह मुकाबला सिर्फ भाजपा से नहीं, बल्कि अपने अंतर्विरोधों से भी है। यदि वह इस बार अपने अंदरूनी विवादों को साध लेती है, तो निश्चित ही राज्य की राजनीति में एक बार फिर वापसी कर सकती है।

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