पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के कारण करतारपुर कॉरिडोर को बंद कर दिया गया था। यह कॉरिडोर, जिसे गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश गुरुपर्व के मौके पर खोला गया था, दोनों देशों के पंजाबियों को करतारपुर साहिब में मिलने का अवसर देता था।
अमृतसर: भारत और पाकिस्तान के बीच धार्मिक भावनाओं को जोड़ने वाले करतारपुर कॉरिडोर को लेकर एक बार फिर से मांग उठी है। अकाल तख्त के कार्यवाहक जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गर्गज ने केंद्र सरकार से अपील की है कि इस कॉरिडोर को जल्द से जल्द खोला जाए ताकि श्रद्धालु गुरु नानक देव जी के ज्योति जोत दिवस पर पाकिस्तान स्थित दरबार साहिब गुरुद्वारा में मत्था टेक सकें।
करतारपुर कॉरिडोर का ऐतिहासिक महत्व यह है कि विभाजन के समय (1947) अलग हुए कई परिवार और पंजाबियों को आपस में मिलने का माध्यम प्रदान करता है।
क्यों बंद हुआ था करतारपुर कॉरिडोर?
7 मई को भारत सरकार ने करतारपुर कॉरिडोर को बंद कर दिया था। इसकी मुख्य वजह थी पहलगाम आतंकी हमला, जिसमें 22 अप्रैल को 26 निर्दोष लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद भारत-पाकिस्तान संबंधों में तनाव बढ़ गया और भारतीय सेना ने पाकिस्तान और पीओके (गुलाम कश्मीर) में आतंकी ठिकानों को तबाह करने के लिए ऑपरेशन सिंदूर चलाया। इसी पृष्ठभूमि में सुरक्षा कारणों से करतारपुर कॉरिडोर को बंद कर दिया गया।
ज्ञानी कुलदीप सिंह गर्गज ने कहा: गुरु नानक देव जी के ज्योति जोत दिवस से पहले अगर करतारपुर कॉरिडोर फिर से खोल दिया जाए तो लाखों श्रद्धालुओं को दरबार साहिब में मत्था टेकने का अवसर मिलेगा। यह सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रश्न नहीं है, बल्कि पंजाबियों के दिलों को जोड़ने का माध्यम भी है। उन्होंने केंद्र सरकार से इस संबंध में त्वरित कार्रवाई करने का आग्रह किया।
करतारपुर कॉरिडोर का ऐतिहासिक महत्व
- करतारपुर कॉरिडोर को पहली बार गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश गुरुपर्व के अवसर पर नवंबर 2019 में खोला गया था।
- यह कॉरिडोर भारत के पंजाब के गुरदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक गुरुद्वारे को पाकिस्तान स्थित करतारपुर साहिब गुरुद्वारे से जोड़ता है।
- करतारपुर साहिब को सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का अंतिम विश्राम स्थल माना जाता है।
- इस कॉरिडोर ने विभाजन के समय बिछड़े पंजाबियों और सिख श्रद्धालुओं को एक-दूसरे से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है।
विभाजन की पीड़ा और करतारपुर की अहमियत
साल 1947 के विभाजन ने पंजाब को दो हिस्सों में बांट दिया। लाखों परिवार बिछड़ गए और हजारों लोगों की जान चली गई। करतारपुर कॉरिडोर ने उन परिवारों और श्रद्धालुओं को एक मौका दिया जो दशकों से सीमाओं के कारण एक-दूसरे से मिलने और अपने पवित्र स्थलों पर जाने से वंचित रहे थे। दुनिया भर में बसे पंजाबियों के लिए यह कॉरिडोर सिर्फ एक धार्मिक मार्ग नहीं, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक है।
- शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) और अकाल तख्त ने विभाजन में मारे गए पंजाबियों की याद में विशेष धार्मिक आयोजन किए हैं।
- 14 अगस्त को अखंड पाठ साहिब की शुरुआत की गई।
- 16 अगस्त को इसके भोग के साथ सामूहिक अरदास की जाएगी, जिसमें 1947 के शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाएगी।
ज्ञानी गर्गज ने कहा कि इस अवसर पर करतारपुर कॉरिडोर खोलने से श्रद्धालुओं को न केवल मत्था टेकने का मौका मिलेगा, बल्कि यह विभाजन की पीड़ा को कम करने की दिशा में भी बड़ा कदम होगा।