सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें उसने एक गैर-दलित महिला और एक दलित व्यक्ति के बीच विवाह को रद्द कर दिया। इस फैसले के साथ कोर्ट ने इस विवाह से पैदा हुए बच्चों के रिजर्वेशन के अधिकार पर भी महत्वपूर्ण टिप्पणी की।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकार का उपयोग करते हुए एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने एक गैर-दलित महिला और एक दलित व्यक्ति के बीच विवाह को रद्द कर दिया। इस फैसले के साथ, सुप्रीम कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह अपने नाबालिग बच्चों के लिए अनुसूचित जाति (SC) प्रमाण पत्र प्राप्त करें, जिनका पालन-पोषण पिछले छह वर्षों से उनकी मां के साथ हो रहा हैं।
यह फैसला सामाजिक न्याय और आरक्षण के अधिकारों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, क्योंकि कोर्ट ने बच्चों के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए, यह सुनिश्चित किया कि वे अनुसूचित जाति के तहत मिलने वाली सुविधाओं का लाभ उठा सकें।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां शामिल थे, ने जूही पोरिया नी जावलकर और प्रदीप पोरिया के तलाक के मामले में अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि एक गैर-दलित महिला शादी के माध्यम से अनुसूचित जाति (SC) समुदाय की सदस्यता प्राप्त नहीं कर सकती है, लेकिन अगर एक अनुसूचित जाति के पुरुष से शादी के बाद बच्चे पैदा होते हैं, तो उन बच्चों को एससी (अनुसूचित जाति) का दर्जा मिल सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में यह साफ किया है कि जाति जन्म से निर्धारित होती है, और किसी व्यक्ति की जाति को शादी के आधार पर बदला नहीं जा सकता। 2018 में भी कोर्ट ने इसी तरह के एक फैसले में यह स्पष्ट किया था कि अनुसूचित जाति के व्यक्ति से शादी करके किसी का जाति नहीं बदला जा सकता।
यह फैसला सामाजिक न्याय और आरक्षण के अधिकारों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि जाति का निर्धारण जन्म से ही होता है और इसे किसी अन्य तरीके से परिवर्तित नहीं किया जा सकता।
बच्चों को मिला SC का टैग
सुप्रीम कोर्ट ने 11 वर्षीय बेटे और 6 वर्षीय बेटी के बारे में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जो पिछले छह वर्षों से रायपुर में अपनी गैर-दलित मां के साथ नाना-नानी के घर रह रहे हैं। कोर्ट ने इन बच्चों को अनुसूचित जाति (एससी) का प्रमाण पत्र हासिल करने का आदेश दिया, क्योंकि उनके पिता अनुसूचित जाति से हैं। कोर्ट ने कहा कि ये बच्चे सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और रोजगार के उद्देश्य से अनुसूचित जाति के रूप में माने जाएंगे।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने बच्चों के एससी प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए उनके पिता को छह महीने का समय दिया और आदेश दिया कि वह संबंधित अधिकारियों से संपर्क करके यह प्रमाण पत्र हासिल करें। इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चों की स्नातकोत्तर तक शिक्षा का सारा खर्च, जिसमें प्रवेश, ट्यूशन फीस, बोर्डिंग और लॉजिंग खर्च भी शामिल है, वह पति द्वारा वहन किया जाएगा।
इसके अलावा, कोर्ट ने महिला को पति से 42 लाख रुपये का एकमुश्त भरण-पोषण भी देने का आदेश दिया, जो जीवनभर के लिए महिला और बच्चों के भरण-पोषण के रूप में मिलेगा। इस फैसले से यह साफ हो गया कि बच्चों को उनके जन्म के आधार पर जाति का दर्जा दिया जाएगा, और उनके भविष्य के लिए उचित सुरक्षा और सहायता सुनिश्चित की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने महिला के हित में सुनाया फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने पति और पत्नी के बीच हुए समझौते के तहत एक और महत्वपूर्ण आदेश दिया है। इसके तहत, पति को महिला को रायपुर में अपनी जमीन का एक प्लॉट देना होगा, ताकि महिला और बच्चों को एक स्थिर जीवन मिल सके। इसके अतिरिक्त, पीठ ने यह आदेश भी दिया कि पति को अगले साल 31 अगस्त तक महिला के लिए एक दोपहिया वाहन खरीदना होगा, जिसका उपयोग महिला निजी तौर पर कर सकेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने दंपति के बीच दर्ज क्रॉस-एफआईआर को भी रद्द कर दिया, जिससे दोनों के खिलाफ दर्ज मामलों का समाधान हुआ। इसके अलावा, कोर्ट ने महिला को निर्देश दिया कि वह बच्चों को समय-समय पर उनके पिता से मिलवाए, उन्हें छुट्टियों पर ले जाने दे, और उनके बीच अच्छे संबंध बनाए रखने की कोशिश करे। यह आदेश बच्चों के मानसिक और भावनात्मक भले के लिए था, ताकि वे अपने पिता से अच्छे संबंध बनाए रख सकें।