विटामिन-डी हमारे शरीर के लिए एक आवश्यक पोषक तत्व है, जो हड्डियों, मांसपेशियों और इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह शरीर में कैल्शियम के अवशोषण को बढ़ाकर हड्डियों को स्वस्थ बनाए रखता है। हालांकि, भारतीयों में विटामिन-डी की कमी एक आम समस्या बनती जा रही है। इसकी कमी के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें धूप में कम जाना, अनुचित आहार, शारीरिक गतिविधियों की कमी, बढ़ती उम्र, कुछ विशेष बीमारियां और दवाओं का सेवन शामिल हैं।
इसके अलावा, गहरे रंग की त्वचा और प्रदूषण भी विटामिन-डी के उत्पादन में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं। इस कमी के कारण हड्डियों में कमजोरी, मांसपेशियों में दर्द और इम्यूनिटी कमजोर होने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए, विटामिन-डी के स्तर को बनाए रखने के लिए संतुलित आहार, धूप में पर्याप्त समय बिताना और डॉक्टर की सलाह पर सप्लीमेंट्स लेना आवश्यक है। आइए जानते हैं ऐसे 7 फैक्टर्स, जो विटामिन-डी की कमी का कारण बन सकते हैं।
1. सूरज की रोशनी की कमी
सूरज की रोशनी विटामिन-डी के उत्पादन का सबसे प्राकृतिक और प्रमुख स्रोत है, इसलिए इसे "सनशाइन विटामिन" कहा जाता है। जब हमारी त्वचा सूरज की पराबैंगनी बी (UVB) किरणों के संपर्क में आती है, तो यह विटामिन-डी का निर्माण करती है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति अधिकतर समय घर के अंदर बिताता है, ऑफिस में लंबे समय तक काम करता है, या ठंडे और प्रदूषित क्षेत्रों में रहता है, तो उसके शरीर में विटामिन-डी की कमी हो सकती हैं।
इसके अलावा, जो लोग त्वचा को पूरी तरह ढकने वाले कपड़े पहनते हैं या सनस्क्रीन का अधिक उपयोग करते हैं, उन्हें भी पर्याप्त मात्रा में यह विटामिन नहीं मिल पाता। इसलिए, विटामिन-डी के स्तर को बनाए रखने के लिए रोजाना कम से कम 15-20 मिनट धूप में रहना जरूरी है, खासकर सुबह के समय जब सूरज की किरणें ज्यादा प्रभावी होती हैं।
2. गहरे रंग की त्वचा
गहरे रंग की त्वचा में मौजूद मेलेनिन पिगमेंट सूरज की पराबैंगनी बी (UVB) किरणों को अब्जॉर्ब करने की क्षमता को कम कर देता है। इससे शरीर में विटामिन-डी का उत्पादन धीमा हो जाता है। यही कारण है कि गहरे रंग की त्वचा वाले लोगों को हल्के रंग की त्वचा वाले लोगों की तुलना में विटामिन-डी की कमी का खतरा अधिक होता है। उन्हें पर्याप्त मात्रा में विटामिन-डी पाने के लिए ज्यादा समय तक धूप में रहना पड़ सकता हैं।
3. डाइट में विटामिन-डी की कमी
अगर आपकी डाइट में विटामिन-डी युक्त खाद्य पदार्थों की कमी है, तो यह आपके शरीर में विटामिन-डी के स्तर को कम कर सकता है। खासतौर पर वे लोग जो शाकाहारी होते हैं या डेयरी प्रोडक्ट्स और मछली नहीं खाते, उनमें इस विटामिन की कमी का खतरा अधिक होता है।
* फैटी फिश (सैल्मन, ट्यूना, मैकेरल)
* अंडे की जर्दी
* डेयरी उत्पाद (दूध, दही, पनीर)
* फोर्टिफाइड फूड्स (विटामिन-डी से युक्त अनाज, जूस)
4. अधिक मोटापा
