उत्तराखंड और हिमालय क्षेत्र के अन्य चार राज्यों में जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते ग्लेशियर पिघलाव से गंभीर खतरे उत्पन्न हो रहे हैं। केंद्रीय जल आयोग (CWC) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, हिमालयी ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के कारण यहां ग्लेशियर झीलों का आकार बढ़ रहा है। यदि इन झीलों में पानी का दबाव बढ़कर झीलें टूटती हैं, तो निचले क्षेत्रों में व्यापक बाढ़ और तबाही का खतरा हैं।
देहरादून: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के चलते हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियर झीलों का आकार तेजी से बढ़ रहा है, जिससे इन क्षेत्रों में संभावित आपदाओं का खतरा बढ़ता जा रहा है। केंद्रीय जल आयोग (CWC) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 13 वर्षों में हिमालय की ग्लेशियर झीलों में 33.7% की वृद्धि दर्ज की गई है। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में जहां ग्लेशियर अधिक हैं, स्थिति और भी गंभीर हैं।
विशेष रूप से उत्तराखंड और आसपास के हिमालयी राज्यों में यह वृद्धि 40% तक पहुँच चुकी है, जो खतरनाक स्तर पर मानी जा रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, और इनसे बनी झीलें अधिक पानी एकत्र कर रही हैं। यदि ये झीलें फटती हैं, तो नीचे बसे क्षेत्रों में विनाशकारी बाढ़ और तबाही हो सकती है, जिसे ग्लेशियर झील विस्फोट बाढ़ (GLOF) के रूप में जाना जाता हैं।
ग्लेशियर झीलों का दायरा बढ़ने से बाढ़ का खतरा
केंद्रीय जल आयोग (CWC) की ताजा रिपोर्ट से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण भारत में हिमालयी ग्लेशियर झीलों का क्षेत्रफल तेजी से बढ़ा है। वर्ष 2011 से सितंबर 2024 तक किए गए अध्ययन में पाया गया कि इन झीलों का क्षेत्रफल 1,962 हेक्टेयर से बढ़कर 2,623 हेक्टेयर हो गया, जो 33.7% की वृद्धि दर्शाता है। इस विस्तार के साथ, झीलों में जमा पानी की मात्रा भी बढ़ी है, जिससे इन जल निकायों के आसपास का क्षेत्र अधिक जोखिम में आ गया हैं।
इसके अलावा, अन्य जल निकायों के क्षेत्र में भी विस्तार हुआ है। वर्ष 2011 में इनका कुल क्षेत्रफल 4.33 लाख हेक्टेयर था, जो अब 10.81% बढ़कर 5.91 लाख हेक्टेयर हो गया है। इस बढ़ोतरी से बाढ़ का खतरा न केवल भारत के निचले क्षेत्रों में बल्कि भूटान, नेपाल, और चीन जैसे पड़ोसी देशों में भी बढ़ गया है, क्योंकि ग्लेशियर झीलों का दायरा बढ़ने से बाढ़ का जोखिम सीमा-पार क्षेत्रों में भी फैल रहा हैं।
उच्च जोखिम वाली इन ग्लेशियर झीलों का विस्तार खासतौर पर चिंता का विषय है, क्योंकि इनके फटने से निचले इलाकों में अचानक बाढ़ आ सकती है, जिसे ग्लेशियर झील विस्फोट बाढ़ (GLOF) कहा जाता है। इससे जान-माल की हानि का खतरा बढ़ जाता हैं।
ग्लेशियर पिघलने से इन राज्यों में स्थिति चिंताजनक
केंद्रीय जल आयोग (CWC) की ताजा रिपोर्ट में यह पाया गया है कि हिमालयी क्षेत्र में 67 ग्लेशियर झीलों का सतही क्षेत्रफल 40% से अधिक बढ़ गया है, जिससे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। यह स्थिति विशेष रूप से उत्तराखंड, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में अधिक गंभीर है। ऐसी झीलों की गहन निगरानी की सिफारिश की गई है, क्योंकि इन झीलों के अचानक टूटने से नीचे बसे इलाकों में बड़े पैमाने पर तबाही की संभावना हैं।
पिछले वर्ष इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) की एक रिपोर्ट में भी इस संकट की गंभीरता पर जोर दिया गया था। इस रिपोर्ट के अनुसार, 2011 से 2020 के बीच ग्लेशियर पिघलने की गति 2000 से 2010 की तुलना में 65% अधिक थी। यह तेज़ी जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रही है और बेहद चिंताजनक है, क्योंकि हिमालय का क्षेत्र लगभग 1.65 अरब लोगों के लिए जल का एक प्रमुख स्रोत है। ICIMOD ने चेताया कि यदि ग्लेशियर पिघलने की यह रफ्तार बनी रही, तो सदी के अंत तक हिमालय के 80% ग्लेशियर समाप्त हो सकते हैं।
इस तीव्र पिघलाव का प्रभाव न केवल स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र और जल आपूर्ति पर पड़ेगा, बल्कि इससे क्षेत्रीय बाढ़ और पानी की किल्लत भी हो सकती है, जो भारत समेत पूरे दक्षिण एशिया में खाद्य सुरक्षा और कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता हैं।