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विधानसभा चुनाव 2025: बीजेपी-कांग्रेस में सीधी टक्कर, ओबीसी वोटर बनेंगे गेमचेंजर?

विधानसभा चुनाव 2025: बीजेपी-कांग्रेस में सीधी टक्कर, ओबीसी वोटर बनेंगे गेमचेंजर?

बिहार विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही राजनीतिक गलियारों में सरगर्मियां तेज हो गई हैं। पटना से लेकर दिल्ली तक सभी बड़ी पार्टियां अपनी रणनीतियों को धार देने में जुटी हैं।

नई दिल्ली: बिहार, असम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारियां जोरों पर हैं। इन चुनावों का केंद्रबिंदु एक बार फिर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) बनता जा रहा है। देश की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने वाले ओबीसी वोट बैंक को साधने के लिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस पार्टी दोनों ने कमर कस ली है। 

कांग्रेस सामाजिक न्याय के एजेंडे के तहत जातिगत जनगणना और आरक्षण जैसे मुद्दों पर जोर दे रही है, जबकि बीजेपी हिंदुत्व, विकास और सूक्ष्म स्तर की रणनीति से ओबीसी मतदाताओं को अपने पाले में लाने का प्रयास कर रही है।

ओबीसी वोटर क्यों हैं निर्णायक?

भारत की आबादी में ओबीसी वर्ग का बड़ा हिस्सा है और बिहार जैसे राज्य में इनकी संख्या 60% तक मानी जाती है। इनमें अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) भी शामिल है। इस जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए, दोनों प्रमुख राष्ट्रीय दलों ने अपनी चुनावी रणनीति ओबीसी वोटरों के इर्द-गिर्द तैयार की है। बिहार में जहां बीजेपी ने जेडीयू (JDU) के साथ गठबंधन कर ओबीसी वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश की है, वहीं कांग्रेस ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के साथ गठबंधन कर सामाजिक न्याय की राजनीति को धार दी है।

कांग्रेस की रणनीति: भागीदारी न्याय और जातिगत जनगणना

कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार जातिगत जनगणना की मांग को प्रमुखता से उठा रहे हैं। इसके तहत कांग्रेस ने 'भागीदारी न्याय आंदोलन' की शुरुआत की है, जिसका मकसद है OBC, SC, ST और अल्पसंख्यक वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित करना। कांग्रेस ने 75% ओबीसी आरक्षण का प्रस्ताव पास किया है, जिसमें सरकारी और निजी क्षेत्रों में समुचित प्रतिनिधित्व की बात की गई है।

राहुल गांधी ने हाल ही में कहा कि “आरएसएस और उसकी मनुवादी सोच ने ओबीसी समुदाय को उनके इतिहास और अधिकारों से दूर रखा है। कांग्रेस इस ऐतिहासिक अन्याय को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है।” इसके तहत कांग्रेस ने बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में ओबीसी नेताओं को प्रमुख स्थान दिया है।

बीजेपी की रणनीति: गैर-यादव ओबीसी और माइक्रो मैनेजमेंट

बीजेपी की रणनीति कांग्रेस से बिल्कुल अलग है। बीजेपी विशेष रूप से गैर-यादव, गैर-प्रभावशाली ओबीसी जातियों जैसे कि कुर्मी, राजभर, कश्यप, निषाद आदि को लक्ष्य बना रही है। इसके तहत रोहिणी आयोग को संवैधानिक दर्जा देकर ओबीसी वर्गीकरण को बढ़ावा दिया गया है, जिससे छोटी और उपेक्षित जातियों को प्रतिनिधित्व देने का रास्ता खुला है।

इसके अलावा, बिहार चुनाव में बीजेपी ने एक विस्तृत कास्ट मैपिंग सर्वेक्षण किया है। सूत्रों के अनुसार, बीजेपी ने राज्य की सभी 243 विधानसभा सीटों पर जातिगत आधार पर संभावित उम्मीदवारों की पहचान कर ली है। उम्मीदवारों का चयन जातियों के आधार पर किया जाएगा ताकि हर सीट पर प्रभावशाली वर्ग को प्रतिनिधित्व मिल सके।

बीजेपी का जोर ‘विकास + सामाजिक समीकरण’ मॉडल पर है, जिसमें आधारभूत ढांचे, रोजगार, बिजली-पानी के साथ-साथ जातीय गणित का बारीकी से मिश्रण किया जा रहा है।

बीजेपी-कांग्रेस में सीधी टक्कर

जहां कांग्रेस ‘भागीदारी न्याय आंदोलन’ के जरिए ओबीसी समुदाय को सामाजिक न्याय का वादा कर रही है, वहीं बीजेपी ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे के साथ जाति के बजाय कल्याणकारी योजनाओं को प्राथमिकता दे रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और केंद्रीय योजनाओं के लाभ को बीजेपी मजबूत हथियार मान रही है।

राजनीतिक बहस और आरोप-प्रत्यारोप भी तेज हो गए हैं। राहुल गांधी ने हाल ही में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी, एससी और एसटी के लिए आरक्षित पदों की रिक्तता पर केंद्र सरकार पर हमला बोला। उन्होंने इसे 'बहुजनों के खिलाफ साजिश' करार दिया। इसके जवाब में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राहुल गांधी पर 'झूठ की राजनीति' करने का आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस को देश की बहुजन समाज की कोई चिंता नहीं है। प्रधान ने कहा, “जिन लोगों ने दशकों तक सत्ता में रहकर बहुजनों का हक छीना, आज वे खुद को मसीहा बता रहे हैं।

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