Subramaniam Jaishankar Birthday: सुब्रह्मण्यम जयशंकर – भारतीय कूटनीति में सशक्त नेतृत्व और विदेश नीति में परिवर्तन की प्रेरणा

Subramaniam Jaishankar Birthday: सुब्रह्मण्यम जयशंकर – भारतीय कूटनीति में सशक्त नेतृत्व और विदेश नीति में परिवर्तन की प्रेरणा
Last Updated: 14 घंटा पहले

Subramaniam Jaishankar: सुब्रह्मण्यम जयशंकर अपना जन्मदिन 9 जनवरी को मनाते हैं। उनका जन्म 9 जनवरी 1955 को हुआ था। भारत के विदेश मंत्री, सुब्रह्मण्यम जयशंकर, न केवल एक राजनयिक, बल्कि एक ऐसे नेता भी हैं जिन्होंने भारतीय कूटनीति को वैश्विक मंचों पर एक नई दिशा दी है। उनका नाम राजनीति और कूटनीति के क्षेत्र में एक अत्यधिक सम्मानित नाम बन चुका है। 9 जनवरी 1955 को दिल्ली में जन्मे जयशंकर का जीवन एक प्रेरणा है, जिन्होंने भारतीय विदेश नीति के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

जयशंकर का जन्म एक प्रमुख भारतीय सिविल सेवक कृष्णस्वामी सुब्रह्मण्यम और सुलोचना सुब्रह्मण्यम के घर हुआ था। एक तमिल हिंदू परिवार से होने के कारण उनकी शुरुआती शिक्षा भी भारतीय सांस्कृतिक और परंपराओं से गहरे रूप से जुड़ी हुई थी। दिल्ली के एयर फ़ोर्स स्कूल और बैंगलोर मिलिट्री स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने सेंट स्टीफ़न कॉलेज, दिल्ली से रसायन विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की। 

इसके बाद, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से राजनीति विज्ञान में एमए और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एम.फिल. और पीएचडी की डिग्री ली। उनकी शिक्षा में परमाणु कूटनीति पर विशिष्ट ध्यान केंद्रित किया गया था, जो उनके भविष्य के कूटनीतिक करियर का अहम हिस्सा बना।

राजनयिक करियर एक नई दिशा की ओर

जयशंकर का कूटनीतिक करियर 1979 में भारतीय विदेश सेवा (IFS) में शामिल होने के साथ शुरू हुआ। वे विदेश मंत्रालय में कई अहम पदों पर कार्य कर चुके हैं और विभिन्न देशों में भारत के राजदूत के रूप में अपनी सेवाएं दी हैं। उन्होंने 2007 से 2009 तक सिंगापुर में भारतीय उच्चायुक्त के रूप में कार्य किया, जहां उन्होंने दोनों देशों के बीच आर्थिक और रक्षा संबंधों को मजबूत किया। इसके बाद, उन्होंने 2001 से 2004 तक चेक गणराज्य में भारतीय राजदूत के रूप में काम किया और चीन में भारतीय राजदूत के रूप में भी अपने कार्यकाल के दौरान महत्वपूर्ण योगदान दिया।

भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता

जयशंकर ने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते पर बातचीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह समझौता भारत और अमेरिका के बीच परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण कदम था। उनकी कूटनीतिक सूझबूझ और नेतृत्व क्षमता ने इस समझौते को सफल बनाने में मदद की, जिससे भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में एक नई दिशा मिली। इसके अलावा, वे 2013 से 2015 तक अमेरिका में भारतीय राजदूत के रूप में कार्यरत रहे, जहां उन्होंने भारतीय-अमेरिकी संबंधों को और भी मजबूत किया।

विदेश मंत्री के रूप में योगदान

31 मई 2019 को, जयशंकर ने भारत के विदेश मंत्री के रूप में शपथ ली। इस पद पर रहते हुए, उन्होंने एक आक्रामक और मुखर विदेश नीति की रूपरेखा तैयार की। उनका मानना है कि भारतीय कूटनीति को अब एक नया दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है, जो देश के हितों को सर्वोपरि रखे। विदेश मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल में भारत ने डोकलाम जैसे मुद्दों पर चीन के साथ बेहतर संबंध बनाए रखे। साथ ही, उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध के मध्य शांति की वापसी की सक्रिय रूप से वकालत की और देशों के बीच संवाद की आवश्यकता को रेखांकित किया।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का नेतृत्व

जयशंकर का मानना है कि भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी भूमिका को मजबूती से प्रस्तुत करना चाहिए। उन्होंने गहरे वैश्विक मुद्दों पर अपने विचार साझा किए, जिसमें यूक्रेन संकट, रूस के साथ संबंधों की स्थिति और भारत का वैश्विक नेतृत्व शामिल है। 2023 में जब भारत ने रूस से तेल खरीदने का निर्णय लिया, तो उन्होंने यूरोप की आलोचना की और कहा कि पश्चिमी देशों के दोहरे मानक हैं। उनका यह बयान वैश्विक राजनीति में एक गहरी छाप छोड़ गया।

उनकी नेतृत्व शैली एक प्रेरणा

जयशंकर की नेतृत्व शैली अत्यंत व्यावहारिक और कूटनीतिक है। वे अपनी टीम के साथ मिलकर, विभिन्न देशों के बीच रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं। उनका मानना है कि कूटनीति केवल शब्दों के माध्यम से नहीं, बल्कि कार्यों के माध्यम से भी दिखनी चाहिए। उनकी नेतृत्व क्षमता और समझदारी के कारण ही उन्हें भारत के सबसे सम्मानित विदेश मंत्रियों में गिना जाता है।

एक मिशन भारत की आवाज को दुनिया तक पहुंचाना

जयशंकर ने अपनी कूटनीतिक यात्रा के दौरान न केवल भारतीय हितों को प्रमुखता दी, बल्कि उन्होंने भारत की आवाज को दुनिया भर में प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया। उनका मानना है कि विदेश नीति केवल कागजी कार्यवाही नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र की सुरक्षा, समृद्धि और विकास के लिए जरूरी है। उनके मार्गदर्शन में भारतीय कूटनीति ने न केवल अपने पुरानी सीमाओं को पार किया, बल्कि दुनिया के प्रमुख मुद्दों पर भी एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।

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