स्टडी के लिए वापस यूक्रेन-जॉर्जिया पढ़ने लौटे भारतीय छात्र; सरकार से कोई मदद नहीं,

स्टडी के लिए वापस यूक्रेन-जॉर्जिया पढ़ने लौटे भारतीय छात्र; सरकार से कोई मदद नहीं,
Last Updated: 07 अप्रैल 2023

24 फरवरी 2022 की सुबह यूक्रेन की राजधानी कीव के लोगों की नींद बम धमाकों की आवाज से खुली। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने यूक्रेन के खिलाफ ‘विशेष सैन्य अभियान’ के नाम पर जंग शुरू कर दी। सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद ये किसी देश का दूसरे देश पर किया गया सबसे बड़ा हमला था।

खार्कीव यूनिवर्सिटी में मेडिकल की पढ़ाई कर रही आयुशा, इवानो फ्रांकिस्क के नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे मोहम्मद फैसल को इन्हीं बमों से घबराकर भारत लौटना पड़ा था। हालांकि, आयुशा यूक्रेन वापस जा चुकी हैं, वे कहती हैं-कभी भी अलार्म बजने लगते हैं, पूरा शहर बंद हो जाता है। डर लगता है, कब धमाका हो जाए। कहां बम गिर जाए, क्या हो जाए कुछ नहीं पता। आखिरी साल है, पढ़ाई तो पूरी करनी ही है।’

इस युद्ध को शुरू हुए 365 दिन गुजर चुके हैं। यूक्रेन में पढ़ने वाले करीब 18 हजार भारतीय छात्र-छात्राओं को युद्ध की वजह से यूक्रेन छोड़ना पड़ा था। भारत सरकार ने नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि उसके पास यूक्रेन से लौटे 15,783 छात्रों के बारे में जानकारी है।

इनमें से 640 अभी वॉर जोन यानी यूक्रेन में हैं। 170 ने दूसरे देशों में दाखिला लिया है और बाकी लगभग 15 हजार भारत में ही पढ़ाई कर रहे हैं। हालांकि, तब से अब तक बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स यूक्रेन लौट रहे हैं, कई ने जॉर्जिया जैसे देशों में दाखिले ले लिए हैं।

 

सरकार से नाराज़  माता-पिता ने कोर्ट में किया केस,
रूस का यूक्रेन पर हमले के बाद करीब 23 हजार भारतीय छात्रों ने यूक्रेन छोड़ दिया था। हालांकि स्वदेश लौटे स्टूडेंट्स के माता-पिता की शिकायत है कि सरकार ने उनसे छात्रों के एडमिशन का वादा किया था, लेकिन लौटने के बाद एडमिशन में कोई मदद नहीं की।

यूक्रेन से लौटे स्टूडेंट्स का मामला सुप्रीम कोर्ट में है। स्टूडेंट्स ने याचिका दायर कर भारत के मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन की मांग की है। इस मामले की सुनवाई करने के लिए केंद्र सरकार ने एक एक्सपर्ट पैनल बनाया है। 25 जनवरी 2023 को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मेडिकल एजुकेशन पर समझौता नहीं कर सकते हैं। एक्सपर्ट पैनल की सिफारिश के बिना इस मामले में कोई फैसला नहीं दिया जा सकता।

केंद्र सरकार की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच को बताया था कि कमेटी बन चुकी है, हालांकि ये कमेटी सिर्फ फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स के एडमिशन पर ही राय देगी। स्टूडेंट्स के वकील ने कोर्ट में कहा था कि यूक्रेन में युद्ध के कारण वहां पढ़ने वाले सभी छात्र प्रभावित हैं, चाहे वे फर्स्ट ईयर के हों या फिर फाइनल ईयर के।

जिन्हे बचाकर लाइ उनमे से कई वापस यूक्रेन लौटे; कुछ जॉर्जिया चले गए
रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुए एक साल गुजर गया है. मीडिया ने भारत लौटे स्टूडेंट्स से मुलाकत करने के लिए सोचा, तो पता चला कि पढ़ाई के लिए काफी सारे यूक्रेन लौट भी गए हैं। ऐसे में यूक्रेन और जॉर्जिया में पढ़ाई कर रहे कुछ भारतीय स्टूडेंट्स से हुई बातचीत … सोर्स दैनिक भास्कर 

