आजादपुर गाँव में मोहित और रमेश नाम के दो घनिष्ठ मित्र रहते थे। दोनों की उम्र लगभग पंद्रह साल थी, और दोनों ही एक-दूसरे की बातों को मानते थे। गर्मी के दिनों में गाँव में सूखा पड़ा हुआ था, जिससे कुएँ सूख गए थे। गाँव की औरतें नदी से पानी भरकर लाती थीं, और यही पानी उनकी जीवनरेखा थी।
एक दिन, मोहित और रमेश नदी के किनारे घूम रहे थे। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी, और दोनों ने देखा कि गाँव की महिलाएं मटके से पानी भर रही हैं। मोहित ने रमेश से कहा, "भाई, क्यों न हम गाँव वालों को पानी पहुंचाने का काम करें? बदले में मटके के हिसाब से पच्चीस पैसे लिया करेंगे।"
रमेश को यह विचार सही लगा, और दोनों ने मिलकर यह काम शुरू कर दिया। धीरे-धीरे, उनके पास पैसे आने लगे, और दोनों खुश रहने लगे। लेकिन समय के साथ मोहित को एहसास हुआ कि यह काम ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगा। एक दिन वह रमेश से बोला, "भाई, हम कब तक यूं ही मटके ढोते रहेंगे? अगर कल को हमें कुछ हो गया, तो क्या होगा?" रमेश ने इसे हल्के में लिया और कहा, "छोड़ो न, अभी तो सब ठीक चल रहा है। बाद की बाद में देखेंगे।"
नया रास्ता, नई पहचान
मोहित के मन में यह सवाल बार-बार गूंजता रहा। एक दिन वह एक कुम्हार के पास गया और देखा कि वह घड़े से पानी निकालने के लिए एक पाइप का इस्तेमाल कर रहा है। मोहित को एक नई सोच सूझी। उसने कुम्हार से मोटी और लंबी पाइप बनवाने को कहा, ताकि नदी से गाँव तक पानी लाया जा सके।
मेहनत और समझदारी से मिली सफलता
तीन महीनों की मेहनत के बाद, मोहित ने नदी से गाँव तक पाइपलाइन बिछा दी। अब उसके पास मटके से नहीं, बल्कि पाइपलाइन से पानी बेचने का एक बड़ा साधन था। उसने हर मटके के लिए सिर्फ दस पैसे लेना शुरू किया। गाँव वाले भी खुश थे, क्योंकि पानी सस्ता और जल्दी मिल रहा था। दूसरी ओर, रमेश का काम बंद हो गया। लोग अब उसके मटकों के लिए पच्चीस पैसे क्यों देंगे, जब दस पैसे में ही पानी मिल रहा था?
धीरे-धीरे, मोहित ने अपने काम को और भी बढ़ाया। उसने आसपास के गाँवों में भी पाइपलाइन बिछाई और बहुत सारा पैसा कमाया। मोहित के लिए उसकी यह पाइपलाइन सच में पैसों का पेड़ बन गई। उसने दिखा दिया कि सोच बदलने से ही असल में जीवन बदलता है।
नैतिक शिक्षा
बड़ी और नई सोच रखने वाले ही भीड़ से अलग खड़े होते हैं। मेहनत और समझदारी से किया गया काम हमेशा सफल होता है।