Vijaya Raje Scindia's Death Anniversary: शाही परिवार और राजनीति के बीच सेतु बनने वाली राजमाता, उनकी संघर्षमयी जिंदगी और राजनीतिक योगदान

Vijaya Raje Scindia's Death Anniversary: शाही परिवार और राजनीति के बीच सेतु बनने वाली राजमाता, उनकी संघर्षमयी जिंदगी और राजनीतिक योगदान
Last Updated: 2 दिन पहले

Vijaya Raje Scindia's: विजया राजे सिंधिया की पुण्यतिथि 25 जनवरी को मनाई जाती है। वे 25 जनवरी 2001 को इस दुनिया से विदा हो गईं। 25 जनवरी 2001 को भारतीय राजनीति और समाज में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व का निधन हुआ, जिन्होंने न केवल राजशाही की धारा में अपनी छाप छोड़ी, बल्कि भारतीय राजनीति में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई।

विजयाराजे सिंधिया का प्रारंभिक जीवन

विजयाराजे सिंधिया का जन्म 12 अक्टूबर 1919 को मध्य प्रदेश के सागर जिले में हुआ था। उनका जन्म राणा परिवार में हुआ था और वे ठाकुर महेंद्र सिंह और चूड़ा देवेश्वरी देवी की सबसे बड़ी संतान थीं। उनके परिवार का इतिहास और पृष्ठभूमि भी बहुत दिलचस्प था, क्योंकि उनकी माँ नेपाल के राणा वंश से संबंधित थीं।

इनका बचपन का नाम लेखा देवेश्वरी था और उनका पालन-पोषण नेपाल हाउस, सागर में हुआ। विजयाराजे के जीवन की दिशा बदलने वाली एक महत्वपूर्ण घटना उनकी मुलाकात महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से हुई। यह मुलाकात मुंबई के ताज होटल में हुई, जहां से उनका जीवन एक नए मोड़ पर पहुंचा।

विवाह और सिंधिया परिवार में प्रवेश

विजयाराजे सिंधिया की शादी महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से हुई। इस विवाह को लेकर कई विवादों का सामना करना पड़ा। सिंधिया परिवार और मराठा सरदारों ने इस विवाह का विरोध किया, लेकिन विजयाराजे ने अपने व्यवहार और समर्पण से उनका विश्वास जीता। यह विवाह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने उन्हें ग्वालियर के राजमाता का दर्जा दिया और साथ ही भारतीय राजनीति में कदम रखने का रास्ता भी खोला।

जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी तक

विजयाराजे सिंधिया का राजनीतिक करियर बहुत ही प्रेरणादायक था। उन्होंने सबसे पहले 1957 में कांग्रेस पार्टी से राजनीति में कदम रखा और गुना लोकसभा सीट से चुनाव जीता। हालांकि, कांग्रेस से उनका मोहभंग हो गया और उन्होंने 1967 में जनसंघ जॉइन कर लिया। जनसंघ में उनकी सक्रियता और नेतृत्व ने ग्वालियर क्षेत्र में पार्टी की स्थिति को मजबूती प्रदान की।

विजयाराजे सिंधिया ने अपनी राजनीतिक यात्रा के दौरान कई बार भारतीय संसद में अपनी जगह बनाई। उनके नेतृत्व में जनसंघ ने 1971 में ग्वालियर क्षेत्र में शानदार जीत हासिल की। इस चुनाव में उनके पुत्र माधवराव सिंधिया और अटल बिहारी वाजपेयी भी सांसद बने।

विवाद और विवादास्पद बयान

विजयाराजे सिंधिया अपने कुछ विवादास्पद बयानों के लिए भी जानी जाती हैं। सती प्रथा और महिलाओं के बारे में उनके विचारों ने विवादों को जन्म दिया। उन्होंने महिलाओं से विधवापन का शोक मनाने के लिए रंगीन कपड़े पहनने और अच्छे खाने से परहेज करने की सलाह दी, जिसे लेकर उन्हें कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा।

परिवार और विरासत

विजयाराजे सिंधिया के परिवार में उनके चार पुत्रियाँ और एक पुत्र थे। उनके परिवार के सदस्य, जैसे वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे, ने भी राजनीति में अपनी जगह बनाई। वसुंधरा राजे, जिन्होंने राजस्थान की मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया, और यशोधरा राजे, जो भारतीय जनता पार्टी की नेता हैं, ने विजयाराजे के राजनीतिक उत्तराधिकार को आगे बढ़ाया।

विजयाराजे सिंधिया का एक विवादित वसीयत भी सामने आया, जिसमें उन्होंने अपने पुत्र माधवराव सिंधिया से संबंधों में कड़ी दरार दिखाई थी। हालांकि, उनके निधन के बाद उनके बेटे माधवराव ने उनकी चिता को मुखाग्नी दी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सम्मान

विजयाराजे सिंधिया के योगदान और उनके व्यक्तित्व को भारतीय राजनीति और समाज में सम्मानित किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी जयंती पर 100 रुपये के स्मारक सिक्के का अनावरण किया और उनके महान व्यक्तित्व को नमन किया।

 एक अद्वितीय राजमाता

विजयाराजे सिंधिया का जीवन भारतीय राजनीति और समाज में अपनी छाप छोड़ने वाला था। वे एक ऐसी शख्सियत थीं जिन्होंने न केवल राजशाही की विरासत को आगे बढ़ाया, बल्कि भारतीय राजनीति के एक नए दौर की शुरुआत की। उनके योगदान को भारतीय राजनीति और समाज कभी नहीं भूल पाएंगे। 25 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है, और उनके जीवन की गाथा हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपने कर्तव्यों और मिशन के प्रति समर्पित रहें।

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