रतन टाटा एक समय अपनी कंपनी टाटा मोटर्स को बेचने के इरादे से अमेरिका गए थे। वहां उन्होंने फोर्ड कंपनी के मालिक से मिलकर अपनी कंपनी को बेचने का प्रस्ताव रखा। लेकिन उन्हें फोर्ड द्वारा अपमानित किया गया। इस अपमान का बदला रतन टाटा ने इस तरह लिया कि यह घटना आज भी गर्व से याद की जाती है। आइए, हम आपको रतन टाटा और फोर्ड के बीच हुई जेएलआर डील के बारे में विस्तार से बताते हैं।
Ratan Tata: टाटा मोटर्स आज भले ही ऑटोमोबाइल सेक्टर में एक प्रमुख कंपनी बन चुकी है, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब टाटा मोटर्स के तत्कालीन अध्यक्ष रतन टाटा अपनी स्वदेशी कार टाटा इंडिका के खराब रिस्पॉन्स से निराश हो गए थे। इस निराशा में, उन्होंने टाटा मोटर्स को बेचने का निर्णय लिया।
इसके लिए उन्होंने अमेरिका जाकर फोर्ड मोटर्स के चेयरमैन बिल फोर्ड से मुलाकात की। लेकिन फोर्ड ने रतन टाटा को कुछ ऐसा कहा कि वह डील नहीं हो पाई। इसके बाद, जब फोर्ड की स्थिति खराब हुई, तो टाटा मोटर्स ने उनसे जगुआर लैंड रोवर कंपनी खरीद ली।
रतन टाटा की दिलचस्प कहानी
आज जब दुनिया रतन टाटा की उपलब्धियों, उनकी सादगी और अद्वितीय प्रतिभा के साथ-साथ धैर्य और अटूट विश्वास की कहानियां बुन रही है, तब यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि कैसे रतन टाटा ने अमेरिका में अपमान का अनुभव किया और फिर भारत लौटकर टाटा मोटर्स को ऐसी ऊंचाइयों तक पहुंचाया कि उन्होंने अमेरिकी कंपनी फोर्ड मोटर्स से उनकी प्रीमियम कार कंपनी जगुआर लैंड रोवर को खरीद लिया। आज यह कंपनी देश और दुनिया में अपनी विशेष पहचान बना चुकी है।
टाटा मोटर्स को बेचने का लिया निर्णय
यह कहानी वर्ष 1998 के दौरान शुरू होती है, जब टाटा मोटर्स की स्वदेशी कार टाटा इंडिका भारतीय बाजार में अपेक्षित सफलता नहीं प्राप्त कर रही थी और उस समय अमेरिकी एवं जापानी कंपनियों की कारों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। ऐसे कठिन समय में रतन टाटा की हिम्मत भी कमजोर पड़ने लगी, और उन्होंने टाटा मोटर्स को बेचने का निर्णय लिया। उस समय की प्रसिद्ध अमेरिकी कंपनी फोर्ड मोटर्स को संभावित खरीदार के रूप में देखा गया।
बिल फोर्ड ने क्या कहा
साल 1999 में, रतन टाटा और उनकी टीम फोर्ड मोटर्स के चेयरमैन बिल फोर्ड से मिलने और एक डील को अंतिम रूप देने के लिए अमेरिका गई। अमेरिका में उनकी बिल फोर्ड से मुलाकात भी हुई, लेकिन इस दौरान कुछ ऐसा घटित हुआ, जिसकी रतन टाटा को उम्मीद नहीं थी। बिल फोर्ड ने बड़े घमंड के साथ रतन टाटा पर ताना मारते हुए कहा कि जब आपको इस उद्योग के बारे में जानकारी नहीं थी, तो आपको यहां आना ही नहीं चाहिए था। यह तो हद हो गई, जब बिल फोर्ड ने यह तक कह दिया कि वह टाटा मोटर्स को खरीदकर उन पर एहसान कर रहे हैं।
अपमान को सहते हुए भी की मेहनत
बिल फोर्ड की कठोर टिप्पणियाँ रतन टाटा के दिल में अपमान की एक गहरी चोट की तरह चुभ गईं, जिसके बाद उन्होंने टाटा मोटर्स को बेचने का फैसला छोड़कर भारत लौटने का निर्णय लिया। इस अपमान से व्यथित रतन टाटा ने टाटा मोटर्स की बेहतरी के लिए दोगुनी मेहनत करने का संकल्प लिया।
उन्होंने इंडिका वी2 के अपडेटेड मॉडल को लॉन्च किया और सफारी, सुमो जैसी गाड़ियों पर ध्यान केंद्रित किया। इन गाड़ियों में बेहतर सुरक्षा और माइलेज पर जोर देने का परिणाम यह हुआ कि कंपनी ने एक नई दिशा में प्रगति की।
समय का पहिया घूमा
जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा, टाटा मोटर्स के अच्छे दिन आए, वहीं दूसरी ओर साल 2008 में अमेरिका में आई मंदी ने फोर्ड मोटर्स को गंभीर संकट में डाल दिया। उस कठिन समय में, फोर्ड एक-एक करके वॉल्वो और हर्ट्ज जैसी कंपनियों को बेचने पर मजबूर हो गई। इसी बीच, टाटा मोटर्स ने फिर से फोर्ड के जीवन में एंट्री की और रतन टाटा ने अपने अपमान का ऐसा बदला लिया कि पूरी दुनिया उनके मुरीद हो गई।
हाँ, टाटा मोटर्स ने 2008 में 2.3 बिलियन डॉलर में फोर्ड की लग्जरी कंपनी जगुआर लैंड रोवर (JLR) को खरीद लिया। आज, जेएलआर दुनिया भर में हर साल हजारों-लाखों गाड़ियाँ बेचती है।