पूर्व कांग्रेस विधायक और युवा नेता दलबीर गोल्डी की पंजाब कांग्रेस में वापसी ने राज्य की राजनीति में एक बार फिर हलचल मचा दी है। उनकी वापसी को लेकर पिछले कुछ समय से पार्टी के भीतर तनाव और असहमति देखने को मिल रही थी।
Punjab Politics: पंजाब की सियासत में एक बार फिर से पुराने पत्तों की फेंट हो रही है। कभी भगवंत मान के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरने वाले और फिर आम आदमी पार्टी में शरण लेने वाले दलबीर गोल्डी ने शनिवार को कांग्रेस पार्टी में औपचारिक वापसी कर ली। यह वापसी ऐसे समय हुई है जब पंजाब कांग्रेस में गुटबाज़ी की चर्चा आम हो चुकी है, और कई फैसले ‘आपसी सहमति’ के बिना अटकते दिखाई दे रहे थे।
भूपेश बघेल की मौजूदगी में हुई वापसी
कांग्रेस के पंजाब प्रभारी और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उपस्थिति में हुए इस पुनः प्रवेश को संगठनात्मक रूप से बड़ा कदम माना जा रहा है। बघेल ने इस मौके पर कहा, दलबीर जैसे ज़मीनी नेता की वापसी पार्टी को मज़बूती देगी, खासकर युवाओं के बीच। गोल्डी की वापसी को लेकर लंबे समय से कयासबाज़ी चल रही थी।
लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रताप सिंह बाजवा और प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग के बीच सहमति न बनने के कारण प्रक्रिया अटक गई थी। बाजवा के एक बयान, पार्टी में एक पत्ता भी मेरी मर्जी के बिना नहीं हिलता ने गोल्डी की वापसी को रोकने का काम किया था। हालांकि हाल के हफ्तों में बाजवा और वड़िंग के बीच राजनीतिक तापमान कुछ ठंडा हुआ और उनके बीच सामंजस्य नज़र आने लगा, जिससे यह संकेत मिल गया था कि अब गोल्डी की वापसी सिर्फ औपचारिकता भर है।
धूरी से हार, संगरूर से हताशा, और अब वापसी की कहानी
गोल्डी ने 2022 में मुख्यमंत्री भगवंत मान के खिलाफ धूरी से विधानसभा चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। बाद में जब उन्हें संगरूर लोकसभा उपचुनाव में टिकट नहीं मिला तो उन्होंने पार्टी छोड़कर आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया। लेकिन वहां भी जल्द ही उनकी राजनीतिक असहजता बढ़ती गई।
हाल के उपचुनावों में जब उन्होंने गिदड़बाहा में राजा वड़िंग की पत्नी अमृता वड़िंग के लिए प्रचार किया, तो सियासी हलकों में उनकी वापसी की चर्चाएं तेज़ हो गईं। गोल्डी की वापसी को जहां कांग्रेस के कुछ नेता संगठन में ऊर्जा का संचार मान रहे हैं, वहीं पार्टी के अंदरूनी सूत्र यह भी कह रहे हैं कि इससे पुराने गुटबाज़ी के घाव फिर उभर सकते हैं। हालांकि प्रदेश नेतृत्व फिलहाल इस कदम को एकता का संकेत देने की कोशिश में है।