पूर्व गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने खुलासा किया कि 26/11 मुंबई हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर जवाबी कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय दबाव, खासकर अमेरिका के कारण नहीं की। उन्होंने माना कि बदले की इच्छा थी, लेकिन सरकार ने कूटनीतिक रास्ता चुना।
New Delhi: 2008 में हुए मुंबई आतंकी हमले को देश कभी नहीं भूल सकता। इस हमले में सैकड़ों लोगों की जान गई और पूरा भारत दहशत के साये में आ गया था। अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने इस घटना से जुड़े एक बड़े राज़ से पर्दा उठाया है। उन्होंने कहा कि उस समय भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई नहीं की थी क्योंकि सरकार भारी अंतरराष्ट्रीय दबाव में थी।
चिदंबरम ने साफ किया कि उनके मन में बदला लेने का विचार आया था, लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने विदेश मंत्रालय की सलाह पर सीधी कार्रवाई करने से इनकार कर दिया। इस खुलासे के बाद एक बार फिर राजनीतिक गलियारों में बहस छिड़ गई है।
गृहमंत्री बनने के तुरंत बाद की स्थिति
पी. चिदंबरम ने एक इंटरव्यू में बताया कि वे 30 नवंबर 2008 को गृहमंत्री बने थे, ठीक उस समय जब आखिरी आतंकवादी को मार गिराया गया था। उन्होंने कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री ने बुलाकर गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी थी, लेकिन वे इसके लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे।
उन्होंने कहा कि उस समय पूरे देश में गुस्सा और आक्रोश था। लोग पाकिस्तान को सबक सिखाने की मांग कर रहे थे। उनके अनुसार, गृहमंत्री बनने के बाद उनके मन में भी यही सवाल उठा कि क्यों न पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की जाए। लेकिन सरकार ने इस रास्ते पर न जाने का निर्णय लिया।
पाकिस्तान पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई
चिदंबरम ने बताया कि उनके पास सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों की तैयारियों की पूरी जानकारी नहीं थी। पाकिस्तान के अंदर मौजूद नेटवर्क या संसाधनों के बारे में भी उन्हें विस्तृत जानकारी नहीं थी।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और वरिष्ठ अधिकारियों से चर्चा के दौरान यह निष्कर्ष निकला कि तुरंत सैन्य कार्रवाई करने से हालात और बिगड़ सकते हैं। विदेश मंत्रालय (MEA) और भारतीय विदेश सेवा (IFS) के अधिकारी इस बात पर जोर दे रहे थे कि हमें कूटनीतिक रास्ता अपनाना चाहिए, न कि सीधी कार्रवाई।
अमेरिका का दबाव और कोंडोलीजा राइस की भूमिका
चिदंबरम ने यह भी स्वीकार किया कि उस समय अमेरिका ने भारत पर कार्रवाई न करने का दबाव डाला था। अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस, हमले के तुरंत बाद भारत आईं और उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और चिदंबरम से मुलाकात की।
उनके अनुसार, कोंडोलीजा राइस ने साफ कहा था कि भारत को सीधे प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए। अमेरिका नहीं चाहता था कि दक्षिण एशिया में युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो। इस अमेरिकी दबाव के कारण भारत ने सैन्य कार्रवाई से पीछे हटकर कूटनीतिक तरीका चुना।
क्या पाकिस्तान पर हमले की थी तैयारी
चिदंबरम ने स्वीकार किया कि उनके मन में बदला लेने का विचार था और सरकार के भीतर इस पर चर्चा भी हुई थी। लेकिन जब सभी पहलुओं पर विचार किया गया तो यह तय हुआ कि पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय सबूत इकट्ठा कर अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को बेनकाब करना ही बेहतर होगा।
यूपीए सरकार ने तब यह रणनीति बनाई कि आतंकवाद के खिलाफ दुनिया को एकजुट किया जाए और पाकिस्तान की भूमिका को सामने लाया जाए। हालांकि, इस फैसले को लेकर अब भी कई सवाल उठते हैं कि क्या भारत को उस समय सख्त जवाब नहीं देना चाहिए था।
भाजपा का पलटवार
चिदंबरम के इस बयान के बाद भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोला है। भाजपा नेताओं ने कहा कि यह वही बात है जिसे देश पहले से जानता था कि कांग्रेस सरकार विदेशी ताकतों के दबाव में थी।
केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि चिदंबरम का यह स्वीकार करना इस बात का सबूत है कि यूपीए सरकार उस समय निर्णायक फैसले लेने में नाकाम रही। उन्होंने कहा कि अगर उस समय पाकिस्तान को सबक सिखाया गया होता तो वह बार-बार आतंक फैलाने की हिम्मत नहीं करता।
मोदी और मनमोहन सिंह की तुलना
भाजपा ने सवाल उठाया कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होते तो क्या वे भी इसी तरह दबाव में आते। भाजपा का दावा है कि मोदी सरकार ने आतंकवादियों को जवाब देने में हमेशा कड़ा रुख अपनाया है और 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में एयरस्ट्राइक इसका उदाहरण है।