आयुशा
लोकेशन: टर्नोपिल, यूक्रेन
भारत में ओडिशा के भुवनेश्वर से

युद्ध शुरू होने के बाद 11वें दिन मैं भारत लौट आई थी, लेकिन पढ़ाई की वजह से मैंने वापस यूक्रेन आना तय किया। पहले मैं खार्कीव यूनिवर्सिटी में पढ़ती थी, अब मैंने टर्नोपिल यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर ले लिया है। दोनों यूनिवर्सिटीज ने आपस में समझौता किया था, जिसके बाद कई स्टूडेंट्स को यहां ट्रांसफर दे दिया गया।

मैं पश्चिमी यूक्रेन में हूं, यहां हालात पूर्वी यूक्रेन के मुकाबले अच्छे हैं। यहां युद्ध का उतना असर नहीं है। हालांकि, रात 11 बजे से लेकर सुबह साढ़े पांच बजे तक कर्फ्यू होता है। घर से नहीं निकला जा सकता है। सुरक्षा के लिए ऐसा किया गया है।

टर्नोपिल में अब तक बमबारी नहीं हुई है, लेकिन युद्ध के बाद बिजली की बड़ी समस्या है। शहर को तीन हिस्सों में बांटा गया है। हर दिन छह घंटे बिजली आती है। यहां खाने-पीने की सभी चीजें मिल रही हैं, लेकिन सब महंगा हो गया है।

कभी भी सिक्योरिटी अलार्म बजने लगते हैं, तब घबराहट होती है। मुझे पता नहीं कि आगे क्या होगा, क्या करना होगा। मेरे साथ वाले स्टूडेंट्स ने दूसरे देशों में ट्रांसफर ले लिया है। कुछ भारत में रहकर ऑनलाइन क्लासेज ले रहे हैं। मेरे जैसे भी बहुत से स्टूडेंट हैं, जो वापस पढ़ने लौट आए हैं।

हालात मुश्किल हैं, लेकिन भारत लौटकर भी कुछ आसान नहीं था। सभी ने कोई ना कोई रास्ता निकालने की कोशिश की है, ताकि पढ़ाई न रुके।

सबसे बड़ी चुनौती ये है कि कल का कुछ नहीं पता। हर चीज को लेकर अनिश्चितता है। कभी किसी ने नहीं सोचा था कि यहां ऐसा युद्ध छिड़ जाएगा और ये इतना लंबा चलेगा। यहां कई नए रेस्टोरेंट भी खुले हैं, जो बंकर की डिजाइन के हैं। अलार्म बजता है और आप रेस्टोरेंट में हैं, तो आपको बाहर निकलकर बंकर में जाने की जरूरत नहीं है। यहां की जिंदगी में बमबारी के दौरान छुपना शामिल होता जा रहा है।

 

आदर्श कुमार निरंजक
लोकेशन: बातुमी, जॉर्जिया
भारत में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से

मैं यूक्रेन में मेडिकल फाइनल ईयर का स्टूडेंट था। युद्ध छिड़ा तो भारत लौट गया था। अब ट्रांसफर लेकर जॉर्जिया आ गया हूं। भारत में भी सिर्फ इंतजार ही चल रहा था, नहीं पता था कि एडमिशन मिलेगा या नहीं। जॉर्जिया ट्रांसफर मिला तो अब आगे का रास्ता नजर आने लगा है।

ये ट्रांसफर मुझे काफी महंगा पड़ा, यूनिवर्सिटी फीस के अलावा 2400 डॉलर (करीब 2 लाख रुपए) खर्च हो चुके हैं। ट्रांसफर की प्रोसेस भी मुश्किल थी, काफी लोगों ने अप्लाई किया था। प्रोसेस में महीनों लग गए। जॉर्जिया की यूनिवर्सिटी ने यूक्रेन में हमारी यूनिवर्सिटी की मार्कशीट को मान्यता दी है और उसी के हिसाब से हमारा आगे का करीकुलम बनाया है।

मैं जॉर्जिया के बातूमी शहर में रहता हूं। यहां बड़ी तादाद में विदेशी टूरिस्ट आते हैं, इसलिए लोकल लोग विदेशी नागरिकों के लिए बहुत मददगार हैं। भारतीयों की छवि भी अच्छी है, जब लोकल लोगों को पता चलता है कि हम मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं तो अच्छा व्यवहार करते हैं। यूक्रेन और जॉर्जिया में पढ़ाई लगभग एक जैसी ही है। मेरी नजर में जॉर्जिया, यूक्रेन से थोड़ा अच्छा है, लेकिन यहां एग्जाम यूक्रेन के मुकाबले टफ हैं।

