केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया जाएगा। आरोप हैं कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट की समिति ने भ्रष्टाचार में दोषी ठहराया है। सरकार सभी दलों को साथ लेने की कोशिश कर रही है।
New Delhi: इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा पाया गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित आंतरिक समिति ने उनकी कार्यशैली और कुछ वित्तीय लेन-देन में अनियमितताएँ उजागर की हैं। इन क्रमिक आरोपों ने न्यायपालिका की गरिमा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इसलिए केंद्र सरकार ने संसद में महाभियोग (impeachment) प्रस्ताव लाने का निर्णय लिया है, ताकि जांच प्रक्रिया से स्पष्ट हो सके कि वर्मा अपने पद के योग्य हैं या नहीं।
किरेन रिजिजू का बयान: महाभियोग एक साझी जिम्मेदारी
केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए। उनका मानना है कि किसी भी दल की नीयत से ऊपर उठकर यह महाभियोग केवल न्यायपालिका की स्वतंत्रता और पारदर्शिता बनाए रखने की कवायद है। रिजिजू ने संसद के मानसून सत्र (Monsoon Session) में महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए सभी राजनीतिक दलों से बातचीत शुरू कर दी है। वे चाहते हैं कि यह कदम “सहयोगी प्रयास” का परिणाम हो, जिससे देश में यह संदेश जाए कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई व्यक्तिगत एजेंडे से परे एक राष्ट्रीय विषय है।
प्रस्ताव की विधिक प्रक्रिया
न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के तहत जब किसी न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित होता है, तो स्पीकर या राज्यसभा चेयरमैन तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन करते हैं। इस समिति में शामिल होते हैं:
- भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) या सर्वोच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश,
- किसी उच्च न्यायालय का चीफ जस्टिस (या एक वरिष्ठ जज),
- एक “प्रतिष्ठित न्यायविद् (eminent jurist)”।
इस समिति का काम उन आधारों की जांच करना होता है जिनके कारण न्यायाधीश को हटाने की मांग की गई। यदि समिति दोषी पाती है, तो संसद के संबंधित सदन में पुनः बहस और वोटिंग होती है। बहुमत से पारित महाभियोग प्रस्ताव पर राष्ट्रपति न्यायाधीश को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति या पदमुक्ति का आदेश दे सकते हैं।
जांच समिति की रिपोर्ट और पहले से तय कदम
किरन रिजिजू ने बताया कि यह मामला “थोड़ा अलग” इसलिए भी है, क्योंकि तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने पहले ही एक आंतरिक समिति गठित की थी, जिसने यशवंत वर्मा को दोषी ठहराया। इस रिपोर्ट के आधार पर संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाना अपेक्षाकृत त्वरित हो सकता है, क्योंकि प्रारंभिक जांच का काम पहले ही पूरा हो चुका है। अब संसद के दोनों सदनों—लोकसभा या राज्यसभा—में से जिस सदन का शेड्यूल अनुमति दें, वहां प्रस्ताव पेश किया जाएगा।
राजनीतिक दलों से सहयोग की अपील
किरन रिजिजू ने कहा कि उन्होंने प्रमुख राजनीतिक दलों को पहले ही प्रस्ताव की जानकारी दे दी है। छोटे दलों से भी संपर्क किया जा रहा है। उनका तर्क है कि भ्रष्टाचार एक ऐसा मुद्दा है, जिसका सामना सभी दलों को मिलकर करना चाहिए। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि महाभियोग प्रस्ताव सिर्फ न्यायाधीश के व्यक्तिगत मामलों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें भारत के लोकतंत्र और न्यायपालिका की विश्वसनीयता दांव पर है। रिजिजू ने आशा व्यक्त की कि अधिकांश दल आंतरिक रूप से इस मुद्दे पर चर्चा करने के बाद एक सेतु सम्मेलन पर सहमत होंगे।