दिल्ली के श्री शारदा इंस्टीट्यूट में छात्राओं के साथ यौन शोषण के आरोपी चैतन्यानंद सरस्वती के खिलाफ 2016 में भी FIR दर्ज हुई थी। पीड़ित छात्रा भागकर बची थी। आरोपी की जमानत पर सुनवाई आज पटियाला हाउस कोर्ट में होगी।
नई दिल्ली: दिल्ली के श्री शारदा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया मैनेजमेंट एंड रिसर्च में छात्रों के साथ कथित यौन उत्पीड़न के आरोपों के चलते स्वामी चैतन्यानंद सरस्वती विवादों में हैं। 2016 में दर्ज की गई एफआईआर में भी कई छात्राओं ने उनके खिलाफ गंभीर आरोप लगाए थे। उस समय एक छात्रा को डर के मारे अपने दस्तावेज और बैग छोड़कर भागना पड़ा था, लेकिन चैतन्यानंद और उनके सहयोगी छात्रा के घर तक पीछा करते हुए गए थे।
2016 में छात्रा के साथ हुए शोषण का मामला
एफआईआर के अनुसार, पीड़ित छात्रा उस समय 20-21 साल की थी। उसने आरोप लगाया कि चैतन्यानंद उसे रात में कॉल कर गंदी बातें करता और ‘बेबी’ या ‘स्वीट गर्ल’ कहकर बुलाता था। बात न मानने पर उसे दंडित किया जाता और फोन भी छीन लिया जाता था। छात्रा ने बताया कि उसे हॉस्टल में अकेला रखा जाता था और दूसरी छात्राओं से बात करने पर डांट लगाई जाती थी।
लड़की ने यह भी कहा कि चैतन्यानंद ने उसे मथुरा की दो दिन की यात्रा के लिए दबाव डाला था, जिसके लिए वह तैयार नहीं थी। डर के मारे छात्रा को बैग और दस्तावेज छोड़कर भागना पड़ा। हालांकि, चैतन्यानंद और उनके लोग उसका पीछा करते हुए घर तक आए, लेकिन उसके पिता ने समय रहते हस्तक्षेप कर बेटी को सुरक्षित बचाया।
टॉर्चर चेंबर और हॉस्टल में उत्पीड़न
जांच में यह भी पता चला कि चैतन्यानंद सरस्वती ने संस्थान के डीन और दो महिला स्टाफ के साथ मिलकर ईडब्ल्यूएस स्कॉलरशिप पर पढ़ रही छात्राओं का यौन शोषण किया। उन्होंने हॉस्टल में सुरक्षा के नाम पर गुप्त कैमरे लगवाए और अपने ग्राउंड फ्लोर ऑफिस को यौन उत्पीड़न का अड्डा बना रखा।
आर्थिक रूप से कमजोर छात्राओं को देर रात स्वामी के निजी कक्ष में बुलाया जाता और विदेश यात्राओं के बहाने दबाव बनाया जाता था। सहयोगी डीन श्वेता और अन्य स्टाफ सदस्य छात्राओं पर स्वामी के यौन आग्रह मानने के लिए दबाव डालते और शिकायतों को नजरअंदाज करते थे। इस तरह हॉस्टल और संस्थान का माहौल छात्राओं के लिए डरावना और असुरक्षित बन गया।
परिवार की सतर्कता ने छात्रा को बचाया
उस समय छात्राओं के अभिभावक और परिवार की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही। जब लड़की अपने पिता के पास पहुंची, तो उन्होंने तुरंत स्थिति का संज्ञान लिया और अपनी बेटी को चैतन्यानंद और उनके सहयोगियों से सुरक्षित बचाया। परिवार की सतर्कता और त्वरित कार्रवाई ने बड़ी दुर्घटना को टालने में मदद की।
इस घटना ने संस्थान में छात्रों की सुरक्षा की गंभीरता को उजागर किया। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के मामलों में अभिभावकों की सक्रिय भागीदारी और संस्थागत निगरानी अत्यंत जरूरी है, ताकि छात्राओं के साथ होने वाले उत्पीड़न को रोका जा सके।
आज होगी जमानत पर सुनवाई
चैतन्यानंद सरस्वती की एंटीसिपेटरी बेल के मामले पर दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में सुनवाई की जा रही है। अदालत की प्रक्रिया में 2016 में दर्ज एफआईआर और अन्य सबूतों पर ध्यान दिया जाएगा। इससे यह स्पष्ट होगा कि किस प्रकार छात्राओं के खिलाफ लंबे समय तक उत्पीड़न किया गया और संस्थान के स्टाफ ने इसमें सहमति या उपेक्षा दिखाई।
इस तरह के मामले न केवल पीड़ितों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते हैं, बल्कि संस्थानों की विश्वसनीयता को भी प्रभावित करते हैं। न्यायिक प्रक्रिया और कड़ी निगरानी से छात्राओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है और भविष्य में ऐसे अपराधों को रोकने में मदद मिलेगी।