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उत्तराखंड: पति के नास्तिक होने पर पत्नी ने मांगा तलाक, हाईकोर्ट ने दी काउंसलिंग

उत्तराखंड: पति के नास्तिक होने पर पत्नी ने मांगा तलाक, हाईकोर्ट ने दी काउंसलिंग

उत्तराखंड हाई कोर्ट में महिला ने अपने पति के नास्तिक होने के आधार पर तलाक की मांग की। पति ने घर का मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्तियां हटवा दीं। अदालत ने तलाक याचिका पर दंपत्ति को काउंसलिंग के लिए भेजा।

देहरादून: उत्तराखंड हाईकोर्ट में एक अनोखा मामला सामने आया है जिसने समाज और कानून दोनों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। हल्द्वानी निवासी एक महिला ने अपने पति से केवल इस वजह से तलाक की मांग की है क्योंकि उसका पति नास्तिक है और हिंदू धार्मिक परंपराओं में विश्वास नहीं रखता। महिला का कहना है कि पति ने शादी के बाद घर से मंदिर हटवा दिया और देवी-देवताओं की मूर्तियां बाहर रखवा दीं।

धार्मिक मान्यताओं पर पति-पत्नी में विवाद

हल्द्वानी की निवासी पूनम (काल्पनिक नाम) ने अदालत में याचिका दाखिल करते हुए बताया कि विवाह के बाद उसके पति भुवन चंद्र सनवाल का व्यवहार पूरी तरह बदल गया। शुरू में वह धार्मिक मामलों में चुप रहता था, लेकिन शादी के कुछ ही महीने बाद उसने घर का मंदिर हटवाकर सभी देव-प्रतिमाएं पैक कर बाहर रख दीं।

महिला का कहना है कि वह रोजाना पूजा-पाठ और व्रत-उपवास करती थी, लेकिन पति ने इसे “अंधविश्वास” बताते हुए रोक दिया। यहां तक कि जब बेटे के नामकरण संस्कार का समय आया, तो पति ने यह कहकर मना कर दिया कि “मेरे आध्यात्मिक मार्ग में ऐसे कर्मकांड की कोई जगह नहीं है।” इस बात से परिवार में लगातार तनाव बढ़ता गया।

ससुराल पक्ष पर भी लगाए आरोप

पूनम ने अपने बयान में कहा कि उसका पति और ससुराल पक्ष संत रामपाल के अनुयायी हैं, जो पारंपरिक हिंदू रीति-रिवाजों को नहीं मानते। महिला ने कहा कि “मैं देवी-देवताओं में आस्था रखने वाली महिला हूं, लेकिन मेरे घर में पूजा करने तक की मनाही कर दी गई। अब मेरे लिए ऐसे माहौल में रहना असंभव है।”

महिला ने पहले नैनीताल के पारिवारिक न्यायालय में तलाक की अर्जी दाखिल की, लेकिन अदालत ने याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि धार्मिक मतभेद तलाक का ठोस आधार नहीं बन सकता। इसके बाद महिला ने मामला उत्तराखंड हाईकोर्ट में उठाया।

हाईकोर्ट ने दंपत्ति को काउंसलिंग के लिए भेजा

मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति रवींद्र मैथाणी और आलोक महरा की खंडपीठ ने की। अदालत ने कहा कि पति-पत्नी के बीच संवाद की संभावना अभी खत्म नहीं हुई है। दोनों के बीच धार्मिक मतभेद व्यक्तिगत विश्वास का विषय है, जिसे बातचीत और समझ से हल किया जा सकता है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि दोनों का सात वर्षीय पुत्र है, इसलिए उसका भविष्य प्राथमिकता होना चाहिए। अदालत ने दंपत्ति को काउंसलिंग के लिए भेजा, ताकि सुलह का रास्ता तलाशा जा सके।

कोर्ट ने कहा- संवाद से निकल सकता है समाधान

न्यायालय ने अपने आदेश में टिप्पणी की कि “धर्म और विश्वास जीवन का निजी पहलू है, लेकिन विवाह एक सामाजिक बंधन है, जिसे आपसी समझ और सहिष्णुता से निभाया जा सकता है।”

कोर्ट ने दोनों पक्षों को यह सलाह दी कि वे अपने मतभेदों को दूर करने का प्रयास करें और बेटे के हित में कोई साझा समाधान निकालें। अगली सुनवाई में अदालत काउंसलिंग रिपोर्ट के आधार पर आगे का फैसला करेगी।

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