कॉलेज के मंच पर बोलने का मौका मिला तो रोने लगी,आज मोटिवेशनल स्पीकर है विभूति दूग्गर, जानिए इनकी सलफता का राज

कॉलेज के मंच पर बोलने का मौका मिला तो रोने लगी,आज मोटिवेशनल स्पीकर है विभूति दूग्गर, जानिए इनकी सलफता का राज
Last Updated: 05 सितंबर 2024

आज हम ऐसी लड़की की स्टोरी बताने जा रहे है जिसे कॉलेज के पहले ही दिन में मंच पर बोलने का मौका मिला, तो घबराहट के कारण रोने लगी, न स्कूल में कोई दोस्त था, न घर पर, डरी सहमी सी रहती थीइसको क्या करना है, क्या पहनना है, क्या नहीं ये सब घर के बड़े तय करते थे, ऐसी स्थिति ने इनको झकझोर कर दिया था कर कुछ करने की जिद और अपने साथ जो हुआ उससे सिख लेकर कड़े संघर्ष की बदौलत जीवन में सफलता हासिल की  है और अब  मोटिवेशनल स्पीकर है,  आज समाज के कई लोगो की जिंदगी बदल रही है

मैं विभूति दुग्गर। आज लोग मुझे मोटिवेशनल स्पीकर कहते हैं। मेरी बातों को सुनकर प्रेरित होते और जीवन में कुछ बेहतर करते हैं। लेकिन एक दौर था जब मैं खुद अपनी जिंदगी से निराश थी। चार लोगों के सामने बोलते हुए मेरी घिग्घी बंध जाती थी। करियर और प्रोफेशन मेरे लिए दूर की कौड़ी थी।

ग्रेजुएशन के बाद घर वालों को शादी की चिंता हुई तो ढंग का लड़का नहीं मिला। कोई भी डरी-सहमी लड़की से शादी नहीं करना चाहता था।

लेकिन फिर मेरी जिंदगी ने करवट ली। मैंने अपनी डायरी से वादा किया कि कुछ करके दिखाऊंगी; और आज मैं लोगों को बोलना और जिंदगी के मकसद सिखा रही हूं।

 

आज की "महिला शक्ति" में कहानी मोटिवेशनल स्पीकर विभूति दुग्गर की। एक डरी-सहमी लड़की से देश की चर्चित स्पीकर बनने वाली विभूति की कहानी से आपको काफी कुछ सीखने को मिल सकता है... आइये जानते है...

 

ज्योतिष ने कहा था- अभी शादी हुई तो टूट जाएगी

मेरा जन्म और मेरी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई रायपुर में हुई। मिडिल क्लास परिवार था। लड़की होने के नाते तमाम तरह की बंदिशें भी थीं। कब घर से निकलना है, किससे बातें करनी है और क्या पहनना है; ये सारी बातें घर के बड़े तय करते।

ऐसे माहौल में मैं पली-बढ़ी। स्वाभाविक रूप से मैं डरी-सहमी सी रहती। मेरे बहुत ज्यादा दोस्त भी नहीं थी।

जब मेरा ग्रेजुएशन कंप्लीट हुआ तो घर वालों को शादी की चिंता हुई। लेकिन एक के बाद एक 4-5 रिश्तों से रिजेक्शन मिला। जिसके बाद मां मुझे लेकर एक ज्योतिष के पास गई। ज्योतिष ने मां को बताया कि इसकी कुंडली में अभी शादी का योग नहीं बन पा रहा है। अगर इसी अभी शादी हुई तो टूट जाएगी।

 

जिसके बाद घर वालों घरवालों ने एमबीए में एडमिशन लेने के लिए कहा, तो मैंने शर्त रखी कि आप लोग मुझे एक्सचेंज प्रोग्राम में विदेश जाने देंगे। घर वाले मान गए तो मैंने भी एमबीए में एडमिशन ले लिया।

एक नाकामी ने बदल दी मेरी जिंदगी

कॉलेज में पहले दिन बहुत डरी हुई थी। क्लासमेट्स को देखकर भी डर लगता था। पहले ही दिन प्रोफेसर ने एक असाइनमेंट दिया जिसमें एक पार्टनर के साथ पूरे क्लास के सामने बुक रिव्यू प्रेजेंट करना था।

पहली बात ये कि मुझे तब किताब पढ़ने में कोई रुचि नहीं थी। मैंने बमुश्किल कुछ पेज पढ़े और प्रेजेंटेशन के लिए कुछ लाइनें लिखकर ले गई। लेकिन मैं मंच से दो लाइन भी नहीं बोल पाई। मेरे हाथ-पांव कांपने लगे। मैं रोने लगी और वापस आ गई।

