Parvartini Ekadashi 2024: आज है परिवर्तिनी एकादशी व्रत! भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए करें इस चालीसा का पाठ

Parvartini Ekadashi 2024: आज है परिवर्तिनी एकादशी व्रत! भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए करें इस चालीसा का पाठ
Last Updated: 14 सितंबर 2024

रिवर्तिनी एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण और पुण्यकारी माना गया है। इसे करने से केवल भौतिक सुखों में वृद्धि होती है, बल्कि आध्यात्मिक लाभ भी प्राप्त होते हैं। इस व्रत के पालन से जीवन के पाप धुल जाते हैं और व्यक्ति को श्री हरि विष्णु का विशेष आशीर्वाद मिलता है।

Parvartini Ekadashi 14 september: परिवर्तिनी एकादशी का दिन हिंदू धर्म में बहुत ही शुभ और कल्याणकारी माना जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु की पूजा और धन की देवी माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए विशेष महत्व रखता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा से व्यक्ति को सभी कार्यों में सिद्धि और घर में समृद्धि प्राप्त होती है।

आज मनाई जाएगी परिवर्तिनी एकादशी

इस बार यह व्रत 14 सितंबर 2024 को मनाया जा रहा है। इस दिन विशेष रूप से विष्णु भगवान की पूजा और उनके भजनों का पाठ करने से भक्तों को मानसिक शांति और सुख की प्राप्ति होती है।

परिवर्तिनी एकादशी के अवसर पर "कृष्ण चालीसा" का पाठ भी अत्यंत शुभ और लाभकारी माना जाता है। इसे श्रद्धा और समर्पण के साथ करने से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। यहां आप कृष्ण चालीसा का पाठ कर सकते हैं।

कृष्ण चालीसा

॥दोहा॥

श्री नन्दनन्दन जयति, गोपीजनवल्लभ श्री।

वल्लवीजन जीवन, जय जय यदुवंशी।।

 ॥चालीसा॥

जय जय श्रीकृष्ण कन्हाई। जय वसुदेव देवकि सुत भाई॥

यशुमति के आनंद नंदन। गोपी ग्वाल मनोहर वंदन॥

 

 ब्रह्मादिक मुनि सदा सुनावे। श्रीमुख से मुरली रस धावे॥

नवनीत नित चोरी करियो। गोपी सों नित प्रेम बढायो॥

 

दाउ सखा संग मधुवन जावे। हाथ लियो मुरली मन भावे॥

तुम्हरो रूप कन्हैया न्यारा। श्यामल गौर गात उजियारा॥

 

रास रचाय गोपी संग नाचा। मुरली मधुर अधर पर साचा॥

देवकी यशुदा के ललना। ब्रज में करत सदा रस कलना॥

 

2. दोहा

बंशी शोभित कर मधुर,नील जलद तन श्याम।

 

अरुण अधर जनु बिम्बा फल,पिताम्बर शुभ साज॥

 

जय मनमोहन मदन छवि,कृष्णचन्द्र महाराज।

 

करहु कृपा हे रवि तनय,राखहु जन की लाज॥

 

चौपाई

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन, जय वसुदेव देवकी नन्दन॥

जय यशुदा सुत नन्द दुलारे, जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥

 

जय नट-नागर नाग नथैया, कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥

पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो, आओ दीनन कष्ट निवारो॥

 

वंशी मधुर अधर धरी तेरी, होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥

आओ हरि पुनि माखन चाखो, आज लाज भारत की राखो॥

 

गोल कपोल, चिबुक अरुणारे, मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥

रंजित राजिव नयन विशाला, मोर मुकुट वैजयंती माला॥

 

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे, कटि किंकणी काछन काछे॥

नील जलज सुन्दर तनु सोहे, छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥

 

मस्तक तिलक, अलक घुंघराले, आओ कृष्ण बाँसुरी वाले॥

करि पय पान, पुतनहि तारयो, अका बका कागासुर मारयो॥

 

मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला, भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥

सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई, मसूर धार वारि वर्षाई॥

 

लगत-लगत ब्रज चहन बहायो, गोवर्धन नखधारि बचायो॥

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई, मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥

 

दुष्ट कंस अति उधम मचायो, कोटि कमल जब फूल मंगायो॥

नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें, चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥

 

करि गोपिन संग रास विलासा, सबकी पूरण करी अभिलाषा॥

केतिक महा असुर संहारयो, कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥

 

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई, उग्रसेन कहं राज दिलाई॥

महि से मृतक छहों सुत लायो, मातु देवकी शोक मिटायो॥

 

भौमासुर मुर दैत्य संहारी, लाये षट दश सहसकुमारी॥

दै भिन्हीं तृण चीर सहारा, जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥

 

असुर बकासुर आदिक मारयो, भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥

दीन सुदामा के दुःख टारयो, तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥

 

प्रेम के साग विदुर घर मांगे, दुर्योधन के मेवा त्यागे॥

लखि प्रेम की महिमा भारी, ऐसे श्याम दीन हितकारी॥

 

भारत के पारथ रथ हांके, लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥

निज गीता के ज्ञान सुनाये, भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥

 

मीरा थी ऐसी मतवाली, विष पी गई बजाकर ताली॥

राना भेजा सांप पिटारी, शालिग्राम बने बनवारी॥

 

निज माया तुम विधिहिं दिखायो, उर ते संशय सकल मिटायो॥

तब शत निन्दा करी तत्काला, जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥

 

जबहिं द्रौपदी टेर लगाई, दीनानाथ लाज अब जाई॥

तुरतहिं वसन बने नन्दलाला, बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥

 

अस नाथ के नाथ कन्हैया, डूबत भंवर बचावत नैया॥

सुन्दरदास आस उर धारी, दयादृष्टि कीजै बनवारी॥

 

नाथ सकल मम कुमति निवारो, क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥

खोलो पट अब दर्शन दीजै, बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥

 

दोहा

यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।

अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥

 

 

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