यूरोप का नाम सुनते ही दिमाग में जो छवि उभर कर आती है। उसमे ये सोच तो कहीं भी दूर-दूर तक नहीं होती कि यूरोप में लोग गरीबी में होंगे। पर यह सच है, ये रिपोर्ट सेव द चिल्ड्रन नामक नामी संस्था द्वारा तैयार की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक यूरोप में गरीबी
के जोखिम वाले बच्चों की संख्या पहले से दो लाख की वृद्धि के बाद 1.96 करोड़ हो गई है। 2021 तक के सर्वेक्षण पर आधारित है। यक़ीनन अब ये संख्या और बढ़ी ही होगी।
सेव द चिल्ड्रन जो की एक गैर सरकारी संगठन है, के सर्वे के अनुसार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यूरोपीय संघ के देशों में लगभग दो करोड़ बच्चे गरीबी में जी रहे हैं। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि यूरोप में हर चार में से एक बच्चे का गरीबी में जाने का खतरा बना हुआ है।
गरीबी में वृद्धि का मुख्य कारण कोविड-19 के कारण बुनियादी जरूरतों के खर्च में वृद्धि यानी महंगाई को बताया गया है। जाहिर है कोरोना के बाद रूस-यूक्रेन संघर्ष ने महंगाई में और इजाफा ही किया है।
अगर हम जर्मनी की बात करें तो यह रिपोर्ट कहती है कि जर्मनी में 2021 में 20 लाख से ज्यादा बच्चे गरीबी में जी रहे थे। जर्मनी में बाल गरीबी और सामाजिक असमानता के ये आंकड़े बहुत परेशान करने वाले हैं. जर्मनी में हर पांच में से एक बच्चा गरीबी में है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक यूरोपीय संघ के देशों में गरीबी और सामाजिक बहिष्कार के जोखिम वाले बच्चों की सबसे ज्यादा दर रोमानिया में है जो की 41.5 प्रतिशत बताई गई है। इसके बाद दूसरे नंबर पर स्पेन का नाम है, जहाँ ये संख्या 33.4 प्रतिशत बताई गई है.
जर्मनी में ये संख्या 23.5 प्रतिशत बताई गई है, जो यूरोप में औसत दर से थोड़ी कम है।
सबसे बेहतर स्थिति फिनलैंड की है। फ़िनलैंड में बाल गरीबी की दर सबसे कम 13.2 प्रतिशत बताई गई है, इसके बाद डेनमार्क भी अच्छी स्थिति में है। डेनमार्क में यह संख्या 14 प्रतिशत बताई गई है।
पिछले साल अक्टूबर से दिसंबर के बीच यूरोपीय संघ के 14 देशों द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के आधार पर सहायता एजेंसियों का कहना है कि यूक्रेन पर रूस के हमले के परिणामस्वरूप आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि और गरीबों के लिए स्थिति बदतर हुई है। मध्यम वर्ग इससे विशेष रूप से प्रभावित हुआ है।
ये सब सालों में ही बदल गया है. सेव द चिल्ड्रन की रिपोर्ट में कहा गया है कि शरणार्थी, शरण चाहने वाले और जिनके पास दस्तावेज नहीं हैं, वे सबसे ज्यादा खराब स्थिति में हैं। गरीबी के जोखिम में वे बच्चे भी शामिल हैं जो अपने माता-पिता में से किसी एक के साथ रहते हैं।और जिनके परिवार बड़े हैं और आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हैं, जाहिर है अल्पसंख्यक और शरणार्थियों की हालत ज्यादा खराब है।
रिपोर्ट में ये सुझाव दिया गया है कोविड के बाद रूस-यूक्रेन संघर्ष ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है। मध्यम वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है और बिना देरी के सरकारों को निर्णायक और ठोस कदम उठाने चाहिए, जिससे बच्चों के भविष्य को सुरक्षित किया जा सके।