अष्ट भैरव भगवान शिव के आठ विशिष्ट रौद्र और रक्षक रूप हैं, जो अलग-अलग दिशाओं के स्वामी माने जाते हैं। शिव पुराण और भैरव तंत्र में इनका विस्तृत वर्णन है। इनकी पूजा से भय, रोग, शत्रु और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति के साथ जीवन में सफलता, साहस और सुरक्षा का आशीर्वाद मिलता है।
नई दिल्ली: सनातन परंपरा में भगवान शिव के अनेक स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है, जिनमें अष्ट भैरव का विशेष महत्व है। अष्ट भैरव यानी शिवजी के आठ रौद्र और रक्षक रूप, जो आठों दिशाओं के अधिपति और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के संरक्षक माने जाते हैं। शिव पुराण और भैरव तंत्र के अनुसार, इनकी साधना से व्यक्ति को भय, रोग, शत्रु और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। साथ ही, व्यापार, करियर और व्यक्तिगत जीवन में सफलता के अवसर बढ़ते हैं।
अष्ट भैरव के नाम, दिशा और महत्व
- असितांग भैरव – पूर्व दिशा के स्वामी, जिनका रंग नीला है। हाथ में खप्पर और त्रिशूल धारण करते हैं। इनकी पूजा से साहस और वीरता में वृद्धि होती है।
- रुरु भैरव – दक्षिण दिशा के अधिपति, ज्ञान और विद्या के दाता। वीणा और त्रिशूल धारण करते हैं। शिक्षा और कला में सफलता के लिए पूजनीय।
- चंड भैरव – युद्ध और विजय के देवता, जो दक्षिण दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं। शत्रु पर विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है।
- क्रोध भैरव – दक्षिण-पश्चिम दिशा के स्वामी, जिनकी पूजा से रोग और बाधाओं का नाश होता है।
- उन्मत भैरव – पश्चिम दिशा के स्वामी, भक्ति और वैराग्य के प्रतीक। मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करते हैं।
- कपाल भैरव – उत्तर-पश्चिम दिशा के अधिपति, समय और मृत्यु के स्वामी। आयु वृद्धि और समय पर कार्य सिद्धि के लिए पूजनीय।
- भीषण भैरव – उत्तर दिशा के स्वामी, भय और संकट दूर करने वाले।
- संहार भैरव – उत्तर-पूर्व दिशा के रक्षक, सृष्टि के अंत और पुनर्निर्माण के प्रतीक।
अष्ट भैरव की पूजा विधि
- सुबह स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनें।
- भैरव जी की प्रतिमा के सामने काले या लाल फूल, अक्षत, धूप और दीप अर्पित करें।
- तेल का दीपक या नारियल चढ़ाएं।
- काले तिल, उड़द और नारियल का भोग लगाएं।
- कुत्ते को रोटी, आटा या मिठाई खिलाना शुभ माना जाता है।
अष्ट भैरव मंत्र और लाभ
सर्वसिद्धि हेतु मूल मंत्र – ॐ अष्ट भैरवाय नमः
व्यक्तिगत सुरक्षा हेतु – ॐ कालभैरवाय नमः का 108 बार जप विशेष फल देता है।
ज्योतिषीय महत्व
जिन लोगों की कुंडली में शनि, राहु या केतु का दोष है, उन्हें अष्ट भैरव का पूजन करना चाहिए। यह काल सर्प दोष, पितृ दोष और नकारात्मक ग्रह प्रभाव को कम करता है। इसके साथ ही, व्यापार में आ रही रुकावटें और करियर की बाधाएं भी दूर होती हैं।