सैफ अली खान और अमृता सिंह के बेटे इब्राहिम अली खान की डेब्यू फिल्म ‘नादानियां’ नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो गई है। फिल्म में उनके साथ श्रीदेवी की छोटी बेटी खुशी कपूर नजर आ रही हैं। धर्मा प्रोडक्शन की इस रोमांटिक ड्रामा फिल्म को शौना गौतम ने डायरेक्ट किया है, लेकिन यह फिल्म सिर्फ एक और स्टार किड लॉन्च प्रोजेक्ट बनकर रह गई है।
इंस्टाग्राम रील जैसी लगी फिल्म
धर्मा प्रोडक्शन ने पहले भी ‘कुछ-कुछ होता है’ और ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ जैसी फिल्मों में ग्लैमरस लेकिन अनरियलिस्टिक कॉलेज रोमांस दिखाया था। ‘नादानियां’ भी इसी ट्रैक पर चली है, लेकिन इस बार मामला और कमजोर हो गया है। फिल्म की स्टोरीलाइन इतनी हल्की है कि हर सीन किसी इंस्टाग्राम रील जैसा लगता है, जहां कैमरे का बैकग्राउंड ही नहीं, बल्कि फिल्म की कहानी भी पूरी तरह ब्लर है।
कैसा है डायरेक्टर का काम?
करण जौहर की पिछली फिल्म ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ में एसोसिएट डायरेक्टर रह चुकीं शौना गौतम इस फिल्म से डायरेक्टोरियल डेब्यू कर रही हैं। लेकिन डेब्यू के नाम पर उन्होंने वही पुरानी धर्मा स्टाइल रोमांटिक-कॉमेडी फिल्म बना दी, जहां एक्टर्स को बस स्टाइलिश दिखाना ही प्राथमिकता लगती है। फिल्म में लोकेशंस, डिजाइनर कपड़े और आलीशान सेट तो हैं, लेकिन एक अच्छी कहानी और दमदार निर्देशन की कमी साफ नजर आती है।
घिसी-पिटी कहानी, जिसमें कोई दम नहीं
फिल्म की शुरुआत फ्लैशबैक में होती है, जहां पिया जयसिंह (खुशी कपूर) की कहानी दिखाई गई है। पिया दिल्ली के एक बड़े घराने की अकेली साहबजादी है, जिसकी बेस्टी को एक अकड़ू और घमंडी लड़के से प्यार है। लेकिन वही लड़का पिया को भी पसंद करने लगता है। दोस्ती बचाने के लिए पिया एक डील करती है—नोएडा का एक इंटेलिजेंट और चार्मिंग लड़का अर्जुन मेहता (इब्राहिम अली खान) को हफ्ते के 25,000 रुपये पर ब्वॉयफ्रेंड बनाने की।
स्टोरी में आगे वही सब होता है जो पहले कई फिल्मों में देखा जा चुका है—फेक रिलेशनशिप, प्यार, कन्फ्यूजन और फिर क्लीशेड एंडिंग। लेकिन समस्या यह है कि फिल्म में कोई इमोशन नहीं है, कोई केमिस्ट्री नहीं है और सबकुछ ठंडा-सा लगता है।
स्टार किड्स का जबरदस्ती का महिमामंडन
फिल्म में ‘रॉयल्टी’ का क्रेज इस हद तक डाला गया है कि किराए का सूट पहनकर अर्जुन जब पिया की पार्टी में जाता है, तो स्क्रीनप्ले में जबरदस्ती सुनील शेट्टी, महिमा चौधरी और अन्य किरदारों से बार-बार “He is Royalty” बुलवाया जाता है। इससे साफ झलकता है कि बॉलीवुड अभी भी दशकों पुराने रॉयल फीवर से बाहर नहीं आ पाया है।
इब्राहिम और खुशी की परफॉर्मेंस कैसी रही?
इब्राहिम अली खान को इस फिल्म में पूरी तरह से चमकाने की कोशिश की गई है—डिफोकस किए गए फ्रेम्स, बैकग्राउंड ब्लर और महंगे कपड़ों से उन्हें चार्मिंग दिखाने की पूरी मेहनत हुई है। लेकिन एक्टिंग स्किल्स में उनकी कमियां साफ दिखती हैं। खुशी कपूर ने बेहतर कोशिश की है, लेकिन उनके कैरेक्टर को इतनी बुरी तरह से लिखा गया है कि वह अपना टैलेंट दिखाने में असफल रहीं।
दिया मिर्ज़ा ने अच्छा काम किया है, सुनील शेट्टी भी इम्प्रेसिव लगे हैं, लेकिन बुरी स्क्रिप्ट उनके किरदारों को डूबो देती है। जुगल हंसराज और महिमा चौधरी का रोल भी बेअसर लगता है। और अर्चना पूरन सिंह ने मिसेज ब्रिगेंजा जैसा किरदार दोबारा निभाकर ‘कुछ-कुछ होता है’ का पुराना नॉस्टैल्जिया भी खराब कर दिया।
दिल्ली-एनसीआर के नाम पर सिर्फ दिखावा
फिल्म दिल्ली और नोएडा की स्टोरी दिखाने का दावा करती है, लेकिन असल में यहां सिर्फ इंडिया गेट, लाल किला और हौज खास की लोकेशंस ठूंस दी गई हैं। दिल्ली-एनसीआर वाले इन झोलों को तुरंत पकड़ लेंगे। धर्मा की फिल्मों में दिखाए जाने वाले कॉलेज, रियलिटी से उतने ही दूर हैं, जितना बॉलीवुड खुद।
क्या देखनी चाहिए ‘नादानियां’?
अगर आप सिर्फ स्टार किड्स को लॉन्च करने के लिए बनाए गए अधकच्चे प्रोजेक्ट देखना चाहते हैं, तो ‘नादानियां’ आपके लिए है। लेकिन अगर आपको एक अच्छी कहानी, दमदार एक्टिंग और इमोशनल कनेक्ट वाली फिल्म चाहिए, तो यह फिल्म आपको पूरी तरह निराश करेगी।