जब भी कोई व्यक्ति निवेश की शुरुआत करता है तो उसके सामने दो आम विकल्प होते हैं– SIP और FD। दोनों ही अपने-अपने तरीकों से फायदे पहुंचाते हैं और दोनों की एक खासियत भी होती है। लेकिन एक निवेशक को सही चुनाव तभी करना आसान होता है जब उसे इन दोनों में साफ फर्क समझ में आए।
SIP यानी किस्तों में निवेश का तरीका
SIP, या कहें सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान, म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने का एक तरीका है। इसमें निवेशक हर महीने एक तय राशि निवेश करता है। यह तरीका खासतौर पर उन लोगों के लिए आसान है जो एक बार में बड़ा पैसा नहीं लगाना चाहते, लेकिन धीरे-धीरे एक अच्छी रकम जोड़ना चाहते हैं।
SIP के जरिए पैसा म्यूचुअल फंड्स में लगाया जाता है, और ये म्यूचुअल फंड बाजार से जुड़े होते हैं। यानी SIP से मिलने वाला रिटर्न शेयर बाजार की चाल पर निर्भर करता है। SIP में कंपाउंडिंग यानी चक्रवृद्धि ब्याज का फायदा भी मिलता है।
म्यूचुअल फंड में NAV (नेट एसेट वैल्यू) रोज बदलती है, इस वजह से SIP से जब-जब यूनिट खरीदी जाती है, तो किसी बार सस्ती और किसी बार महंगी मिलती है। इस तरह औसतन लागत कम हो जाती है और लंबे समय में बेहतर रिटर्न मिलने की संभावना बनती है।
FD यानी फिक्स्ड और सुरक्षित निवेश
एफडी यानी फिक्स्ड डिपॉजिट को सबसे सुरक्षित निवेश विकल्पों में गिना जाता है। इसमें निवेश करने पर तय ब्याज दर मिलती है, और निवेशक को मालूम होता है कि कितने समय बाद कितनी रकम वापस मिलेगी।
एफडी बैंकों, पोस्ट ऑफिस और एनबीएफसी जैसी वित्तीय संस्थाओं द्वारा दी जाती है। यह उन लोगों के लिए बेहतर है जो जोखिम नहीं लेना चाहते और तयशुदा रिटर्न को प्राथमिकता देते हैं।
कुछ एफडी योजनाएं आयकर अधिनियम की धारा 80C के तहत टैक्स छूट भी देती हैं। हालांकि इसमें मिलने वाला रिटर्न, खासकर महंगाई को देखते हुए, ज्यादा नहीं माना जाता है।
जोखिम और रिटर्न– दोनों में बड़ा फर्क
SIP बाजार से जुड़ा होता है, इसलिए इसमें जोखिम होता है। लेकिन यही जोखिम लंबे समय में ज्यादा रिटर्न की संभावना भी देता है। वहीं FD एकदम सुरक्षित निवेश है, जिसमें पैसा डूबने की संभावना नहीं के बराबर होती है, लेकिन इसका रिटर्न सीमित होता है।
SIP उन लोगों के लिए सही हो सकता है जो जोखिम उठा सकते हैं और लंबी अवधि तक निवेश बनाए रखने का इरादा रखते हैं। वहीं FD उन लोगों के लिए ठीक है जो एकमुश्त राशि को सुरक्षित तरीके से रखना चाहते हैं।
निवेश की अवधि भी मायने रखती है
एफडी में आमतौर पर 1 से 5 साल तक की निश्चित अवधि होती है, जबकि SIP में निवेशक कितने समय तक निवेश करना चाहता है, यह वो खुद तय करता है। SIP में फ्लेक्सिबिलिटी ज्यादा होती है– जब चाहें पैसा जोड़ना बंद किया जा सकता है या जरूरत पड़ने पर पैसा निकाल भी सकते हैं।
टैक्स की बात करें तो फर्क और भी गहरा है
एफडी से मिलने वाले ब्याज पर टैक्स देना होता है। अगर सालाना ब्याज 40 हजार रुपये (सीनियर सिटिजन के लिए 50 हजार) से ज्यादा हो जाता है, तो बैंक TDS काट लेता है।
दूसरी ओर SIP से मिलने वाले रिटर्न पर भी टैक्स लगता है, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपने कितने समय के लिए पैसा लगाया था और किस तरह के फंड में लगाया था। इक्विटी फंड पर 1 साल से ज्यादा निवेश करने पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगता है, जो कुछ हद तक फायदेमंद साबित हो सकता है।
निवेश के उद्देश्य को समझना जरूरी
अगर आपका लक्ष्य महज पूंजी की सुरक्षा है और आपको किसी निश्चित रिटर्न की जरूरत है, तो एफडी फायदेमंद हो सकती है। वहीं अगर आप बच्चों की पढ़ाई, घर खरीदने या रिटायरमेंट जैसे बड़े लक्ष्यों के लिए धन जुटाना चाहते हैं, तो SIP एक बेहतर विकल्प बन सकता है।
दोनों में फर्क को इस तरह समझें
जोखिम (Risk)
- SIP: मध्यम से उच्च जोखिम, क्योंकि यह शेयर बाजार की चाल पर निर्भर करता है।
- FD: बहुत कम जोखिम, क्योंकि यह एक तयशुदा रिटर्न देने वाला सुरक्षित विकल्प है।
रिटर्न (Return)
- SIP: रिटर्न बाजार आधारित होता है, इसलिए संभावित रूप से ज्यादा मिल सकता है।
- FD: ब्याज दर पहले से तय होती है, इसलिए रिटर्न सीमित और निश्चित होता है।
तरलता (Liquidity)
- SIP: आप आंशिक निकासी कर सकते हैं (कुछ शर्तों के साथ), खासकर ओपन-एंडेड म्यूचुअल फंड में।
- FD: तय अवधि से पहले निकासी करने पर पेनल्टी लगती है, इसलिए यह कम तरल होता है।
टैक्स लाभ (Tax Benefit)
- SIP: ELSS (Equity Linked Saving Scheme) जैसे कुछ फंड्स में निवेश करने पर धारा 80C के तहत टैक्स छूट मिलती है।
- FD: 5 साल की टैक्स-सेविंग FD पर धारा 80C के तहत टैक्स छूट मिलती है।
निवेश की सुविधा (Investment Mode)
- SIP: निवेश मासिक किस्तों में किया जाता है, जो सैलरी क्लास निवेशकों के लिए सुविधाजनक होता है।
- FD: आमतौर पर एकमुश्त राशि जमा करनी होती है, जो बड़ी रकम की आवश्यकता को दर्शाता है।
निवेश पर क्या कहते हैं फाइनेंशियल एक्सपर्ट?
आईसीआईसीआई डायरेक्ट सहित कई वित्तीय सलाहकारों का कहना है कि निवेशक को अपनी जोखिम लेने की क्षमता, वित्तीय लक्ष्य और निवेश की अवधि को ध्यान में रखते हुए ही SIP और FD में से कोई एक या दोनों को चुनना चाहिए। कई बार दोनों का संतुलन बनाकर चलना ज्यादा प्रभावी माना जाता है।