मोटापे से ग्रस्त लोगों में विटामिन-डी की कमी होने का खतरा ज्यादा होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि विटामिन-डी एक फैट-सॉल्यूबल विटामिन है, यानी यह वसा (Fat) में घुलकर शरीर में स्टोर होता है। अधिक वजन या मोटापा होने पर विटामिन-डी शरीर की फैट टिश्यूज में स्टोर हो जाता है और ब्लडस्ट्रीम में ठीक से रिलीज नहीं हो पाता, जिससे शरीर को इसकी पर्याप्त मात्रा नहीं मिलती।
5. बढ़ती उम्र का प्रभाव
उम्र बढ़ने के साथ शरीर में विटामिन-डी के उत्पादन और अवशोषण की क्षमता प्रभावित होती है। बुजुर्गों में विटामिन-डी की कमी होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं. जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, त्वचा की विटामिन-डी बनाने की क्षमता घट जाती है। युवा त्वचा के मुकाबले बुजुर्गों की त्वचा में विटामिन-डी का उत्पादन 50% तक कम हो सकता हैं।
बुजुर्गों की किडनी विटामिन-डी को उसके सक्रिय (Active) रूप में परिवर्तित करने में कम सक्षम हो जाती है, जिससे शरीर में विटामिन-डी की कमी हो सकती हैं।
6. बीमारियों के कारण विटामिन-डी की कमी
कुछ बीमारियां और शारीरिक स्थितियां विटामिन-डी के अवशोषण (Absorption) और मेटाबॉलिज्म (Metabolism) को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे शरीर में इसकी कमी हो सकती है।
* क्रोहन रोग (Crohn’s Disease): यह एक प्रकार की आंतों की सूजन (Inflammatory Bowel Disease) है, जो पोषक तत्वों के अवशोषण को बाधित करती है। इस बीमारी में आंतों की अंदरूनी सतह विटामिन-डी को ठीक से अवशोषित नहीं कर पाती।
* सीलिएक रोग (Celiac Disease): यह ग्लूटेन के प्रति संवेदनशीलता (Gluten Sensitivity) से जुड़ी बीमारी है, जिसमें छोटी आंत क्षतिग्रस्त हो जाती है।इससे शरीर विटामिन-डी और अन्य पोषक तत्वों को अवशोषित नहीं कर पाता।
* किडनी की बीमारी (Chronic Kidney Disease - CKD): किडनी विटामिन-डी को उसके सक्रिय रूप (Active Form) में बदलने का काम करती है।किडनी की कार्यक्षमता कमजोर होने से शरीर में विटामिन-डी की कमी हो सकती है, जिससे हड्डियों की कमजोरी और अन्य समस्याएं हो सकती हैं।
* लिवर की बीमारियां: लिवर विटामिन-डी के मेटाबॉलिज्म में अहम भूमिका निभाता है। हेपेटाइटिस, फैटी लिवर, सिरोसिस जैसी बीमारियों में लिवर कमजोर हो जाता है और विटामिन-डी का सही ढंग से मेटाबॉलिज्म नहीं कर पाता।
7. सनस्क्रीन का ज्यादा इस्तेमाल और विटामिन-डी की कमी
सनस्क्रीन त्वचा को हानिकारक अल्ट्रावायलेट (UV) किरणों से बचाने का काम करता है, लेकिन इसका अत्यधिक उपयोग शरीर में विटामिन-डी के निर्माण को बाधित कर सकता है।
* विटामिन-डी का निर्माण सूर्य की UVB किरणों के संपर्क से होता है।
* SPF 30 या उससे अधिक सनस्क्रीन UVB किरणों को 97% तक रोक सकता है, जिससे त्वचा में विटामिन-डी का उत्पादन बहुत कम हो जाता है।
* जो लोग हमेशा सनस्क्रीन लगाकर बाहर जाते हैं, उनमें विटामिन-डी की कमी का खतरा अधिक हो सकता है।