भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में सम्राट पृथ्वीराज चौहान का नाम शौर्य, वीरता और राष्ट्रभक्ति की अमिट मिसाल के रूप में अंकित है। हर वर्ष 11 मार्च को उनकी पुण्यतिथि पर पूरा देश श्रद्धा सुमन अर्पित करता है। अंतिम हिंदू सम्राटों में से एक पृथ्वीराज चौहान ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, लेकिन उनका पराक्रम इतिहास के पटल पर अमर बना हुआ है।
अजयमेरु से दिल्ली तक राजपथ
12वीं शताब्दी के वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान को उनकी बहादुरी और युद्ध कौशल के लिए जाना जाता है। अजयमेरु (वर्तमान अजमेर) उनकी राजधानी थी, लेकिन मध्यकालीन इतिहास और लोकगाथाएं उन्हें दिल्ली के प्रभावशाली शासक के रूप में भी दर्शाती हैं। उनकी गाथाएं आज भी जनमानस में जीवंत हैं, जो भारत की गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाती हैं।
युद्ध भूमि का अद्वितीय योद्धा
पृथ्वीराज चौहान ने अपने शासनकाल में कई निर्णायक युद्ध लड़े, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण संघर्ष मोहम्मद ग़ोरी के विरुद्ध हुआ। 1191 में प्रथम तराइन युद्ध में उन्होंने ग़ोरी को करारी शिकस्त दी, लेकिन दुर्भाग्यवश 1192 के द्वितीय तराइन युद्ध में पराजित हो गए। इस हार ने भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लामी शासन की नींव रखी और इतिहास की दिशा को बदल दिया।
अमर वीरता की गाथा
पृथ्वीराज चौहान की वीरता को लेकर कई लोककथाएं प्रचलित हैं। ‘पृथ्वीराज रासो’ के अनुसार, पराजय के बाद उन्हें ग़ोरी द्वारा अंधा कर दिया गया और ग़ज़नी ले जाया गया। लेकिन उनकी तीरंदाजी की अचूक कला और कवि चंद बरदाई की चतुराई ने ऐसा चमत्कार किया कि पृथ्वीराज ने अपने अंतिम तीर से ही ग़ोरी का वध कर दिया। हालांकि, यह ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित नहीं है, लेकिन यह कथा भारतीय वीरता की अद्वितीय प्रतीक बन चुकी है।
विरासत, स्मारक और प्रेरणा
सम्राट पृथ्वीराज चौहान की वीरता को सम्मान देने के लिए देशभर में कई स्मारक और स्थल उनके नाम पर मौजूद हैं। अजमेर और दिल्ली में उनके सम्मान में कई स्थान चिह्नित किए गए हैं। उनकी वीरगाथा को फिल्मों और धारावाहिकों के माध्यम से भी जीवंत किया गया, जिनमें ‘सम्राट पृथ्वीराज’ और ‘धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान’ प्रमुख हैं।
श्रद्धांजलि: बलिदान को नमन
सम्राट पृथ्वीराज चौहान की पुण्यतिथि केवल इतिहास का एक पृष्ठ नहीं, बल्कि साहस, आत्मसम्मान और राष्ट्रभक्ति की भावना को पुनर्जीवित करने का दिन है। उनका बलिदान हमें यह सिखाता है कि राष्ट्र की रक्षा से बड़ा कोई धर्म नहीं होता।