Erasmus Award: जलवायु परिवर्तन पर लेखन के लिए भारतीय लेखक को मिला ‘इरास्मस पुरस्कार’, यह सम्मान पाने वाले बने पहले दक्षिण एशियाई

Erasmus Award: जलवायु परिवर्तन पर लेखन के लिए भारतीय लेखक को मिला ‘इरास्मस पुरस्कार’, यह सम्मान पाने वाले बने पहले दक्षिण एशियाई
Last Updated: 5 घंटा पहले

इरास्मस पुरस्कार एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार है, जो प्रति वर्ष उन व्यक्तियों या संस्थाओं को दिया जाता है जिन्होंने मानविकी, सामाजिक विज्ञान, या कला के क्षेत्र में असाधारण योगदान दिया हो। यह पुरस्कार मुख्य रूप से यूरोप के सांस्कृतिक, सामाजिक, और मानवतावादी मूल्यों को प्रोत्साहित करने और उनके प्रसार के लिए दिया जाता हैं।

लन्दन: प्रसिद्ध भारतीय लेखक अमिताव घोष को जलवायु परिवर्तन संकट के संदर्भ में “अकल्पनीय की कल्पना” विषय पर उनके अद्वितीय योगदान के लिए प्रतिष्ठित इरास्मस पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। यह पुरस्कार उन्हें मंगलवार को नीदरलैंड के एम्स्टर्डम स्थित रॉयल पैलेस में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रदान किया जाएगा। अमिताव घोष इस सम्मान को प्राप्त करने वाले दक्षिण एशिया के पहले व्यक्ति बन गए हैं।

घोष का जन्म कोलकाता में हुआ था और वे अपनी कृतियों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय चिंताओं पर गहन विचार प्रकट करते हैं। उन्हें यह पुरस्कार प्रीमियम इरास्मियनम फाउंडेशन द्वारा दिया जा रहा है, जो सामाजिक विज्ञान, मानविकी, और कला में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रसिद्ध व्यक्तियों को सम्मानित करता हैं।

घोष ने पुरस्कार की घोषणा पर कहा

घोष ने पुरस्कार की घोषणा पर कहा कि वे इसे प्राप्त कर “बेहद सम्मानित” महसूस कर रहे हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को पूर्व में चार्ली चैपलिन, इगमार बर्गमैन, और ट्रेवर नोआ जैसी महान हस्तियों को दिया गया है। अपनी प्रतिक्रिया में घोष ने भारतीय दर्शन और कर्म के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि, “जो भी परिस्थितियां हों, यह हमारा धर्म और कर्तव्य है कि हम वह करें, जो हम कर सकते हैं, ताकि भविष्य में आने वाली भयानक समस्याओं को रोका जा सके।”

अमिताव घोष, जो ‘द ग्रेट डिरेंजमेंट: क्लाइमेट चेंज एंड द अनथिंकेबल’ के लेखक हैं, ने जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों पर अपनी गहरी चिंताएं व्यक्त की हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसी) के तहत जिस तरह से पक्षकारों के साथ काम किया जा रहा है, वह पर्याप्त रूप से प्रभावी नहीं हैं।

घोष ने लेखन में लिखा 

घोष ने बताया कि जलवायु परिवर्तन को सामूहिक समस्या के रूप में देखने और इससे निपटने के ठोस प्रयासों की कमी है। उनका मानना है कि यह समस्या केवल पर्यावरणीय संकट नहीं है, बल्कि यह उपनिवेशवाद, असमानता और वैश्विक विषमताओं के लंबे इतिहास से गहराई से जुड़ी हुई है। एक प्रसिद्ध लेखक, जो ऐतिहासिक कथा साहित्य और गैर-कथा साहित्य दोनों में सिद्धहस्त हैं, घोष का दृष्टिकोण जलवायु संकट को सामाजिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में देखने पर जोर देता हैं। 

उनका मानना है कि वर्तमान में अपनाई गई नीतियां और उपाय पर्याप्त नहीं हैं, क्योंकि वे इस जटिल और गहन समस्या की जड़ों तक नहीं पहुंच पाते। घोष के अनुसार, यह आवश्यक है कि जलवायु परिवर्तन को केवल पर्यावरणीय चुनौती न मानते हुए, इसे सामाजिक, आर्थिक और ऐतिहासिक अन्यायों से जोड़कर समझा जाए। यह दृष्टिकोण इस समस्या का समाधान खोजने में अधिक प्रभावी हो सकता हैं।

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