भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) नीतिगत ब्याज दरों के निर्धारण में खुदरा महंगाई (CPI) को प्राथमिक मानक मानता है। हालांकि, इस प्रणाली पर अब सवाल उठने लगे हैं, खासकर केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और विभिन्न आर्थिक विशेषज्ञों द्वारा। वित्त मंत्री ने ब्याज दरों में कटौती का समर्थन करते हुए कहा कि इससे आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहन मिलेगा।
इसके अलावा, कई देशों में ब्याज दर निर्धारण के लिए महंगाई दर में खाद्य और ऊर्जा की कीमतों को बाहर कर दिया जाता है, जिसे "कोर महंगाई दर" कहा जाता है। यह प्रणाली आर्थिक नीति में अधिक स्थिरता और संतुलन सुनिश्चित करने में मदद करती है। अब सवाल यह उठता है कि क्या भारत को भी इस प्रणाली को अपनाना चाहिए।
ब्याज दर निर्धारण में कोर महंगाई का महत्व
भारत में ब्याज दर निर्धारण को लेकर बहस बढ़ गई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने पहले ही ब्याज दरों में कटौती की वकालत की है। लेकिन अब यह देखना बाकी है कि भारतीय रिजर्व बैंक अपनी अगली मौद्रिक नीति समिति की बैठक में इस मुद्दे पर क्या निर्णय लेता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि खाद्य और ऊर्जा की महंगाई में उतार-चढ़ाव के कारण खुदरा महंगाई दर अस्थिर हो सकती है। कई देशों में, जैसे अमेरिका, यूरोप और जापान, ब्याज दर निर्धारण के लिए महंगाई दर में खाद्य और ऊर्जा की कीमतों को हटा दिया जाता है, ताकि अधिक स्थिर और परिपक्व आर्थिक निर्णय लिए जा सकें।
खाद्य वस्तुओं की महंगाई और इसके कारण
खाद्य वस्तुओं की महंगाई का मुख्य कारण सप्लाई की कमी होता है, जैसा कि प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् टीसीए अनंत का मानना है। उनका कहना है कि खाद्य वस्तुओं की कीमतें विशेष रूप से तब बढ़ती हैं जब आपूर्ति में कोई रुकावट होती है, जैसे कि प्राकृतिक आपदाएं या फसल की खराबी। इन परिस्थितियों में, कीमतों में बढ़ोतरी होती है, जबकि मांग में कमी आ सकती है, जो खाद्य महंगाई को प्रभावित करती है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इस मुद्दे पर चर्चा करते हुए बताया कि आलू, प्याज और टमाटर जैसी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण खुदरा महंगाई दर अधिक दिख रही है। इन वस्तुओं की कीमतें मौसमी रूप से मांग और आपूर्ति के अंतर के कारण बढ़ जाती हैं। वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि बाकी वस्तुओं की महंगाई दर नियंत्रण में है।
क्या सब्जियों के दाम पर ब्याज दर तय करना उचित है?
स्वदेशी जागरण मंच के संयोजक और अर्थशास्त्री अश्विनी महाजन का मानना है कि अगर हम केवल मौसमी आधार पर, जैसे कि सब्जियों के दाम में वृद्धि के समय ब्याज दर तय करें, तो यह एक बड़ी गलती होगी। उनका कहना है कि भारत जैसे विकासशील देश में मौद्रिक नीति का मुख्य उद्देश्य आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और गरीबों के उत्थान को प्राथमिकता देना चाहिए।
महाजन ने यह भी कहा कि थोक महंगाई दर और खुदरा महंगाई दर में काफी अंतर होता है, इसलिए महंगाई दर को ब्याज दर तय करने के आधार के रूप में लेना उचित नहीं है। आठ साल पहले मौद्रिक नीति समिति का गठन किया गया था, और आरबीआई ने खुदरा महंगाई दर की सीमा छह प्रतिशत तक तय की है, जबकि न्यूनतम सीमा दो प्रतिशत है।
कोर महंगाई दर को अपनाने का सुझाव
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के प्रोफेसर पिनाकी चक्रवर्ती का कहना है कि सरकार और आरबीआई दोनों ही अपनी जगह पर सही हैं। उनके अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था काफी जटिल है और इस अर्थव्यवस्था में महंगाई दर को ब्याज दर निर्धारण के लिए एकमात्र उपकरण के रूप में इस्तेमाल करना उपयुक्त है।
भारत में मौद्रिक नीति के तहत ब्याज दर तय करने के लिए खुदरा महंगाई दर को प्राथमिक मानक मानना एक विवादित विषय बन चुका है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रणाली में सुधार की आवश्यकता हो सकती है, खासकर खाद्य और ऊर्जा की महंगाई के अस्थिर प्रभाव को ध्यान में रखते हुए। क्या भारत को कोर महंगाई दर अपनानी चाहिए, यह सवाल अब और भी महत्वपूर्ण हो गया है, और आने वाले समय में आरबीआई द्वारा इस मुद्दे पर क्या निर्णय लिया जाएगा, यह देखना बाकी है।