कोलकाता के आरजी कर मेडिकल अस्पताल में एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या के मामले में आरोपी का पॉलीग्राफ टेस्ट किया जा रहा है। एजेंसी के कोलकाता कार्यालय में आरोपी संजय रॉय, पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष और अन्य छह लोगों का यह परीक्षण किया जा रहा हैं। जानिए यह पॉलीग्राफ टेस्ट क्या होता है और इसे कैसे किया जाता हैं।
कोलकाता: प्रदेश के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में सीबीआई हर दिन नए पर्दाफाश कर रही है। सीबीआई के रिमांड नोट में गिरफ्तार सिविक वालंटियर संजय रॉय का ही जिक्र किया गया है, जबकि अन्य आरोपियों का नाम नहीं लिया गया है। मगर, आरजी कर कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल डॉ. संदीप घोष भी इस मामले में संदेह के घेरे में हैं। इसी संदर्भ में आज सीबीआई सात लोगों का पॉलीग्राफ टेस्ट कर रही है। एजेंसी के कोलकाता कार्यालय में आरोपी संजय रॉय, पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष, घटना के समय पीड़िता के साथ मौजूद डॉक्टर और एक वालंटियर का पॉलीग्राफ टेस्ट चल रहा हैं।
क्या होता हैं पॉलीग्राफ टेस्ट?
जानकारी के मुताबिक पालीग्राफ टेस्ट के माध्यम से झूठ को उजागर किया जाता है और यह न्यायालय की अनुमति से किया जाता है। इस प्रक्रिया में लाई डिटेक्टर मशीन (झूठ पकड़ने वाली मशीन) का उपयोग करके आरोपी को बेनकाब किया जाता है। इस परीक्षण में आरोपी के उत्तर देने के दौरान उसके शरीर में होने वाले बदलावों का अध्ययन किया जाता है, जिससे यह निर्धारित किया जाता है कि वह सच बोल रहा है या झूठ। हालांकि पालीग्राफ टेस्ट को अत्यधिक प्रभावी साक्ष्य नहीं माना जाता है, फिर भी अदालतें इसे पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं कर सकती हैं।
क्यों किया जा रहा है यह टेस्ट?
सीबीआई को अब तक प्राप्त सभी सबूत घटना को स्पष्ट रूप से प्रमाणित करने में असफल रहे हैं। सीबीआई अब यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि क्या मेडिकल कॉलेज के कर्मचारी जो बयान दे रहे हैं, वे सत्य हैं या सबूतों के साथ कोई छेड़छाड़ की गई है। मामले की सच्चाई तक पहुंचने के लिए सीबीआई पॉलीग्राफ टेस्ट कर रही हैं।
मशीन के माध्यम से ऐसे सच आता है सामने
बताया गया है कि इस मशीन में कई महत्वपूर्ण घटक होते हैं। इसके यूनिट्स को आरोपी के शरीर के विभिन्न अंगों से जोड़ दिया जाता है और जब आरोपी जवाब देता है, तो उस पर प्रतिक्रिया मिलती है। सभी डेटा एक केंद्रीय मशीन में संकलित होते हैं, जहाँ सच और झूठ का पता लगाया जाता है। ये यूनिट्स सिर, मुँह और उंगलियों पर लगाए जाते हैं। इसमें पल्स रेट और श्वसन की माप की जाती है, जिससे झूठ और सच का निर्धारण किया जा सके।
आरोपी से सबसे पहले सामान्य प्रश्न पूछे जाते हैं, जिनका केस से कोई संबंध नहीं होता। इसके बाद आरोपी से हाँ या न के प्रारूप में सवाल किए जाते हैं, ताकि मशीन के डेटा में सच का पता लगाया जा सके। इसका विश्लेषण पल्स रेट, ब्लड प्रेशर, शारीरिक संवेदनाओं, सांस की गति, और त्वचा पर होने वाले परिवर्तनों के डेटा के आधार पर किया जाता है। इस परीक्षण में, झूठ बोलने वाले आरोपी के मस्तिष्क से अलग संकेत उत्पन्न होते हैं। आरोपी के मस्तिष्क से एक P300 (P3) सिग्नल निकलता है और इसके साथ ही उसका हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर भी बढ़ जाता हैं।