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नेपाल में राजशाही की वापसी की मांग क्यों? जानिए आखिरकार क्यों हुआ यह बदलाव

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नेपाल में राजशाही की वापसी की मांग तेज हो रही है। काठमांडू में हुए प्रदर्शन में लोग शाही परिवार को सत्ता में लाने की मांग कर रहे हैं, देश की राजनीतिक असंतोष के बीच।

Nepal: नेपाल में एक बार फिर राजशाही की वापसी की मांग जोर पकड़ रही है। राजशाही समर्थकों का कहना है कि देश की मौजूदा स्थिति में सुधार के लिए केवल शाही परिवार ही सक्षम है। हाल ही में काठमांडू की सड़कों पर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए, जहां 'राजा वापस आओ, देश बचाओ' जैसे नारे लगाए गए। इन प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि नेपाल के राजनीतिक दल भ्रष्ट हो चुके हैं और उनकी नीतियां देश के भविष्य को अंधेरे में धकेल रही हैं।

राजशाही समर्थकों का आंदोलन

राजशाही समर्थकों का कहना है कि जब शाही परिवार सत्ता में था, तो देश की समस्याओं का समाधान होता था, और राष्ट्र का विकास भी हुआ था। अब, राजनीतिक असंतोष के कारण लोग महसूस करते हैं कि लोकतांत्रिक सरकारें उनके लिए काम नहीं कर रही हैं, और नेपाल का भविष्य असमंजस में है। इस आंदोलन के कारण हाल ही में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष हुआ, जिसमें एक पत्रकार समेत दो लोगों की मौत हो गई और 20 से ज्यादा लोग घायल हुए।

नेपाल के सामाजिक और आर्थिक हालात

नेपाल के आर्थिक हालात संकटग्रस्त हैं, और बेरोजगारी के कारण देश के युवा बड़े पैमाने पर विदेश पलायन कर रहे हैं। नेपाल की विदेश नीति और राजनीतिक ढांचे को लेकर भी लोगों में नाराजगी है। राजशाही के समर्थक मानते हैं कि शाही परिवार के पुनर्निर्माण से देश की राजनीतिक स्थिति बेहतर हो सकती है।

नेपाल में धर्म और जनसंख्या का विवाद

नेपाल में धर्म के संदर्भ में भी विवाद बढ़ता जा रहा है। 2021 के सेंसस के मुताबिक, नेपाल में 81% लोग हिंदू धर्म को मानते हैं, जबकि इसके बाद बौद्ध धर्म, इस्लाम और ईसाई धर्म के अनुयायी हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में नेपाल में चर्चों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है, और बौद्ध धर्म के अनुयायी बड़ी संख्या में ईसाई धर्म अपना रहे हैं। इससे हिंदू और बौद्ध धर्म के अनुयायी चिंतित हैं और वे चाहते हैं कि राजशाही की वापसी से नेपाल की धार्मिक पहचान सुनिश्चित हो।

राजशाही का इतिहास

नेपाल में राजशाही की शुरुआत लगभग ढाई सौ साल पहले हुई थी, लेकिन 2008 में अंतिम राजा ज्ञानेंद्र को अपदस्थ कर दिया गया। इसके बाद नेपाल को एक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया। 2001 में रॉयल परिवार के एक सदस्य द्वारा परिवार के 9 लोगों की हत्या के बाद नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल मची थी और माओवादी ताकतें मजबूत हुईं। इसके परिणामस्वरूप राजशाही के खिलाफ आंदोलन तेज हुआ और नेपाल ने सेकुलर देश बनने की दिशा में कदम बढ़ाए।

पूर्व राजा ज्ञानेंद्र और उनकी संपत्ति

पूर्व राजा ज्ञानेंद्र, जिनकी सत्ता समाप्त हो गई थी, आज भी नेपाल और विदेशों में अपनी संपत्ति और प्रभाव बनाए हुए हैं। नेपाल के काठमांडू में उनके पास कई महल हैं, जैसे निर्मल निवास, जीवन निवास, गोकर्ण महल और नागार्जुन महल। इसके अलावा, उनके पास हजारों एकड़ में फैला हुआ नागार्जुन जंगल भी है। नेपाल के अलावा, उन्होंने अफ्रीकी देशों में भी निवेश किए हैं। मालदीव में उनका एक द्वीप है, और नाइजीरिया में तेल के व्यवसाय में भी उनका निवेश है।

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