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क्या ज़्यादा सोना बना सकता है बीमार? जानिए इसके छिपे खतरनाक दुष्परिणाम

क्या ज़्यादा सोना बना सकता है बीमार? जानिए इसके छिपे खतरनाक दुष्परिणाम

ज़रूरत से ज़्यादा सोना सेहत के लिए उतना ही खतरनाक है जितना कम सोना। विशेषज्ञों के अनुसार, अधिक नींद लेने से अवसाद, मोटापा, डायबिटीज और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है। इससे हार्मोन असंतुलन, मेटाबॉलिज्म में कमी और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है।

Sleeping: हेल्दी शरीर के लिए पर्याप्त नींद ज़रूरी है, लेकिन ज़रूरत से ज़्यादा सोना भी खतरनाक साबित हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ओवरस्लीपिंग न केवल अवसाद (डिप्रेशन) का संकेत हो सकती है, बल्कि यह मोटापा, डायबिटीज और हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ाती है। ज़्यादा नींद लेने से शरीर के हार्मोनल संतुलन पर असर पड़ता है, जिससे भूख बढ़ जाती है और मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाता है। शोधों के मुताबिक, 7 से 8 घंटे की नींद ही शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।

ज़्यादा सोना क्यों है खतरनाक

नींद शरीर की प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो थकान दूर करने और दिमाग को रीचार्ज करने का काम करती है। लेकिन जब कोई व्यक्ति रोज़ाना आठ से नौ घंटे से ज़्यादा सोने लगता है, तो यह सामान्य नहीं माना जाता। विशेषज्ञों के अनुसार, शरीर की ऊर्जा खर्च करने की प्रक्रिया यानी मेटाबोलिज्म पर इसका बुरा असर पड़ता है। लंबे समय तक बिस्तर में पड़े रहने से शरीर की सक्रियता कम हो जाती है और फैट बर्निंग धीमी हो जाती है।

एम्स (AIIMS) के न्यूरो-साइंस विभाग के डॉक्टर बताते हैं कि ज़्यादा नींद से शरीर में कई हॉर्मोनों का संतुलन बिगड़ता है, खासकर वे हॉर्मोन जो भूख और मेटाबोलिज्म को नियंत्रित करते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि व्यक्ति दिनभर सुस्ती महसूस करता है, खाने की इच्छा बढ़ जाती है और वजन तेज़ी से बढ़ने लगता है।

अवसाद से भी जुड़ा है ज़्यादा सोना

आमतौर पर लोगों को लगता है कि नींद की कमी यानी अनिद्रा ही मानसिक तनाव या डिप्रेशन का संकेत है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ज़्यादा सोना भी अवसाद का लक्षण हो सकता है। लगभग 15 से 40 प्रतिशत ऐसे लोग जो डिप्रेशन से जूझ रहे होते हैं, वे “हाइपरसोम्निया” नामक स्थिति का अनुभव करते हैं। इसमें व्यक्ति दिन और रात दोनों समय ज़्यादा सोता है, फिर भी थकान महसूस करता है।

डॉक्टरों के अनुसार, यह एक तरह का दुष्चक्र बन जाता है। जब व्यक्ति तनाव या भावनात्मक परेशानी से गुजरता है, तो वह नींद में शरण लेने की कोशिश करता है। लेकिन लगातार ज़्यादा सोने से मस्तिष्क की सतर्कता कम हो जाती है और मूड स्विंग बढ़ने लगते हैं। यह स्थिति धीरे-धीरे गंभीर अवसाद में बदल सकती है।

ब्लड शुगर और डायबिटीज का खतरा

ओवरस्लीपिंग यानी ज़्यादा सोना शरीर के ब्लड शुगर स्तर पर भी असर डालता है। मेडिकल जर्नल्स में प्रकाशित अध्ययनों के अनुसार, बहुत ज़्यादा नींद लेने वाले लोगों में इंसुलिन प्रतिरोध बढ़ जाता है। इसका मतलब है कि शरीर ग्लूकोज को सही तरीके से उपयोग नहीं कर पाता। इससे ब्लड शुगर का स्तर बढ़ने लगता है और डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है।

नींद की कमी और ज़्यादा नींद दोनों ही हार्मोन असंतुलन का कारण बनती हैं। इससे शरीर की ऊर्जा खपत की क्षमता घटती है और पैनक्रियाज पर दबाव बढ़ता है। अगर यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहे तो व्यक्ति को टाइप 2 डायबिटीज हो सकती है।

बढ़ सकता है वजन और मोटापा

ज़्यादा सोना शरीर के वजन पर भी सीधा असर डालता है। ऐसा इसलिए क्योंकि नींद की अवधि बढ़ने से शरीर में ‘घ्रेलिन’ और ‘लेप्टिन’ नामक हॉर्मोनों का संतुलन बिगड़ जाता है। घ्रेलिन भूख बढ़ाने वाला हॉर्मोन है, जबकि लेप्टिन भूख को नियंत्रित करता है। जब व्यक्ति ज़्यादा सोता है तो लेप्टिन का स्तर घट जाता है और घ्रेलिन का स्तर बढ़ जाता है। इसका नतीजा यह होता है कि व्यक्ति को ज़रूरत से ज़्यादा भूख लगने लगती है और कैलोरी का सेवन बढ़ जाता है।

इसके साथ ही, लंबे समय तक निष्क्रिय रहने से शरीर की मांसपेशियाँ सुस्त पड़ जाती हैं और कैलोरी जलने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इससे शरीर में फैट जमा होने लगता है और धीरे-धीरे वजन बढ़ने लगता है। यही मोटापा आगे चलकर कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है।

हृदय रोग और स्ट्रोक का बढ़ता जोखिम

अत्यधिक नींद का असर सिर्फ मानसिक और वजन संबंधी समस्याओं तक सीमित नहीं है। यह दिल और दिमाग की सेहत पर भी गहरा असर डालती है। शोधों में यह साबित हुआ है कि जो लोग रोज़ाना 9 या उससे ज़्यादा घंटे सोते हैं, उनमें हृदय रोग और स्ट्रोक का खतरा 40 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।

इसका कारण यह है कि ज़्यादा सोने से ब्लड प्रेशर का स्तर अस्थिर रहता है और रक्त प्रवाह धीमा हो जाता है। इससे धमनियों में ब्लॉकेज बनने की संभावना बढ़ जाती है। डॉक्टरों का मानना है कि 7 से 8 घंटे की नींद सबसे संतुलित अवधि है, जो दिल और दिमाग दोनों को स्वस्थ रखती है।

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