राजनीतिक पार्टियों भाजपा और कांग्रेस के बीच मुफ्त रेवड़ियों की घोषणा को लेकर जिस तरह की प्रतिस्पर्धा कर्नाटक, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनावों के दौरान देखी गई थी, उतनी नहीं है। इसका एक संभावित कारण यह हो सकता है कि चुनावी वादों को लागू करने में राज्यों को आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए, राजनीतिक पार्टियों का शीर्ष नेतृत्व मुफ्त वादों के प्रति इस बार अधिक सतर्कता बरत रहा है।
Jammu Kashmir Election: मानसून के अंतिम महीने में हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में चुनावी गजरनों की आवाज़ तेज़ हो गई है, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इस बार मुफ्त चुनावी वादों की बौछार कुछ धीमी नज़र आ रही है। यह सत्ता में आई कुछ राज्य सरकारों द्वारा दिए गए चुनावी रेवड़ियों के वादों को लागू करने में आ रही वित्तीय समस्याओं का परिणाम हो सकता है, या फिर मुफ्त वादों को पूरा करने की कसौटी पर खरा उतरने का दबाव भी इसका कारण हो सकता है।
भाजपा और कांग्रेस के बीच मुफ्त रेवड़ियों की घोषणा
हालांकि वजह चाहे जो भी हो, वर्तमान में हरियाणा और कुछ अन्य राज्यों में मुख्य राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों, भाजपा और कांग्रेस के बीच मुफ्त रेवड़ियों की घोषणा के मामले में वैसी प्रतिस्पर्धा नहीं दिख रही है जैसी कि कर्नाटक, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, और छत्तीसगढ़ के चुनावों के दौरान थी।
चुनावी वादों को लागू करने में राज्यों को जिन आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उसी का परिणाम है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अब अपनी राज्य इकाईयों द्वारा की गई चुनावी घोषणाओं को वास्तविकता में लागू करने की कसौटी पर परखने लगा है।
टीएस सिंह देव जैसे प्रमुख नेता चुनाव प्रचार में जुटे
चुनावी राज्यों में पार्टी के घोषणापत्र के दिशा-निर्देश और समन्वय के लिए कांग्रेस नेतृत्व ने आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ दो नेताओं को विशेष जिम्मेदारी सौंपी है, जो इसके संकेत के रूप में देखा जा रहा है। पार्टी हाईकमान ने हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावी घोषणापत्र के दिशा-निर्देशन और समन्वय की जिम्मेदारी छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंह देव और कांग्रेस के रिसर्च एवं मॉनिटरिंग विभाग के प्रभारी अमिताभ दूबे को दी है।
दोनों 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी की राष्ट्रीय घोषणापत्र समिति के सदस्यों के रूप में भी कार्यरत हैं। कांग्रेस ने आधिकारिक रूप से इन दोनों को राज्यों में पार्टी घोषणापत्र के समन्वय का कार्य सौंपा है, लेकिन हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में चुनावी वादों को लागू करने में आई चुनौतियों को देखते हुए ऐसा माना जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व अब वादों के कार्यान्वयन के मूल्यांकन पर भी ध्यान केंद्रित करने लगा है।
कांग्रेस का उच्च नेतृत्व सतर्क
कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने हाल ही में राज्यों की इकाइयों को कुछ महत्वपूर्ण संकेत दिए हैं। इन संकेतों का उद्देश्य यह है कि घोषणापत्र में केवल उन वादों को शामिल किया जाए, जिनका कार्यान्वयन राज्य की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव नहीं डालेगा, हालांकि कुछ अपवादों को छोड़कर।
इस सतर्कता के उदाहरण जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में चुनावी वादों के संदर्भ में स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। यद्यपि चुनावी जीत के लिए कुछ मुफ्त वादों की आवश्यकता को समझते हुए, पार्टी इन दोनों राज्यों में इस दिशा में पूरी तरह से परहेज करने का प्रयास भी कर रही है।
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के लिए नहीं हुई विशेष घोषणा
हालांकि, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्यप्रदेश और राजस्थान के पिछले चुनावों में कांग्रेस द्वारा किए गए चुनावी वादों की तरह की उच्च प्रोफाइल घोषणाएं नहीं देखी जा रही हैं। याद रहे कि उस समय इन वादों की घोषणा की जिम्मेदारी खुद राहुल गांधी ने संभाली थी, लेकिन हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के लिए कांग्रेस की सात गारंटियों की घोषणाएं उनकी अनुपस्थिति में की गई हैं।