इस घटना ने मुझे अंदर से झकझोर दिया। कॉलेज में सबका पहला दिन था। काफी लोग नर्वस रहे होंगे। लेकिन जैसा मेरे साथ हुआ, वो और किसी के साथ नहीं हुआ। मैं काफी देर तक इस घटना के बारे में सोचती रही। ये साल 2004 की बात है। इस घटना के बाद पहले तो मैं बहुत रोई फिर अपने आप पर गुस्सा आया।

डायरी लिखने की आदत ने दिया हौसला, क्लास में बनी स्पीकर

मैं डायरी लिखती थी। ये शुरू से मेरी आदत रही। मैं काफी शर्मीली थी तो डायरी के अलावा कहीं अपनी बात शेयर भी नहीं कर पाती थी। मैंने पूरी घटना को अपनी डायरी में लिखा।

डायरी लिखते हुए एक दिन मैंने अपने आप से पूछा कि ‘विभूति क्या तुम ऐसे ही डरी-सहमी मर जाओगी? तुम्हारी लाइफ का कोई मकसद नहीं?मैंने मन ही मन फैसला किया कि नहीं, मुझे कुछ करना है। मैं अपनी जिंदगी बिना मकसद के नहीं बिताना चाहती थी।

लेकिन मेरे सामने सवाल यह था कि शुरुआत कहां से की जाए। मैंने छोटे-छोटे लक्ष्य रखे। सबसे पहले मैंने संकल्प किया कि कॉलेज खत्म होने के पहले मैं क्लास की सबसे अच्छी स्पीकर बनकर दिखाऊंगी।

इसके बाद मैंने बोलने की शुरुआत की। पहले आइने के सामने खुद को देखकर पढ़ती। बाद में क्लास में प्रेजेंटेशन देने के लिए आगे आने लगी। सही गलत जो हो पाता मैं बोलने की कोशिश करती और पहले से बेहतर करने की कोशिश करती।

 

बोलने के लिए पढ़ना शुरू किया, तब किताबों से हुआ प्यार

धीरे-धीरे बोलना मेरा पैशन बन गया। मुझे कॉलेज में जब भी मौका मिलता, मैं बोलती। लेकिन तब मेरे पास कंटेंट की कमी थी। क्योंकि मुझे सिलेबस के अलावा ज्यादा किताबें पढ़ने की आदत नहीं थी। दूसरा, मेरे पास ऐसा कोई दोस्त भी नहीं था, जिसके साथ मैं बातें करूं और पूछूं।

ऐसे में मैंने किताबों को अपना दोस्त बनाया। यही वो वक्त था जब कुछ साथ इंटरनेशनल किताबें मेरे हाथ लगी। मैं मानती हूं कि मेरी जिंदगी को बदलने में इन किताबों की काफी बड़ी भूमिका रही।

इन किताबों में जीवन के उद्देश्य की बात थी, लक्ष्य और भविष्य की भी बातें थीं। इसके बाद मैं किताबों से प्यार करने लगी। खूब पढ़ना और खूब बोलना मेरा शग़ल हो गया था।

यही वो दौर से जब मेरी जिंदगी करवट ले रही थी। डरी सहमी सी रहने वाली लड़की दुनिया के सामने बुलंद आवाज में बोल रही थी।

मैं जो लक्ष्य लिया था, वो भी पूरा हो रहा था। मुझे कॉलेज की तरह से बोलने के लिए बाहर भी भेजा जाने लगा था। यह सब साल भर के भीतर हो रहा था।

 

शुरु किया ‘प्रोजेक्ट परपज’, अब लोगों को उनके जीवन का मकसद सिखाती हूं

कॉलेज में अच्छा करने के बाद 2008 में मुझे दुबई जाने को मौका मिला। यहां मैंने जैक कैनफिल्ड, मार्शल गोल्डस्मिथ और जॉन ग्रे जैसे बड़े राइटर और स्पीकर के साथ काम किया। काफी कुछ नया सीखने को मिला।

इस वक्त तक मैं अपने आप को काफी अच्छी स्थिति में देख रही थी। सबकुछ बढ़िया चल रहा था। लेकिन एक बात हमेशा कचोटती। मेरी जैसी हजारों-लाखों लड़के-लड़कियों बिना किसी सपने के बस जीए जा रही हैं। जैसा एक वक्त मैं कर रही थी।

ऐसे में मैंने उनकी मदद की सोची। मैंने ‘प्रोजेक्ट परपज’ शुरू किया। इसके माध्यम से मैं लोगों को उनकी जिंदगी के मकसद को ढूंढने में मदद करती हूं।

मैं ‘पोएट्री विद परपज बाय विभूति’ नाम से एक पेज भी चलाती हूं। इस पर मैंने दर्जनों कविताएं लिखी हैं।

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