 

उत्कर्ष प्रकाश राय
जॉर्जिया जाने वाले हैं
यूपी के नोएडा में रहते हैं

युद्ध के दौरान मैं यूक्रेन से सुरक्षित लौटा तो परिवार वाले खुश थे। कुछ ही महीनों में फ्यूचर की चिंता सताने लगी। इस युद्ध से पढ़ाई का फ्लो ही टूट गया। आगे की डिग्री के लिए मैंने यूक्रेन से जॉर्जिया में ट्रांसफर लिया है। जॉर्जिया में ट्रांसफर लेना बहुत मुश्किल और तकलीफदेह था। मैंने सितंबर में आवेदन दिया था, मंजूर हो गया, लेकिन अब तक नहीं जा पाया। वीजा नहीं मिल पाया है।

युद्ध की वजह से यूक्रेन में अपनी यूनिवर्सिटी से मार्कशीट और ट्रांस्क्रिप्ट लाने में काफी दिक्कत हो रही है। दूसरे देश में ट्रांसफर लेने के लिए परिवार को काफी पैसा खर्च करना पड़ रहा है। सिर्फ ट्रांसफर सर्टिफिकेट के लिए ही 50 हजार रुपए से ज्यादा खर्च हुए। वीजा फीस तो और भी महंगी है। 2 लाख खर्च कर चुके हैं, लेकिन अब तक पढ़ाई शुरू नहीं हो पाई।

लौटे तो सरकार से उम्मीद थी, लेकिन उसने किसी भी तरह से मदद नहीं की। देश में एडमिशन नहीं दिला पा रही थी, तो कम से कम ट्रांसफर में ही मदद कर देती। कुछ नहीं तो वीजा प्रोसेस आसान बना देती, ये जो एक्स्ट्रा पैसे हमें देने पड़ रहे हैं, ये भी कम कर सकती थी। हमने ट्वीट किया, प्रोटेस्ट किया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। हम बस अब इंतजार कर रहे हैं कि हमारे साथ कुछ तो अच्छा हो।

 

आस्था सौरव
भारत में रहकर ऑनलाइन क्लासेज
यूपी के नोएडा में रहती हैं

युद्ध शुरू हुआ, तब मैं थर्ड ईयर में थी। युद्ध की वजह से बाकी छात्रों के साथ मुझे भी भारत आना पड़ा। अब मैं ऑनलाइन पढ़ाई कर रही हूं। हम डॉक्टर बनने वाले हैं, प्रैक्टिकल और प्रैक्टिस नहीं करेंगे तो कैसे होगा। ऑनलाइन और ऑफलाइन पढ़ाई में बहुत फर्क है। ऑनलाइन पढ़ाई में टीचर से बात ही नहीं हो पाती, सवाल भेज दो, तो वे जवाब दे देते हैं।

अब न मैं दोस्तों के साथ हूं, न मैं टीचर से सीधे संपर्क में हूं। बस कोर्स पूरा करना है। ये बहुत मुश्किल हो रहा है। मैं भी जॉर्जिया ट्रांसफर लेने के बारे में सोच रही हूं, लेकिन ये प्रोसेस बहुत मुश्किल है। वीजा मिलने में ही 6-8 महीने का टाइम लग जाता है।

जॉर्जिया के अलावा कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और रूस जाने का ऑप्शन है, काफी बच्चे वहां भी जा रहे हैं। इस बात की राहत है कि MCI (मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया) ने नोटिफिकेशन जारी कर ये बता दिया है कि हम किन देशों में एडमिशन ले सकते हैं। बहुत से स्टूडेंट पश्चिमी यूक्रेन भी लौट गए हैं, वहां हालात ठीक हैं। चैलेंज ये है कि मेडिकल की पूरी पढ़ाई ऑफलाइन हो ही नहीं सकती, आपको प्रैक्टिकल के लिए जाना ही पड़ेगा।

यूक्रेन से लौटने में भारत सरकार और दूतावास के अधिकारियों ने हमारी काफी मदद की थी। MCI ने भी मदद की, लेकिन वे हमारे लिए काफी कुछ और भी कर सकते थे। उनकी मदद मिलती तो इतनी समस्याएं नहीं होती।

 

