Vaikuntha Ekadashi 2025: जानें कब है वैकुंठ एकादशी, शुभ मुहूर्त और इसके पीछे की पौराणिक मान्यता

Vaikuntha Ekadashi 2025: जानें कब है वैकुंठ एकादशी, शुभ मुहूर्त और इसके पीछे की पौराणिक मान्यता
Last Updated: 8 घंटा पहले

Vaikuntha Ekadashi: वैकुंठ एकादशी सनातन धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है। यह एकादशी पौष मास के शुक्ल पक्ष में आती है और इसे "पौष पुत्रदा एकादशी" के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन व्रत और पूजा-अर्चना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं।

सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। हर महीने दो बार—कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में—एकादशी तिथि आती है। इनमें से पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को वैकुंठ एकादशी कहा जाता है। इसे पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।

वैकुंठ एकादशी 2025 शुभ तिथि और मुहूर्त

•    पंचांग के अनुसार, 2025 में वैकुंठ एकादशी 10 जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन पूजा-अर्चना का विशेष समय इस प्रकार हैं।
•    एकादशी तिथि प्रारंभ: 9 जनवरी, दोपहर 12:22 बजे
•    एकादशी तिथि समाप्त: 10 जनवरी, रात्रि 10:19 बजे
•    व्रत पारण समय: 11 जनवरी को प्रातः 7:15 बजे से 8:21 बजे तक

शुभ मुहूर्त

•    ब्रह्म मुहूर्त: प्रातः 5:27 बजे से 6:21 बजे तक
•    अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:08 बजे से 12:50 बजे तक
•    गोधूलि मुहूर्त: शाम 5:40 बजे से 6:07 बजे तक

वैकुंठ एकादशी व्रत विधि

•    व्रत के दिन प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
•    भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं।
•    पूजा के दौरान दीप जलाएं और फूल, चंदन, तुलसी दल अर्पित करें।
•    विष्णु सहस्रनाम, भगवद्गीता या एकादशी व्रत कथा का पाठ करें।
•    दिनभर उपवास रखें और केवल फलाहार ग्रहण करें।
•    रात्रि में जागरण कर भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें।
•    अगले दिन द्वादशी तिथि पर व्रत का पारण करें।

वैकुंठ एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, सुकेतुमान नाम का एक राजा था, जिसे संतान न होने का बहुत दुख था। वह इस चिंता में रहता था कि उसके निधन के बाद उसके पूर्वजों को मोक्ष कैसे मिलेगा। एक दिन राजा ने राजपाट त्यागकर वन की ओर प्रस्थान किया। वहां उसकी भेंट ऋषियों से हुई।

ऋषियों ने राजा को पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। राजा ने विधिपूर्वक व्रत किया। उसकी तपस्या और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे पुत्र रत्न का आशीर्वाद दिया। इस प्रकार वैकुंठ एकादशी व्रत से राजा की इच्छा पूर्ण हुई।

वैकुंठ एकादशी का महत्व

•    मोक्ष की प्राप्ति: वैकुंठ एकादशी व्रत करने से जन्म और मरण के चक्र से छुटकारा मिलता हैं।
•    पुत्र प्राप्ति का वरदान: इसे पौष पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, जो संतान प्राप्ति के लिए अत्यंत फलदायी मानी जाती हैं।
•    धन और सुख-शांति का वरदान: भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा से जीवन में समृद्धि और शांति आती हैं।

ध्यान देने योग्य बातें

•    व्रत के दौरान मन और वाणी को शुद्ध रखें।
•    पूजा में तुलसी के पत्तों का प्रयोग अवश्य करें, क्योंकि बिना तुलसी भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती हैं।
•    व्रत का पारण समय का विशेष ध्यान रखें।

वैकुंठ एकादशी का व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है, बल्कि भौतिक और मानसिक शांति भी देता है। इस पवित्र दिन पर पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान विष्णु की आराधना करें और उनके आशीर्वाद से जीवन को कृतार्थ बनाएं।

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