हमने 4 साल में 800 बच्चों को पढ़ने यूक्रेन भेजा, अब बिजनेस ठप है
स्टूडेंट्स के बाद मैं एजुकेशन सर्विस प्रोवाइडर कंपनी एफिनिटी क्लासेज के विशु त्रिपाठी से मिलने पहुंची। विशु ने बताया- ‘हम बच्चों को विदेश जाकर पढ़ाई करने में मदद करते हैं। हमने पिछले चार साल में करीब 800 बच्चों को वहां भेजा था, पूरे भारत से लगभग 18 हजार मेडिकल स्टूडेंट वहां थे। कई कंपनियों ने वहां हॉस्टल बना रखे थे, वो सभी निवेश खत्म हो गया है। अब हम दूसरे देशों पर फोकस करके अपना काम कर रहे हैं।’

विशु आगे बताते हैं- ‘यूक्रेन में यूनिवर्सिटी की फीस 4 से 5 हजार डॉलर (3.3 लाख रुपए) तक थी। रहने का सालाना खर्च 2 हजार डॉलर (1.7 लाख रुपए) तक था। ये बहुत ज्यादा नहीं था। अंग्रेजी मीडियम में पढ़ाई होती थी, यूक्रेन में लिविंग स्टेंडर्ड और इन्फ्रास्ट्रक्चर भी अच्छा था। अब जिन देशों में बच्चे जा रहे हैं, वहां भाषा की समस्या है। यूक्रेन से लौटे ज्यादातर बच्चे जॉर्जिया, किर्गिस्तान, रूस और दूसरे देशों में पढ़ने चले गए। जिनकी आर्थिक हालत अच्छी थी, वो पोलैंड और दूसरे देशों में चले गए।

मैं पूछती हूं, क्या सभी बच्चे पढने लगे हैं? विशु जवाब देते हैं- ‘भारत में ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिनका दाखिला नहीं हो पाया। जिन्होंने दाखिला ले लिया है, उन्हें वीजा लेने में बहुत दिक्कत आ रही है। बहुत से बच्चे जॉर्जिया गए हैं, उन्होंने वहां फीस भर दी थी, लेकिन वीजा नहीं मिल पा रहा था।

इसी साल 15 फरवरी को जॉर्जिया के वीजा के अपॉइंटमेंट बंद कर दिए गए हैं। बहुत से बच्चे ऐसे हैं, जिन्होंने वहां फीस जमा कर दी है, लेकिन अब जाना मुश्किल लग रहा है। वे आगे बताते हैं- ‘यूक्रेन में तीन तरह की यूनिवर्सिटी थी, सेंट्रल यूनिवर्सिटी, स्टेट यूनिवर्सिटी और प्राइवेट यूनिवर्सिटी। 6 सेंट्रल और 17 स्टेट यूनिवर्सिटी में मेडिकल की पढ़ाई होती है। कुल मिलाकर 23 यूनिवर्सिटी हैं। अगर स्टूडेंट्स को दूसरे देशों में ट्रांसफर नहीं मिला तो उन्हें यूक्रेन लौटने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, काफी लौट भी गए हैं।

 

रूस-यूक्रेन युद्ध से भारत पर असर

IDSA (Institute for Defence Studies and Analyses) में एसोसिएट फेलो प्रोफेसर स्वास्ति राव के मुताबिक, यूक्रेन युद्ध ने भारत को दो तरह से प्रभावित किया। पहला आर्थिक और दूसरा राजनीतिक रूप से। पश्चिमी सहयोगी देशों ने भारत पर रूस की आलोचना करने का दबाव बनाया। संयुक्त राष्ट्र में भी भारत पर दबाव बना। इसके बावजूद भारत ने स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी (कूटनीतिक स्वायत्तता) बनाए रखी।

भारत पर दूसरा बड़ा प्रभाव आर्थिक रूप से पड़ा। फ्यूल महंगा हो गया। भारत को अपनी एनर्जी पॉलिसी बदलनी पड़ी। युद्ध के दौरान रूस भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण और सबसे बड़े तेल निर्यातक के रूप में उभरा।

युद्ध शुरू होने से पहले भारत रूस से अपनी तेल जरूरत का 1% भी नहीं मंगवाता था। जनवरी 2023 में ये आंकड़ा बढ़कर 28% हो गया है। सबसे बड़ा बदलाव यही हुई है कि रूस भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में सबसे आगे हो गया है।

भारत रूस-यूक्रेन युद्ध पर तटस्थ बना रहा, क्योंकि भारत की हमेशा यही पॉलिसी रही है। 1947 के बाद से भारत की इस नीति को अलग-अलग तरह से परिभाषित किया जाता रहा है। पहले इसे गुट-निरपेक्षता कहते थे। अब स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी कह रहे हैं। भारत हमेशा से ही दुनिया में गठबंधनों को खारिज करता रहा है।

 

पाकिस्तान-अमेरिका की बढ़ती करीबी का काउंटर है रूस
स्वास्ति राव कहती हैं कि हमारा कट्टर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान अमेरिका की तरफ झुका रहा है, ऐसे में हमारे संबंध रूस से मजबूत रहे हैं और हम 60-80 % तक हथियार रूस से खरीदते हैं। चाहें पनडुब्बियां हों या फिर फाइटर जेट, हम रूस पर निर्भर रहे हैं।

अब ये कहा जा सकता है कि इस निर्भरता में कमी आ रही हैं। अगर हम अपने हथियारों में बदलाव भी करना चाहें, तो उसमें बहुत समय लगेगा। इसलिए रूस के साथ बने रहना भारत की भी जरूरत है।

जब-जब पाकिस्तान ने यूएन में कश्मीर का मुद्दा उठाने की कोशिश की, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस ने हमेशा भारत का साथ दिया है। जब-जब चीन की मदद से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कश्मीर के मुद्दे को उठाया गया, रूस ने हर बार उसे खारिज किया 

 

चीन को कंट्रोल में रखने के लिए रूस का साथ अहम
स्वास्ति बताती हैं कि भारत चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए भी रूस के साथ रहता है। भारत नहीं चाहता कि एशिया में चीन सबसे बड़ी ताकत हो। चीन से भारत का विवाद भी है, ऐसे में भारत की जरूरत है कि वो चीन को बैलेंस करने के लिए रूस का इस्तेमाल करता रहे। भारत का अमेरिका के साथ कोई सुरक्षा समझौता नहीं है, ऐसे में भारत ये जानता है कि वो अकेला खड़ा है और उसे अपने हितों का खुद ही ध्यान रखना है।

इसके अलावा भारत अपने डिफेंस इम्पोर्ट को डायवर्सिफाई करने की कोशिश कर रहा है। भारत ये भी समझ रहा है कि वो अपनी रक्षा जरूरतों के लिए सिर्फ रूस पर ही निर्भर नहीं रह सकता। भारत अपनी डिफेंस इंडस्ट्री को भी मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। भारत इस बात को समझ रहा है कि वो सिर्फ एक देश पर अपनी रक्षा जरूरतों के लिए निर्भर नहीं रह सकता है।

भारत अब हथियार बेचने वाले देशों से कह रहा है कि अब हम सिर्फ हथियार खरीदेंगे ही नहीं बल्कि देश में ही साथ मिलकर हथियार बनाएंगे। यूरोप में कई सहयोगी उभरे हैं, जिनसे रक्षा क्षेत्र में सहयोग को लेकर बात आगे बढ़ रही है। फ्रांस के साथ पहले ही समझौते हो चुके हैं, जर्मनी और इटली भी अहम सहयोगी हो सकते हैं।

 

फिलहाल कमजोर रूस भारत के हित में नहीं
रूस भारत को तेल के दामों में 40% छूट दे रहा है। रूस चीन और तुर्की को भी छूट दे रहा है। रूस में भी इस बात पर चिंता है कि वो कब तक छूट पर तेल बेच सकता है। भारत का ये मानना है कि जब तक उसे छूट मिल रही है वो रूस से तेल खरीदना जारी रखेगा।

स्वास्ति के मुताबिक युद्ध में कौन जीतेगा या हारेगा, ये अभी नहीं कहा जा सकता है, लेकिन कमजोर रूस भारत के हित में नहीं है। अगर रूस युद्ध हारता है तो ये भारत के लिए बहुत अच्छा नहीं है। यही वजह है कि भारत इस युद्ध में बहुत सोच समझकर चल रहा है।

भारत के अलावा कई देशों ने भी मध्यस्थता की कोशिश की है, चीन अभी ये कोशिशें कर रहा है। अभी जो बदलती हुई स्थितियां हैं, उसमें संभव है कि रूस चीन की तरफ झुक जाए। भारत ऐसा नहीं चाहेगा।

पिछले नाटो सम्मेलन में चीन को प्रतिद्वंदी माना गया है। मुमकिन है कि रूस कमजोर हो जाए। ऐसी स्थिति के लिए भारत खुद को तैयार कर रहा है। भारत ने रूस पर निर्भरता कम करनी शुरू भी कर दी है।

 

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